Tuesday, April 8, 2008

अंतिम इच्छा

अंतिम इच्छा

विजयनगर के ब्राह्मण बड़े लालची थे। वे हमेशा किसी न किसी बहाने राजा कृष्णदेव राय से धन ऐंठ लेते थे। राजा की उदारता का वे अनुचित फायदा उठाते। एक दिन राजा ने उनसे कहा, “मरते समय मेरी मां ने आम खाने की इच्छा जताई थी, जो उस समय पूरी नहीं हो सकी थी। क्या अब कोई उपाय हो सकता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले।”

ब्राह्मणों ने कहा, “महाराज, यदि आप एक सौ आठ ब्राह्मणों को सोने का एक-एक आम भेंट करें तो आपकी मां की अधूरी इच्छा पूरी हो जाएगी। ब्राह्मणों को दिया दान मृतात्मा के पास अपने आप पहुंच जाता है।”

राजा कृष्णदेव राय ने ब्राह्मणों को सोने के एक-एक आम दान कर दिए। तेनालीराम को ब्राह्मणों के इस लालच पर बहुत गुस्सा आया। वह उन्हें सबक सिखाने की ताक में रहने लगा।



जब उनकी मां की मृत्यु हुई तो उन्होंने भी ब्राह्मणों को अपने घर बुलाया। जब सारे ब्राह्मण आसनों पर बैठ गए तो तेनालीराम ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और अपने नौकरों से कहा, “जाओ, लोहे की गर्म सलाखें लेकर आओ और इन ब्राह्मणों के शरीर पर दागो।”

ब्राह्मणों ने जब यह सुना तो चीख-पुकार मच गई। सब उठ कर दरवाजे की ओर भागे। पर नौकर उन्हें पकड़ कर एक-एक बार दागने लगे। बात राजा तक पहुंच गई। वह खुद आए और ब्राह्मणों को बचाया।

गुस्से में उन्होंने पूछा, “यह क्या हरकत है तेनालीराम?”
तेनालीराम ने कहा, “महाराज, मेरी मां को जोड़ों के दर्द की बीमारी थी। मरते समय उनको बहुत तेज दर्द था। अंतिम समय उन्होंने यह इच्छा प्रकट की थी कि दर्द की जगह पर लोहे की गर्म सलाखें दागी जाएं ताकि दर्द से आराम पाकर उनके प्राण चैन से निकल सकें। उस समय उनकी यह इच्छा पूरी नहीं की जा सकी थी। इसलिए ब्राह्मणों को सलाखें दागनी पड़ीं।

राजा हंस पड़े। ब्राह्मणों के सिर शर्म से झुक गए।

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