Tuesday, April 8, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन की दास्तान – 10

(पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला के शहर पहुंचा टैक्स अफसर)

अपने विचारों में डूबा मुल्ला नसुरुद्दीन सोच रहा था- ‘बुखारा क्यों आया? खाना खरीदने के लिए मुझे आधे तंके का सिक्का भी कहाँ से मिलेगा? उस कमबख्त़ टैक्स वसूल करने वाले अफसर ने मेरी सारी रक़म साफ़ कर दी। डाकुओं के बारे में मुझसे बात करना कितनी बड़ी गुस्ताखी थी।’
तभी उसे वह टैक्स अफसर दिखाई दे गया, जो उसकी बर्बादी का कारण था। वह घोड़े पर सवार कहवाखाने की ओर आ रहा था। दो सिपाही उसके अरबी घोड़े की लगाम थामे आगे-आगे चल रहे थे। उसके पास कत्थई-भूरे रंग का बहुत ही खूबसूरत घोड़ा था। उसकी गहरे रंग की आँखों में बहुत ही शानदार चमक थी।.....मुल्ला उसे देखकर फिर अपनी भूख मिटाने की सोचता है)

उसके आगे

मुल्ला ने बेचा टैक्स अफसर का घोड़ा

…..सुबह शहर के फाटक की घटनाओं की याद आते ही वह भयभीत होकर सोचने लगा कि कहीं ये सिपाही उसे पहचान न लें। उसने वहाँ से जाने का इरादा किया, लेकिन भूख से उसका बुरा हाल था। वह मन-ही-मन कहने लगा, ऐ तकदीर लिखने वाले मुल्ला नसुरुद्दीन की मदद करे। किसी तरह आधा तंका दिलवा दे, ताकि वह अपने पेट की आग बुझा सके।

तभी किसी ने उसे पुकारा, ‘अरे तुम हाँ, हाँ तुम ही जो वहाँ बैठे हो।’

मुल्ला नसरुद्दीन ने पलटकर देखा। सड़क पर एक सजी हुई गाड़ी खड़ी थी। बड़ा-सा साफ़ा बाँधे और क़ीमतों खिलअत पहने एक आदमी गाड़ी के पर्दों से बाहर झाँक रहा था।

इससे पहले कि वह अजनबी कुछ कहता, मुल्ला नसरुद्दीन समझ गया कि खुदा ने उसकी दुआ सुन ली है और हमेशा की तरह उसे मुसीबत में देखकर उस पर करम की नजर की है।

अजनबी ने खूबसूरत अरबी घोड़े को देखते हुए उसकी प्रशंसा करते हुए अकड़कर कहा, ‘मुझे यह घोड़ा पसंद है। बोल, क्या यह घोड़ा बिकाऊ है?’मुल्ला नसरुद्दीन ने बात बनाते हुए कहा, ‘दुनिया में कोई भी ऐसा घोड़ा नहीं, जिसे बेचा न जा सके।’

मुल्ला नसररुद्दीन तुरंत भाँप गया था कि यह रईस क्या कहना चाहता है। वह इससे आगे की बात भी समझ चुका था। अब वह खुदा से यही दुआ कर रहा था कि कोई बेवकूफ़ मक्खी टैक्स अफसर की गर्दन या नाक पर कूदकर उसे जगा न दे। सिपाहियों की उसे अधिक चिंता नहीं थी। कहवाख़ाने के अँधेरे हिस्से से आने वाले गहरे अँधेरे से स्पष्ट था कि वे दोनों नशे में धुत पड़े होंगे।

अजनबी रईस ने बुजुर्गों जैसे गंभीर लहजे में कहा, ‘तुम्हें यह पता होना चाहिए कि इस फटी खिलअत को पहनकर ऐसे शानदार घोड़े पर सवार होना तुम्हें शोभा नहीं देता। यह बात तुम्हारे लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है, क्योंकि हर कोई यह सोचेगा कि इस भिखमंगे को इतना शानदार घोड़ा कहाँ से मिला? यह भी हो सकता है कि तुम्हें जेल में डाल दिया जाए’।

मुल्ला नसरुद्दीन ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘आप सही फरमा रहे हैं, मेरे आका। सचमुच यह घोड़ा मेरे जैसों के लिए जरूरत से ज्यादा बढ़िया है। इस फटी खिलअत में मैं जिंदगी भर गधे पर ही चढ़ता रहा हूँ। मैं शानदार घोड़े पर सवारी करने की हिम्मत ही नहीं कर सकता।’

‘यह ठीक है कि तुम ग़रीब हो। लेकिन घमंड ने तुम्हें अंधा नहीं बनाया है। नाचीज़ ग़रीब को विनम्रता ही शोभा देता है, क्योंकि खूबसूरत फूल बादाम के शानदार पेड़ों पर ही अच्छे लगते हैं, मैदान की कटीली झाड़ियों पर नहीं। बताओ, क्या तुम्हें यह थैली चाहिए? इसमें चाँदी के पूरे तीन सौ तंके है।’, अजनबी रईस ने कहा।

मुल्ला नसरुद्दीन चिल्लाया, ‘चाहिए। जरूर चाहिए। चाँदी के तीन सौ तंके लेने से भला कौन इनकार करेगा? अरे, यह तो ऐसे ही हुआ जैसा किसी को थैली सड़क पर पड़ी मिल गई हो।’

अजनबी ने जानकारों की तरह मुस्काराते हुए कहा, ‘लगता है तुम्हें सड़क पर कोई दूसरी चीज मिली है। मैं यह रक़म उस चीज से बदलने को तैयार हूँ,’ जो तुम्हें सड़क पर मिली है। यह लो तीन सौ तंके।’

उसने थैली मुल्ला नसरुद्दीन को सौंप दी और अपने नौकर को इशारा किया। उसके चेचक के दागों से भरे चेहरे की मुस्कान और आँखों के काइयाँफ को देखते ही मुल्ला नसरुद्दीन समझ गया कि यह नौकर भी उतना ही बड़ा मक्कार है, जितना बड़ा मक्कार इसका मालिक है।

एक ही सड़क पर तीन-तीन मक्कारों का एक साथ होना ठीक नहीं है, उसने मन-ही-मन निश्चय किया। इनमें से कम-से-कम एक जरूर ही फालतू है। समय आ गया है कि यहाँ से नौ-दो ग्यारह हो जाऊँ।

अजनबी की उदारता की प्रशंसा करते हुए मुल्ला नसरुद्दीन झपटकर अपने गधे पर सवार हो गया और उसनए इतने जोर से एड़ लगाई कि आलसी होते हुए भी गधा ढुलकी मारने लगा।

थोड़ी दूर जाकर मुल्ला नसरुद्दीन ने मुड़कर देखा। नौकर अरबी घोड़े को गाड़ी से बाँध रहा था। वह तेजी से आगे बढ़ गया।…

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