Showing posts with label यन्त्र तंत्र मंत्र. Show all posts
Showing posts with label यन्त्र तंत्र मंत्र. Show all posts

Monday, February 20, 2012

श्री सरस्वती चालीसा

  श्री सरस्वती चालीसा 
                      ॥दोहा॥

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥
तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।केव कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता।तेहि न धरई चित माता॥
राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधुकैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी।सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा।क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे।कानन में घेरे मृग नाहे॥
सागर मध्य पोत के भंजे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥
करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा।बंदी पाश दूर हो सारा॥
रामसागर बाँधि हेतु भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी॥
                        ॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥









हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

श्री गणेश चालीसा

  श्री गणेश चालीसा 
                            ॥दोहा॥

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥
                         ॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥









हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

श्री हनुमान चालीसा

  श्री हनुमान चालीसा 
                        ।।दोहा।।
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार
बरनौ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौ पवन कुमार
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे
लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई
सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा
जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते
राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना
आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें
नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा
तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई
और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा
जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई
जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा
                           ।।दोहा।।
पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप









हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

श्री लक्ष्मी चालीसा

 श्री लक्ष्मी चालीसा
                    ॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
                 ॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
                ॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
                          ॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥










हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

श्री शिव चालीसा

 श्री शिव चालीसा 
                          ।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
                        ॥दोहा॥ 
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥










हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

Sunday, February 19, 2012

॥ शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥


॥ शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥
ॐ स्थिरः स्थाणुः प्रभुर्भीमः प्रवरो वरदो वरः ।
सर्वात्मा सर्वविख्यातः सर्वः सर्वकरो भवः ॥ १॥
जटी चर्मी शिखण्डी च सर्वांगः सर्वभावनः ।
हरश्च हरिणाक्षश्च सर्वभूतहरः प्रभुः ॥ २॥
प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च नियतः शाश्वतो ध्रुवः ।
श्मशानवासी भगवान् खचरो गोचरोऽर्दनः ॥ ३॥
अभिवाद्यो महाकर्मा तपस्वी भूतभावनः ।
उन्मत्तवेषप्रच्छन्नः सर्वलोकप्रजापतिः ॥ ४॥
महारूपो महाकायो वृषरूपो महायशाः ।
महात्मा सर्वभूतात्मा विश्वरूपो महाहनुः ॥ ५॥
लोकपालोऽन्तर्हितात्मा प्रसादो हयगर्दभिः ।
पवित्रं च महांश्चैव नियमो नियमाश्रितः ॥ ६॥
सर्वकर्मा स्वयंभूत आदिरादिकरो निधिः ।
सहस्राक्षो विशालाक्षः सोमो नक्षत्रसाधकः ॥ ७॥
चन्द्रः सूर्यः शनिः केतुर्ग्रहो ग्रहपतिर्वरः ।
अत्रिरत्र्यानमस्कर्ता मृगबाणार्पणोऽनघः ॥ ८॥
महातपा घोरतपा अदीनो दीनसाधकः ।
संवत्सरकरो मन्त्रः प्रमाणं परमं तपः ॥ ९॥
योगी योज्यो महाबीजो महारेता महाबलः ।
सुवर्णरेताः सर्वज्ञः सुबीजो बीजवाहनः ॥ १०॥
दशबाहुस्त्वनिमिषो नीलकण्ठ उमापतिः ।
विश्वरूपः स्वयंश्रेष्ठो बलवीरोऽबलो गणः ॥ ११॥
गणकर्ता गणपतिर्दिग्वासाः काम एव च ।
मन्त्रवित्परमोमन्त्रः सर्वभावकरो हरः ॥ १२॥
कमण्डलुधरो धन्वी बाणहस्तः कपालवान् ।
अशनी शतघ्नी खड्गी पट्टिशी चायुधी महान् ॥ १३॥
स्रुवहस्तः सुरूपश्च तेजस्तेजस्करो निधिः ।
उष्णिषी च सुवक्त्रश्च उदग्रो विनतस्तथा ॥ १४॥
दीर्घश्च हरिकेशश्च सुतीर्थः कृष्ण एव च ।
सृगालरूपः सिद्धार्थो मुण्डः सर्वशुभंकरः ॥ १५॥
अजश्च बहुरूपश्च गन्धधारी कपर्द्यपि ।
ऊर्ध्वरेता ऊर्ध्वलिंग ऊर्ध्वशायी नभःस्थलः ॥ १६॥
त्रिजटी चीरवासाश्च रुद्रः सेनापतिर्विभुः ।
अहश्चरोनक्तंचरस्तिग्ममन्युः सुवर्चसः ॥ १७॥
गजहा दैत्यहा कालो लोकधाता गुणाकरः ।
सिंहशार्दूलरूपश्च आर्द्रचर्माम्बरावृतः ॥ १८॥
कालयोगी महानादः सर्वकामश्चतुष्पथः ।
निशाचरः प्रेतचारी भूतचारी महेश्वरः ॥ १९॥
बहुभूतो बहुधरः स्वर्भानुरमितो गतिः ।
नृत्यप्रियो नित्यनर्तो नर्तकः सर्वलालसः ॥ २०॥
घोरो महातपाः पाशो नित्यो गिरिरुहो नभः ।
सहस्रहस्तो विजयो व्यवसायो ह्यतन्द्रितः ॥ २१॥
अधर्षणो धर्षणात्मा यज्ञहा कामनाशकः ।
दक्षयागापहारी च सुसहो मध्यमस्तथा ॥ २२॥
तेजोपहारी बलहा मुदितोऽर्थोऽजितो वरः ।
गम्भीरघोषो गम्भीरो गम्भीरबलवाहनः ॥ २३॥
न्यग्रोधरूपो न्यग्रोधो वृक्षकर्णस्थितिर्विभुः ।
सुतीक्ष्णदशनश्चैव महाकायो महाननः ॥ २४॥
विष्वक्सेनो हरिर्यज्ञः संयुगापीडवाहनः ।
तीक्ष्णतापश्च हर्यश्वः सहायः कर्मकालवित् ॥ २५॥
विष्णुप्रसादितो यज्ञः समुद्रो बडवामुखः ।
हुताशनसहायश्च प्रशान्तात्मा हुताशनः ॥ २६॥
उग्रतेजा महातेजा जन्यो विजयकालवित् ।
ज्योतिषामयनं सिद्धिः सर्वविग्रह एव च ॥ २७॥
शिखी मुण्डी जटी ज्वाली मूर्तिजो मूर्धगो बली ।
वैणवी पणवी ताली खली कालकटंकटः ॥ २८॥
नक्षत्रविग्रहमतिर्गुणबुद्धिर्लयोऽगमः ।
प्रजापतिर्विश्वबाहुर्विभागः सर्वगोऽमुखः ॥ २९॥
विमोचनः सुसरणो हिरण्यकवचोद्भवः ।
मेढ्रजो बलचारी च महीचारी स्रुतस्तथा ॥ ३०॥
सर्वतूर्यविनोदी च सर्वातोद्यपरिग्रहः ।
व्यालरूपो गुहावासी गुहो माली तरंगवित् ॥ ३१॥
त्रिदशस्त्रिकालधृक्कर्मसर्वबन्धविमोचनः ।
बन्धनस्त्वसुरेन्द्राणां युधिशत्रुविनाशनः ॥ ३२॥
सांख्यप्रसादो दुर्वासाः सर्वसाधुनिषेवितः ।
प्रस्कन्दनो विभागज्ञो अतुल्यो यज्ञभागवित् ॥ ३३॥
सर्ववासः सर्वचारी दुर्वासा वासवोऽमरः ।
हैमो हेमकरो यज्ञः सर्वधारी धरोत्तमः ॥ ३४॥
लोहिताक्षो महाक्षश्च विजयाक्षो विशारदः ।
संग्रहो निग्रहः कर्ता सर्पचीरनिवासनः ॥ ३५॥
मुख्योऽमुख्यश्च देहश्च काहलिः सर्वकामदः ।
सर्वकालप्रसादश्च सुबलो बलरूपधृत् ॥ ३६॥
सर्वकामवरश्चैव सर्वदः सर्वतोमुखः ।
आकाशनिर्विरूपश्च निपाती ह्यवशः खगः ॥ ३७॥
रौद्ररूपोंऽशुरादित्यो बहुरश्मिः सुवर्चसी ।
वसुवेगो महावेगो मनोवेगो निशाचरः ॥ ३८॥
सर्ववासी श्रियावासी उपदेशकरोऽकरः ।
मुनिरात्मनिरालोकः संभग्नश्च सहस्रदः ॥ ३९॥
पक्षी च पक्षरूपश्च अतिदीप्तो विशाम्पतिः ।
उन्मादो मदनः कामो ह्यश्वत्थोऽर्थकरो यशः ॥ ४०॥
वामदेवश्च वामश्च प्राग्दक्षिणश्च वामनः ।
सिद्धयोगी महर्षिश्च सिद्धार्थः सिद्धसाधकः ॥ ४१॥
भिक्षुश्च भिक्षुरूपश्च विपणो मृदुरव्ययः ।
महासेनो विशाखश्च षष्ठिभागो गवांपतिः ॥ ४२॥
वज्रहस्तश्च विष्कम्भी चमूस्तम्भन एव च ।
वृत्तावृत्तकरस्तालो मधुर्मधुकलोचनः ॥ ४३॥
वाचस्पत्यो वाजसनो नित्यमाश्रितपूजितः ।
ब्रह्मचारी लोकचारी सर्वचारी विचारवित् ॥ ४४॥
ईशान ईश्वरः कालो निशाचारी पिनाकवान् ।
निमित्तस्थो निमित्तं च नन्दिर्नन्दिकरो हरिः ॥ ४५॥
नन्दीश्वरश्च नन्दी च नन्दनो नन्दिवर्धनः ।
भगहारी निहन्ता च कालो ब्रह्मा पितामहः ॥ ४६॥
चतुर्मुखो महालिंगश्चारुलिंगस्तथैव च ।
लिंगाध्यक्षः सुराध्यक्षो योगाध्यक्षो युगावहः ॥ ४७॥
बीजाध्यक्षो बीजकर्ता अध्यात्माऽनुगतो बलः ।
इतिहासः सकल्पश्च गौतमोऽथ निशाकरः ॥ ४८॥
दम्भो ह्यदम्भो वैदम्भो वश्यो वशकरः कलिः ।
लोककर्ता पशुपतिर्महाकर्ता ह्यनौषधः ॥ ४९॥
अक्षरं परमं ब्रह्म बलवच्चक्र एव च ।
नीतिर्ह्यनीतिः शुद्धात्मा शुद्धो मान्यो गतागतः ॥ ५०॥
बहुप्रसादः सुस्वप्नो दर्पणोऽथ त्वमित्रजित् ।
वेदकारो मन्त्रकारो विद्वान् समरमर्दनः ॥ ५१॥
महामेघनिवासी च महाघोरो वशीकरः ।
अग्निज्वालो महाज्वालो अतिधूम्रो हुतो हविः ॥ ५२॥
वृषणः शंकरो नित्यंवर्चस्वी धूमकेतनः ।
नीलस्तथांगलुब्धश्च शोभनो निरवग्रहः ॥ ५३॥
स्वस्तिदः स्वस्तिभावश्च भागी भागकरो लघुः ।
उत्संगश्च महांगश्च महागर्भपरायणः ॥ ५४॥
कृष्णवर्णः सुवर्णश्च इन्द्रियं सर्वदेहिनाम् ।
महापादो महाहस्तो महाकायो महायशाः ॥ ५५॥
महामूर्धा महामात्रो महानेत्रो निशालयः ।
महान्तको महाकर्णो महोष्ठश्च महाहनुः ॥ ५६॥
महानासो महाकम्बुर्महाग्रीवः श्मशानभाक् ।
महावक्षा महोरस्को ह्यन्तरात्मा मृगालयः ॥ ५७॥
लम्बनो लम्बितोष्ठश्च महामायः पयोनिधिः ।
महादन्तो महादंष्ट्रो महाजिह्वो महामुखः ॥ ५८॥
महानखो महारोमो महाकोशो महाजटः ।
प्रसन्नश्च प्रसादश्च प्रत्ययो गिरिसाधनः ॥ ५९॥
स्नेहनोऽस्नेहनश्चैव अजितश्च महामुनिः ।
वृक्षाकारो वृक्षकेतुरनलो वायुवाहनः ॥ ६०॥
गण्डली मेरुधामा च देवाधिपतिरेव च ।
अथर्वशीर्षः सामास्य ऋक्सहस्रामितेक्षणः ॥ ६१॥
यजुः पादभुजो गुह्यः प्रकाशो जंगमस्तथा ।
अमोघार्थः प्रसादश्च अभिगम्यः सुदर्शनः ॥ ६२॥
उपकारः प्रियः सर्वः कनकः कांचनच्छविः ।
नाभिर्नन्दिकरो भावः पुष्करः स्थपतिः स्थिरः ॥ ६३॥
द्वादशस्त्रासनश्चाद्यो यज्ञो यज्ञसमाहितः ।
नक्तं कलिश्च कालश्च मकरः कालपूजितः ॥ ६४॥
सगणो गणकारश्च भूतवाहनसारथिः ।
भस्मशयो भस्मगोप्ता भस्मभूतस्तरुर्गणः ॥ ६५॥
लोकपालस्तथा लोको महात्मा सर्वपूजितः ।
शुक्लस्त्रिशुक्लः संपन्नः शुचिर्भूतनिषेवितः ॥ ६६॥
आश्रमस्थः क्रियावस्थो विश्वकर्ममतिर्वरः ।
विशालशाखस्ताम्रोष्ठो ह्यम्बुजालः सुनिश्चलः ॥ ६७॥
कपिलः कपिशः शुक्ल आयुश्चैव परोऽपरः ।
गन्धर्वो ह्यदितिस्तार्क्ष्यः सुविज्ञेयः सुशारदः ॥ ६८॥
परश्वधायुधो देव अनुकारी सुबान्धवः ।
तुम्बवीणो महाक्रोध ऊर्ध्वरेता जलेशयः ॥ ६९॥
उग्रो वंशकरो वंशो वंशनादो ह्यनिन्दितः ।
सर्वांगरूपो मायावी सुहृदो ह्यनिलोऽनलः ॥ ७०॥
बन्धनो बन्धकर्ता च सुबन्धनविमोचनः ।
सयज्ञारिः सकामारिर्महादंष्ट्रो महायुधः ॥ ७१॥
बहुधा निन्दितः शर्वः शंकरः शंकरोऽधनः ।
अमरेशो महादेवो विश्वदेवः सुरारिहा ॥ ७२॥
अहिर्बुध्न्योऽनिलाभश्च चेकितानो हविस्तथा ।
अजैकपाच्च कापाली त्रिशंकुरजितः शिवः ॥ ७३॥
धन्वन्तरिर्धूमकेतुः स्कन्दो वैश्रवणस्तथा ।
धाता शक्रश्च विष्णुश्च मित्रस्त्वष्टा ध्रुवो धरः ॥ ७४॥
प्रभावः सर्वगो वायुरर्यमा सविता रविः ।
उषंगुश्च विधाता च मान्धाता भूतभावनः ॥ ७५॥
विभुर्वर्णविभावी च सर्वकामगुणावहः ।
पद्मनाभो महागर्भश्चन्द्रवक्त्रोऽनिलोऽनलः ॥ ७६॥
बलवांश्चोपशान्तश्च पुराणः पुण्यचंचुरी ।
कुरुकर्ता कुरुवासी कुरुभूतो गुणौषधः ॥ ७७॥
सर्वाशयो दर्भचारी सर्वेषां प्राणिनांपतिः ।
देवदेवः सुखासक्तः सदसत् सर्वरत्नवित् ॥ ७८॥
कैलासगिरिवासी च हिमवद्गिरिसंश्रयः ।
कूलहारी कूलकर्ता बहुविद्यो बहुप्रदः ॥ ७९॥
वणिजो वर्धकी वृक्षो वकुलश्चन्दनश्छदः ।
सारग्रीवो महाजत्रु रलोलश्च महौषधः ॥ ८०॥
सिद्धार्थकारी सिद्धार्थश्छन्दोव्याकरणोत्तरः ।
सिंहनादः सिंहदंष्ट्रः सिंहगः सिंहवाहनः ॥ ८१॥
प्रभावात्मा जगत्कालस्थालो लोकहितस्तरुः ।
सारंगो नवचक्रांगः केतुमाली सभावनः ॥ ८२॥
भूतालयो भूतपतिरहोरात्रमनिन्दितः ॥ ८३॥
वाहिता सर्वभूतानां निलयश्च विभुर्भवः ।
अमोघः संयतो ह्यश्वो भोजनः प्राणधारणः ॥ ८४॥
धृतिमान् मतिमान् दक्षः सत्कृतश्च युगाधिपः ।
गोपालिर्गोपतिर्ग्रामो गोचर्मवसनो हरिः ॥ ८५॥
हिरण्यबाहुश्च तथा गुहापालः प्रवेशिनाम् ।
प्रकृष्टारिर्महाहर्षो जितकामो जितेन्द्रियः ॥ ८६॥
गान्धारश्च सुवासश्च तपःसक्तो रतिर्नरः ।
महागीतो महानृत्यो ह्यप्सरोगणसेवितः ॥ ८७॥
महाकेतुर्महाधातुर्नैकसानुचरश्चलः ।
आवेदनीय आदेशः सर्वगन्धसुखावहः ॥ ८८॥
तोरणस्तारणो वातः परिधी पतिखेचरः ।
संयोगो वर्धनो वृद्धो अतिवृद्धो गुणाधिकः ॥ ८९॥
नित्यमात्मसहायश्च देवासुरपतिः पतिः ।
युक्तश्च युक्तबाहुश्च देवो दिवि सुपर्वणः ॥ ९०॥
आषाढश्च सुषाढश्च ध्रुवोऽथ हरिणो हरः ।
वपुरावर्तमानेभ्यो वसुश्रेष्ठो महापथः ॥ ९१॥
शिरोहारी विमर्शश्च सर्वलक्षणलक्षितः ।
अक्षश्च रथयोगी च सर्वयोगी महाबलः ॥ ९२॥
समाम्नायोऽसमाम्नायस्तीर्थदेवो महारथः ।
निर्जीवो जीवनो मन्त्रः शुभाक्षो बहुकर्कशः ॥ ९३॥
रत्नप्रभूतो रक्ताङ्गो महार्णवनिपानवित् ।
मूलं विशालो ह्यमृतो व्यक्ताव्यक्तस्तपोनिधिः ॥ ९४॥
आरोहणोऽधिरोहश्च शीलधारी महायशाः ।
सेनाकल्पो महाकल्पो योगो युगकरो हरिः ॥ ९५॥
युगरूपो महारूपो महानागहनो वधः ।
न्यायनिर्वपणः पादः पण्डितो ह्यचलोपमः ॥ ९६॥
बहुमालो महामालः शशी हरसुलोचनः ।
विस्तारो लवणः कूपस्त्रियुगः सफलोदयः ॥ ९७॥
त्रिलोचनो विषण्णांगो मणिविद्धो जटाधरः ।
बिन्दुर्विसर्गः सुमुखः शरः सर्वायुधः सहः ॥ ९८॥
निवेदनः सुखाजातः सुगन्धारो महाधनुः ।
गन्धपाली च भगवानुत्थानः सर्वकर्मणाम् ॥ ९९॥
मन्थानो बहुलो वायुः सकलः सर्वलोचनः ।
तलस्तालः करस्थाली ऊर्ध्वसंहननो महान् ॥ १००॥
छत्रं सुच्छत्रो विख्यातो लोकः सर्वाश्रयः क्रमः ।
मुण्डो विरूपो विकृतो दण्डी कुण्डी विकुर्वणः ॥ १०१॥
हर्यक्षः ककुभो वज्री शतजिह्वः सहस्रपात् ।
सहस्रमूर्धा देवेन्द्रः सर्वदेवमयो गुरुः ॥ १०२॥
सहस्रबाहुः सर्वांगः शरण्यः सर्वलोककृत् ।
पवित्रं त्रिककुन्मन्त्रः कनिष्ठः कृष्णपिंगलः ॥ १०३॥
ब्रह्मदण्डविनिर्माता शतघ्नीपाशशक्तिमान् ।
पद्मगर्भो महागर्भो ब्रह्मगर्भो जलोद्भवः ॥ १०४॥
गभस्तिर्ब्रह्मकृद् ब्रह्मी ब्रह्मविद् ब्राह्मणो गतिः ।
अनन्तरूपो नैकात्मा तिग्मतेजाः स्वयंभुवः ॥ १०५॥
ऊर्ध्वगात्मा पशुपतिर्वातरंहा मनोजवः ।
चन्दनी पद्मनालाग्रः सुरभ्युत्तरणो नरः ॥ १०६॥
कर्णिकारमहास्रग्वी नीलमौलिः पिनाकधृत् ।
उमापतिरुमाकान्तो जाह्नवीधृगुमाधवः ॥ १०७॥
वरो वराहो वरदो वरेण्यः सुमहास्वनः ।
महाप्रसादो दमनः शत्रुहा श्वेतपिंगलः ॥ १०८॥
प्रीतात्मा परमात्मा च प्रयतात्मा प्रधानधृत् ।
सर्वपार्श्वमुखस्त्र्यक्षो धर्मसाधारणो वरः ॥ १०९॥
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा अमृतो गोवृषेश्वरः ।
साध्यर्षिर्वसुरादित्यो विवस्वान् सविताऽमृतः ॥ ११०॥
व्यासः सर्गः सुसंक्षेपो विस्तरः पर्ययो नरः ।
ऋतुः संवत्सरो मासः पक्षः संख्यासमापनः ॥ १११॥
कला काष्ठा लवा मात्रा मुहूर्ताहः क्षपाः क्षणाः ।
विश्वक्षेत्रं प्रजाबीजं लिंगमाद्यस्तु निर्गमः ॥ ११२॥
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं पिता माता पितामहः ।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम् ॥ ११३॥
निर्वाणं ह्लादनश्चैव ब्रह्मलोकः परागतिः ।
देवासुरविनिर्माता देवासुरपरायणः ॥ ११४॥
देवासुरगुरुर्देवो देवासुरनमस्कृतः ।
देवासुरमहामात्रो देवासुरगणाश्रयः ॥ ११५॥
देवासुरगणाध्यक्षो देवासुरगणाग्रणीः ।
देवातिदेवो देवर्षिर्देवासुरवरप्रदः ॥ ११६॥
देवासुरेश्वरो विश्वो देवासुरमहेश्वरः ।
सर्वदेवमयोऽचिन्त्यो देवतात्माऽऽत्मसंभवः ॥ ११७॥
उद्भित्त्रिविक्रमो वैद्यो विरजो नीरजोऽमरः ।
ईड्यो हस्तीश्वरो व्याघ्रो देवसिंहो नरर्षभः ॥ ११८॥
विबुधोऽग्रवरः सूक्ष्मः सर्वदेवस्तपोमयः ।
सुयुक्तः शोभनो वज्री प्रासानां प्रभवोऽव्ययः ॥ ११९॥
गुहः कान्तो निजः सर्गः पवित्रं सर्वपावनः ।
शृंगी शृंगप्रियो बभ्रू राजराजो निरामयः ॥ १२०॥
अभिरामः सुरगणो विरामः सर्वसाधनः ।
ललाटाक्षो विश्वदेवो हरिणो ब्रह्मवर्चसः ॥ १२१॥
स्थावराणांपतिश्चैव नियमेन्द्रियवर्धनः ।
सिद्धार्थः सिद्धभूतार्थोऽचिन्त्यः सत्यव्रतः शुचिः ॥ १२२॥
व्रताधिपः परं ब्रह्म भक्तानां परमागतिः ।
विमुक्तो मुक्ततेजाश्च श्रीमान् श्रीवर्धनो जगत् ॥ १२३॥
॥ श्रीमान् श्रीवर्धनो जगत् ॐ नम इति ॥








हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

शिव सहस्त्रनाम


शिव सहस्त्रनाम—
ॐ स्थिराय नमः॥
ॐ स्थाणवे नमः॥
ॐ प्रभवे नमः॥
ॐ भीमाय नमः॥
ॐ प्रवराय नमः॥
ॐ वरदाय नमः॥
ॐ वराय नमः॥
ॐ सर्वात्मने नमः॥
ॐ सर्वविख्याताय नमः॥
ॐ सर्वस्मै नमः॥
ॐ सर्वकाराय नमः॥
ॐ भवाय नमः॥
ॐ जटिने नमः॥
ॐ चर्मिणे नमः॥
ॐ शिखण्डिने नमः॥ ॐ सर्वांङ्गाय नमः॥ ॐ सर्वभावाय नमः॥ ॐ हराय नमः॥ ॐ हरिणाक्षाय नमः॥ ॐ सर्वभूतहराय नमः॥
ॐ प्रभवे नमः॥ ॐ प्रवृत्तये नमः॥ ॐ निवृत्तये नमः॥ ॐ नियताय नमः॥ ॐ शाश्वताय नमः॥ ॐ ध्रुवाय नमः॥ ॐ श्मशानवासिने नमः॥ ॐ भगवते नमः॥ ॐ खेचराय नमः॥ ॐ गोचराय नमः॥
ॐ अर्दनाय नमः॥ ॐ अभिवाद्याय नमः॥ ॐ महाकर्मणे नमः॥ ॐ तपस्विने नमः॥ ॐ भूतभावनाय नमः॥ ॐ उन्मत्तवेषप्रच्छन्नाय नमः॥ ॐ सर्वलोकप्रजापतये नमः॥ ॐ महारूपाय नमः॥ ॐ महाकायाय नमः॥ ॐ वृषरूपाय नमः॥
ॐ महायशसे नमः॥ ॐ महात्मने नमः॥ ॐ सर्वभूतात्मने नमः॥ ॐ विश्वरूपाय नमः॥ ॐ महाहनवे नमः॥ ॐ लोकपालाय नमः॥ ॐ अंतर्हितात्मने नमः॥ ॐ प्रसादाय नमः॥ ॐ हयगर्दभाय नमः॥ ॐ पवित्राय नमः॥ (50)
ॐ महते नमः॥ ॐ नियमाय नमः॥ ॐ नियमाश्रिताय नमः॥ ॐ सर्वकर्मणे नमः॥ ॐ स्वयंभूताय नमः॥ ॐ आदये नमः॥ ॐ आदिकराय नमः॥ ॐ निधये नमः॥ ॐ सहस्राक्षाय नमः॥ ॐ विशालाक्षाय नमः॥ ॐ सोमाय नमः॥ ॐ नक्षत्रसाधकाय नमः॥ ॐ चंद्राय नमः॥ ॐ सूर्याय नमः॥ ॐ शनये नमः॥ ॐ केतवे नमः॥ ॐ ग्रहाय नमः॥ ॐ ग्रहपतये नमः॥ ॐ वराय नमः॥ ॐ अत्रये नमः॥ ॐ अत्र्यानमस्कर्त्रे नमः॥ ॐ मृगबाणार्पणाय नमः॥ ॐ अनघाय नमः॥ ॐ महातपसे नमः॥ ॐ घोरतपसे नमः॥ ॐ अदीनाय नमः॥ ॐ दीनसाधककराय नमः॥ ॐ संवत्सरकराय नमः॥ ॐ मंत्राय नमः॥ ॐ प्रमाणाय नमः॥ ॐ परमन्तपाय नमः॥ ॐ योगिने नमः॥ ॐ योज्याय नमः॥ ॐ महाबीजाय नमः॥ ॐ महारेतसे नमः॥ ॐ महाबलाय नमः॥ ॐ सुवर्णरेतसे नमः॥ ॐ सर्वज्ञाय नमः॥ ॐ सुबीजाय नमः॥ ॐ बीजवाहनाय नमः॥ ॐ दशबाहवे नमः॥ ॐ अनिमिषाय नमः॥ ॐ नीलकण्ठाय नमः॥ ॐ उमापतये नमः॥ ॐ विश्वरूपाय नमः॥ ॐ स्वयंश्रेष्ठाय नमः॥ ॐ बलवीराय नमः॥ ॐ अबलोगणाय नमः॥ ॐ गणकर्त्रे नमः॥ ॐ गणपतये नमः॥ (100)
ॐ दिग्वाससे नमः॥ ॐ कामाय नमः॥ ॐ मंत्रविदे नमः॥ ॐ परममन्त्राय नमः॥ ॐ सर्वभावकराय नमः॥ ॐ हराय नमः॥ ॐ कमण्डलुधराय नमः॥ ॐ धन्विते नमः॥ ॐ बाणहस्ताय नमः॥ ॐ कपालवते नमः॥ ॐ अशनिने नमः॥ ॐ शतघ्निने नमः॥ ॐ खड्गिने नमः॥ ॐ पट्टिशिने नमः॥ ॐ आयुधिने नमः॥ ॐ महते नमः॥ ॐ स्रुवहस्ताय नमः॥ ॐ सुरूपाय नमः॥ ॐ तेजसे नमः॥ ॐ तेजस्करनिधये नमः॥
ॐ उष्णीषिणे नमः॥ ॐ सुवक्त्राय नमः॥ ॐ उदग्राय नमः॥ ॐ विनताय नमः॥ ॐ दीर्घाय नमः॥ ॐ हरिकेशाय नमः॥ ॐ सुतीर्थाय नमः॥ ॐ कृष्णाय नमः॥ ॐ श्रृगालरूपाय नमः॥ ॐ सिद्धार्थाय नमः॥
ॐ मुण्डाय नमः॥ ॐ सर्वशुभंकराय नमः॥ ॐ अजाय नमः॥ ॐ बहुरूपाय नमः॥ ॐ गन्धधारिणे नमः॥ ॐ कपर्दिने नमः॥ ॐ उर्ध्वरेतसे नमः॥ ॐ उर्ध्वलिंगाय नमः॥ ॐ उर्ध्वशायिने नमः॥ ॐ नभस्थलाय नमः॥ ॐ त्रिजटाय नमः॥ ॐ चीरवाससे नमः॥ ॐ रूद्राय नमः॥ ॐ सेनापतये नमः॥ ॐ विभवे नमः॥ ॐ अहश्चराय नमः॥ ॐ नक्तंचराय नमः॥ ॐ तिग्ममन्यवे नमः॥ ॐ सुवर्चसाय नमः॥ ॐ गजघ्ने नमः॥ (150)
ॐ दैत्यघ्ने नमः॥ ॐ कालाय नमः॥ ॐ लोकधात्रे नमः॥ ॐ गुणाकराय नमः॥ ॐ सिंहसार्दूलरूपाय नमः॥ ॐ आर्द्रचर्माम्बराय नमः॥ ॐ कालयोगिने नमः॥ ॐ महानादाय नमः॥ ॐ सर्वकामाय नमः॥ ॐ चतुष्पथाय नमः॥ ॐ निशाचराय नमः॥ ॐ प्रेतचारिणे नमः॥ ॐ भूतचारिणे नमः॥ ॐ महेश्वराय नमः॥ ॐ बहुभूताय नमः॥ ॐ बहुधराय नमः॥ ॐ स्वर्भानवे नमः॥ ॐ अमिताय नमः॥ ॐ गतये नमः॥ ॐ नृत्यप्रियाय नमः॥ ॐ नृत्यनर्ताय नमः॥ ॐ नर्तकाय नमः॥ ॐ सर्वलालसाय नमः॥ ॐ घोराय नमः॥ ॐ महातपसे नमः॥ ॐ पाशाय नमः॥ ॐ नित्याय नमः॥ ॐ गिरिरूहाय नमः॥ ॐ नभसे नमः॥ ॐ सहस्रहस्ताय नमः॥ ॐ विजयाय नमः॥ ॐ व्यवसायाय नमः॥ ॐ अतन्द्रियाय नमः॥ ॐ अधर्षणाय नमः॥ ॐ धर्षणात्मने नमः॥ ॐ यज्ञघ्ने नमः॥ ॐ कामनाशकाय नमः॥ ॐ दक्षयागापहारिणे नमः॥ ॐ सुसहाय नमः॥ ॐ मध्यमाय नमः॥ ॐ तेजोपहारिणे नमः॥ ॐ बलघ्ने नमः॥ ॐ मुदिताय नमः॥ ॐ अर्थाय नमः॥ ॐ अजिताय नमः॥ ॐ अवराय नमः॥ ॐ गम्भीरघोषाय नमः॥ ॐ गम्भीराय नमः॥ ॐ गंभीरबलवाहनाय नमः॥ ॐ न्यग्रोधरूपाय नमः॥ (200)
ॐ न्यग्रोधाय नमः॥ ॐ वृक्षकर्णस्थितये नमः॥ ॐ विभवे नमः॥ ॐ सुतीक्ष्णदशनाय नमः॥ ॐ महाकायाय नमः॥ ॐ महाननाय नमः॥ ॐ विश्वकसेनाय नमः॥ ॐ हरये नमः॥ ॐ यज्ञाय नमः॥ ॐ संयुगापीडवाहनाय नमः॥ ॐ तीक्ष्णतापाय नमः॥ ॐ हर्यश्वाय नमः॥ ॐ सहायाय नमः॥ ॐ कर्मकालविदे नमः॥ ॐ विष्णुप्रसादिताय नमः॥ ॐ यज्ञाय नमः॥ ॐ समुद्राय नमः॥ ॐ वडमुखाय नमः॥ ॐ हुताशनसहायाय नमः॥ ॐ प्रशान्तात्मने नमः॥ ॐ हुताशनाय नमः॥ ॐ उग्रतेजसे नमः॥ ॐ महातेजसे नमः॥ ॐ जन्याय नमः॥ ॐ विजयकालविदे नमः॥ ॐ ज्योतिषामयनाय नमः॥ ॐ सिद्धये नमः॥ ॐ सर्वविग्रहाय नमः॥ ॐ शिखिने नमः॥ ॐ मुण्डिने नमः॥ ॐ जटिने नमः॥ ॐ ज्वालिने नमः॥ ॐ मूर्तिजाय नमः॥ ॐ मूर्ध्दगाय नमः॥ ॐ बलिने नमः॥ ॐ वेणविने नमः॥ ॐ पणविने नमः॥ ॐ तालिने नमः॥ ॐ खलिने नमः॥ ॐ कालकंटकाय नमः॥ ॐ नक्षत्रविग्रहमतये नमः॥ ॐ गुणबुद्धये नमः॥ ॐ लयाय नमः॥ ॐ अगमाय नमः॥ ॐ प्रजापतये नमः॥ ॐ विश्वबाहवे नमः॥ ॐ विभागाय नमः॥ ॐ सर्वगाय नमः॥ ॐ अमुखाय नमः॥ ॐ विमोचनाय नमः॥ (250)
ॐ सुसरणाय नमः॥ ॐ हिरण्यकवचोद्भाय नमः॥ ॐ मेढ्रजाय नमः॥ ॐ बलचारिणे नमः॥ ॐ महीचारिणे नमः॥ ॐ स्रुत्याय नमः॥ ॐ सर्वतूर्यनिनादिने नमः॥ ॐ सर्वतोद्यपरिग्रहाय नमः॥ ॐ व्यालरूपाय नमः॥ ॐ गुहावासिने नमः॥ ॐ गुहाय नमः॥ ॐ मालिने नमः॥ ॐ तरंगविदे नमः॥ ॐ त्रिदशाय नमः॥ ॐ त्रिकालधृगे नमः॥ ॐ कर्मसर्वबन्ध-विमोचनाय नमः॥ ॐ असुरेन्द्राणां बन्धनाय नमः॥ ॐ युधि शत्रुवानाशिने नमः॥ ॐ सांख्यप्रसादाय नमः॥ ॐ दुर्वाससे नमः॥ ॐ सर्वसाधुनिषेविताय नमः॥ ॐ प्रस्कन्दनाय नमः॥ ॐ विभागज्ञाय नमः॥ ॐ अतुल्याय नमः॥ ॐ यज्ञविभागविदे नमः॥ ॐ सर्वचारिणे नमः॥ ॐ सर्ववासाय नमः॥ ॐ दुर्वाससे नमः॥ ॐ वासवाय नमः॥ ॐ अमराय नमः॥ ॐ हैमाय नमः॥ ॐ हेमकराय नमः॥ ॐ अयज्ञसर्वधारिणे नमः॥ ॐ धरोत्तमाय नमः॥ ॐ लोहिताक्षाय नमः॥ ॐ महाक्षाय नमः॥ ॐ विजयाक्षाय नमः॥ ॐ विशारदाय नमः॥ ॐ संग्रहाय नमः॥ ॐ निग्रहाय नमः॥ ॐ कर्त्रे नमः॥ ॐ सर्पचीरनिवसनाय नमः॥ ॐ मुख्याय नमः॥ ॐ अमुख्याय नमः॥ ॐ देहाय नमः॥ ॐ काहलये नमः॥ ॐ सर्वकामदाय नमः॥ ॐ सर्वकालप्रसादाय नमः॥ ॐ सुबलाय नमः॥ ॐ बलरूपधृगे नमः॥ (300)
ॐ सर्वकामवराय नमः॥ ॐ सर्वदाय नमः॥ ॐ सर्वतोमुखाय नमः॥ ॐ आकाशनिर्विरूपाय नमः॥ ॐ निपातिने नमः॥ ॐ अवशाय नमः॥ ॐ खगाय नमः॥ ॐ रौद्ररूपाय नमः॥ ॐ अंशवे नमः॥ ॐ आदित्याय नमः॥ ॐ बहुरश्मये नमः॥ ॐ सुवर्चसिने नमः॥ ॐ वसुवेगाय नमः॥ ॐ महावेगाय नमः॥ ॐ मनोवेगाय नमः॥ ॐ निशाचराय नमः॥ ॐ सर्ववासिने नमः॥ ॐ श्रियावासिने नमः॥ ॐ उपदेशकराय नमः॥ ॐ अकराय नमः॥ ॐ मुनये नमः॥ ॐ आत्मनिरालोकाय नमः॥ ॐ संभग्नाय नमः॥ ॐ सहस्रदाय नमः॥ ॐ पक्षिणे नमः॥ ॐ पक्षरूपाय नमः॥ ॐ अतिदीप्ताय नमः॥ ॐ विशाम्पतये नमः॥ ॐ उन्मादाय नमः॥ ॐ मदनाय नमः॥ ॐ कामाय नमः॥ ॐ अश्वत्थाय नमः॥ ॐ अर्थकराय नमः॥ ॐ यशसे नमः॥ ॐ वामदेवाय नमः॥ ॐ वामाय नमः॥ ॐ प्राचे नमः॥ ॐ दक्षिणाय नमः॥ ॐ वामनाय नमः॥ ॐ सिद्धयोगिने नमः॥ ॐ महर्षये नमः॥ ॐ सिद्धार्थाय नमः॥ ॐ सिद्धसाधकाय नमः॥ ॐ भिक्षवे नमः॥ ॐ भिक्षुरूपाय नमः॥ ॐ विपणाय नमः॥ ॐ मृदवे नमः॥ ॐ अव्ययाय नमः॥ ॐ महासेनाय नमः॥ ॐ विशाखाय नमः॥ (350)
ॐ षष्टिभागाय नमः॥ ॐ गवाम्पतये नमः॥ ॐ वज्रहस्ताय नमः॥ ॐ विष्कम्भिने नमः॥ ॐ चमुस्तंभनाय नमः॥ ॐ वृत्तावृत्तकराय नमः॥ ॐ तालाय नमः॥ ॐ मधवे नमः॥ ॐ मधुकलोचनाय नमः॥ ॐ वाचस्पतये नमः॥ ॐ वाजसनाय नमः॥ ॐ नित्यमाश्रमपूजिताय नमः॥ ॐ ब्रह्मचारिणे नमः॥ ॐ लोकचारिणे नमः॥ ॐ सर्वचारिणे नमः॥ ॐ विचारविदे नमः॥ ॐ ईशानाय नमः॥ ॐ ईश्वराय नमः॥ ॐ कालाय नमः॥ ॐ निशाचारिणे नमः॥ ॐ पिनाकधृगे नमः॥ ॐ निमितस्थाय नमः॥ ॐ निमित्ताय नमः॥ ॐ नन्दये नमः॥ ॐ नन्दिकराय नमः॥ ॐ हरये नमः॥ ॐ नन्दीश्वराय नमः॥ ॐ नन्दिने नमः॥ ॐ नन्दनाय नमः॥ ॐ नंन्दीवर्धनाय नमः॥ ॐ भगहारिणे नमः॥ ॐ निहन्त्रे नमः॥ ॐ कालाय नमः॥ ॐ ब्रह्मणे नमः॥ ॐ पितामहाय नमः॥ ॐ चतुर्मुखाय नमः॥ ॐ महालिंगाय नमः॥ ॐ चारूलिंगाय नमः॥ ॐ लिंगाध्यक्षाय नमः॥ ॐ सुराध्यक्षाय नमः॥ ॐ योगाध्यक्षाय नमः॥ ॐ युगावहाय नमः॥ ॐ बीजाध्यक्षाय नमः॥ ॐ बीजकर्त्रे नमः॥ ॐ अध्यात्मानुगताय नमः॥ ॐ बलाय नमः॥ ॐ इतिहासाय नमः॥ ॐ सकल्पाय नमः॥ ॐ गौतमाय नमः॥ ॐ निशाकराय नमः॥ (400)
ॐ दम्भाय नमः॥ ॐ अदम्भाय नमः॥ ॐ वैदम्भाय नमः॥ ॐ वश्याय नमः॥ ॐ वशकराय नमः॥ ॐ कलये नमः॥ ॐ लोककर्त्रे नमः॥ ॐ पशुपतये नमः॥ ॐ महाकर्त्रे नमः॥ ॐ अनौषधाय नमः॥ ॐ अक्षराय नमः॥ ॐ परब्रह्मणे नमः॥ ॐ बलवते नमः॥ ॐ शक्राय नमः॥ ॐ नीतये नमः॥ ॐ अनीतये नमः॥ ॐ शुद्धात्मने नमः॥ ॐ मान्याय नमः॥ ॐ शुद्धाय नमः॥ ॐ गतागताय नमः॥ ॐ बहुप्रसादाय नमः॥ ॐ सुस्पप्नाय नमः॥ ॐ दर्पणाय नमः॥ ॐ अमित्रजिते नमः॥ ॐ वेदकराय नमः॥ ॐ मंत्रकराय नमः॥ ॐ विदुषे नमः॥ ॐ समरमर्दनाय नमः॥ ॐ महामेघनिवासिने नमः॥ ॐ महाघोराय नमः॥ ॐ वशिने नमः॥ ॐ कराय नमः॥ ॐ अग्निज्वालाय नमः॥ ॐ महाज्वालाय नमः॥ ॐ अतिधूम्राय नमः॥ ॐ हुताय नमः॥ ॐ हविषे नमः॥ ॐ वृषणाय नमः॥ ॐ शंकराय नमः॥ ॐ नित्यंवर्चस्विने नमः॥ ॐ धूमकेताय नमः॥ ॐ नीलाय नमः॥ ॐ अंगलुब्धाय नमः॥ ॐ शोभनाय नमः॥ ॐ निरवग्रहाय नमः॥ ॐ स्वस्तिदायकाय नमः॥ ॐ स्वस्तिभावाय नमः॥ ॐ भागिने नमः॥ ॐ भागकराय नमः॥ ॐ लघवे नमः॥(450)
ॐ उत्संगाय नमः॥ ॐ महांगाय नमः॥ ॐ महागर्भपरायणाय नमः॥ ॐ कृष्णवर्णाय नमः॥ ॐ सुवर्णाय नमः॥ ॐ सर्वदेहिनामिनिन्द्राय नमः॥ ॐ महापादाय नमः॥ ॐ महाहस्ताय नमः॥ ॐ महाकायाय नमः॥ ॐ महायशसे नमः॥ ॐ महामूर्धने नमः॥ ॐ महामात्राय नमः॥ ॐ महानेत्राय नमः॥ ॐ निशालयाय नमः॥ ॐ महान्तकाय नमः॥ ॐ महाकर्णाय नमः॥ ॐ महोष्ठाय नमः॥ ॐ महाहनवे नमः॥ ॐ महानासाय नमः॥ ॐ महाकम्बवे नमः॥ ॐ महाग्रीवाय नमः॥ ॐ श्मशानभाजे नमः॥ ॐ महावक्षसे नमः॥ ॐ महोरस्काय नमः॥ ॐ अंतरात्मने नमः॥ ॐ मृगालयाय नमः॥ ॐ लंबनाय नमः॥ ॐ लम्बितोष्ठाय नमः॥ ॐ महामायाय नमः॥ ॐ पयोनिधये नमः॥ ॐ महादन्ताय नमः॥ ॐ महाद्रष्टाय नमः॥ ॐ महाजिह्वाय नमः॥ ॐ महामुखाय नमः॥ ॐ महारोम्णे नमः॥ ॐ महाकोशाय नमः॥ ॐ महाजटाय नमः॥ ॐ प्रसन्नाय नमः॥ ॐ प्रसादाय नमः॥ ॐ प्रत्ययाय नमः॥ ॐ गिरिसाधनाय नमः॥ ॐ स्नेहनाय नमः॥ ॐ अस्नेहनाय नमः॥ ॐ अजिताय नमः॥ ॐ महामुनये नमः॥ ॐ वृक्षाकाराय नमः॥ ॐ वृक्षकेतवे नमः॥ ॐ अनलाय नमः॥ ॐ वायुवाहनाय नमः॥ (500)
ॐ गण्डलिने नमः॥
ॐ मेरूधाम्ने नमः॥
ॐ देवाधिपतये नमः॥
ॐ अथर्वशीर्षाय नमः॥
ॐ सामास्या नमः॥
ॐ ऋक्सहस्रामितेक्षणाय नमः॥
ॐ यजुः॥ पादभुजाय नमः॥
ॐ गुह्याय नमः॥
ॐ प्रकाशाय नमः॥
ॐ जंगमाय नमः॥
ॐ अमोघार्थाय नमः॥
ॐ प्रसादाय नमः॥
ॐ अभिगम्याय नमः॥
ॐ सुदर्शनाय नमः॥
ॐ उपकाराय नमः॥
ॐ प्रियाय नमः॥
ॐ सर्वाय नमः॥
ॐ कनकाय नमः॥
ॐ काञ्चनवच्छये नमः॥
ॐ नाभये नमः॥
ॐ नन्दिकराय नमः॥
ॐ भावाय नमः॥
ॐ पुष्करथपतये नमः॥
ॐ स्थिराय नमः॥
ॐ द्वादशाय नमः॥
ॐ त्रासनाय नमः॥
ॐ आद्याय नमः॥
ॐ यज्ञाय नमः॥
ॐ यज्ञसमाहिताय नमः॥
ॐ नक्तंस्वरूपाय नमः॥
ॐ कलये नमः॥
ॐ कालाय नमः॥
ॐ मकराय नमः॥
ॐ कालपूजिताय नमः॥
ॐ सगणाय नमः॥
ॐ गणकराय नमः॥
ॐ भूतवाहनसारथये नमः॥
ॐ भस्मशयाय नमः॥
ॐ भस्मगोप्त्रे नमः॥
ॐ भस्मभूताय नमः॥
ॐ तरवे नमः॥
ॐ गणाय नमः॥
ॐ लोकपालाय नमः॥
ॐ आलोकाय नमः॥
ॐ महात्मने नमः॥
ॐ सर्वपूजिताय नमः॥
ॐ शुक्लाय नमः॥
ॐ त्रिशुक्लाय नमः॥
ॐ संपन्नाय नमः॥
ॐ शुचये नमः॥ (550)
ॐ भूतनिशेविताय नमः॥
ॐ आश्रमस्थाय नमः॥
ॐ क्रियावस्थाय नमः॥
ॐ विश्वकर्ममतये नमः॥
ॐ वराय नमः॥
ॐ विशालशाखाय नमः॥
ॐ ताम्रोष्ठाय नमः॥
ॐ अम्बुजालाय नमः॥
ॐ सुनिश्चलाय नमः॥
ॐ कपिलाय नमः॥
ॐ कपिशाय नमः॥
ॐ शुक्लाय नमः॥
ॐ आयुषे नमः॥
ॐ पराय नमः॥
ॐ अपराय नमः॥
ॐ गंधर्वाय नमः॥
ॐ अदितये नमः॥
ॐ ताक्ष्याय नमः॥
ॐ सुविज्ञेयाय नमः॥
ॐ सुशारदाय नमः॥
ॐ परश्वधायुधाय नमः॥
ॐ देवाय नमः॥
ॐ अनुकारिणे नमः॥
ॐ सुबान्धवाय नमः॥
ॐ तुम्बवीणाय नमः॥
ॐ महाक्रोधाय नमः॥
ॐ ऊर्ध्वरेतसे नमः॥
ॐ जलेशयाय नमः॥
ॐ उग्राय नमः॥
ॐ वंशकराय नमः॥
ॐ वंशाय नमः॥
ॐ वंशानादाय नमः॥
ॐ अनिन्दिताय नमः॥
ॐ सर्वांगरूपाय नमः॥
ॐ मायाविने नमः॥
ॐ सुहृदे नमः॥
ॐ अनिलाय नमः॥
ॐ अनलाय नमः॥
ॐ बन्धनाय नमः॥
ॐ बन्धकर्त्रे नमः॥
ॐ सुवन्धनविमोचनाय नमः॥
ॐ सयज्ञयारये नमः॥
ॐ सकामारये नमः॥
ॐ महाद्रष्टाय नमः॥
ॐ महायुधाय नमः॥
ॐ बहुधानिन्दिताय नमः॥
ॐ शर्वाय नमः॥
ॐ शंकराय नमः॥
ॐ शं कराय नमः॥
ॐ अधनाय नमः॥ (600)
ॐ अमरेशाय नमः॥
ॐ महादेवाय नमः॥
ॐ विश्वदेवाय नमः॥
ॐ सुरारिघ्ने नमः॥
ॐ अहिर्बुद्धिन्याय नमः॥
ॐ अनिलाभाय नमः॥
ॐ चेकितानाय नमः॥
ॐ हविषे नमः॥
ॐ अजैकपादे नमः॥
ॐ कापालिने नमः॥
ॐ त्रिशंकवे नमः॥
ॐ अजिताय नमः॥
ॐ शिवाय नमः॥
ॐ धन्वन्तरये नमः॥
ॐ धूमकेतवे नमः॥
ॐ स्कन्दाय नमः॥
ॐ वैश्रवणाय नमः॥
ॐ धात्रे नमः॥
ॐ शक्राय नमः॥
ॐ विष्णवे नमः॥
ॐ मित्राय नमः॥
ॐ त्वष्ट्रे नमः॥
ॐ ध्रुवाय नमः॥
ॐ धराय नमः॥
ॐ प्रभावाय नमः॥
ॐ सर्वगोवायवे नमः॥
ॐ अर्यम्णे नमः॥
ॐ सवित्रे नमः॥
ॐ रवये नमः॥
ॐ उषंगवे नमः॥
ॐ विधात्रे नमः॥
ॐ मानधात्रे नमः॥
ॐ भूतवाहनाय नमः॥
ॐ विभवे नमः॥
ॐ वर्णविभाविने नमः॥
ॐ सर्वकामगुणवाहनाय नमः॥
ॐ पद्मनाभाय नमः॥
ॐ महागर्भाय नमः॥
चन्द्रवक्त्राय नमः॥
ॐ अनिलाय नमः॥
ॐ अनलाय नमः॥
ॐ बलवते नमः॥
ॐ उपशान्ताय नमः॥
ॐ पुराणाय नमः॥
ॐ पुण्यचञ्चवे नमः॥
ॐ ईरूपाय नमः॥
ॐ कुरूकर्त्रे नमः॥
ॐ कुरूवासिने नमः॥
ॐ कुरूभूताय नमः॥
ॐ गुणौषधाय नमः॥ (650)
ॐ सर्वाशयाय नमः॥
ॐ दर्भचारिणे नमः॥
ॐ सर्वप्राणिपतये नमः॥
ॐ देवदेवाय नमः॥
ॐ सुखासक्ताय नमः॥
ॐ सत स्वरूपाय नमः॥
ॐ असत् रूपाय नमः॥
ॐ सर्वरत्नविदे नमः॥
ॐ कैलाशगिरिवासने नमः॥
ॐ हिमवद्गिरिसंश्रयाय नमः॥
ॐ कूलहारिणे नमः॥
ॐ कुलकर्त्रे नमः॥
ॐ बहुविद्याय नमः॥
ॐ बहुप्रदाय नमः॥
ॐ वणिजाय नमः॥
ॐ वर्धकिने नमः॥
ॐ वृक्षाय नमः॥
ॐ बकुलाय नमः॥
ॐ चंदनाय नमः॥
ॐ छदाय नमः॥
ॐ सारग्रीवाय नमः॥
ॐ महाजत्रवे नमः॥
ॐ अलोलाय नमः॥
ॐ महौषधाय नमः॥
ॐ सिद्धार्थकारिणे नमः॥
ॐ छन्दोव्याकरणोत्तर-सिद्धार्थाय नमः॥
ॐ सिंहनादाय नमः॥
ॐ सिंहद्रंष्टाय नमः॥
ॐ सिंहगाय नमः॥
ॐ सिंहवाहनाय नमः॥
ॐ प्रभावात्मने नमः॥
ॐ जगतकालस्थालाय नमः॥
ॐ लोकहिताय नमः॥
ॐ तरवे नमः॥
ॐ सारंगाय नमः॥
ॐ नवचक्रांगाय नमः॥
ॐ केतुमालिने नमः॥
ॐ सभावनाय नमः॥
ॐ भूतालयाय नमः॥
ॐ भूतपतये नमः॥
ॐ अहोरात्राय नमः॥
ॐ अनिन्दिताय नमः॥
ॐ सर्वभूतवाहित्रे नमः॥
ॐ सर्वभूतनिलयाय नमः॥
ॐ विभवे नमः॥
ॐ भवाय नमः॥
ॐ अमोघाय नमः॥
ॐ संयताय नमः॥
ॐ अश्वाय नमः॥
ॐ भोजनाय नमः॥(700)
ॐ प्राणधारणाय नमः॥
ॐ धृतिमते नमः॥
ॐ मतिमते नमः॥
ॐ दक्षाय नमः॥
ॐ सत्कृयाय नमः॥
ॐ युगाधिपाय नमः॥
ॐ गोपाल्यै नमः॥
ॐ गोपतये नमः॥
ॐ ग्रामाय नमः॥
ॐ गोचर्मवसनाय नमः॥
ॐ हरये नमः॥
ॐ हिरण्यबाहवे नमः॥
ॐ प्रवेशिनांगुहापालाय नमः॥
ॐ प्रकृष्टारये नमः॥
ॐ महाहर्षाय नमः॥
ॐ जितकामाय नमः॥
ॐ जितेन्द्रियाय नमः॥
ॐ गांधाराय नमः॥
ॐ सुवासाय नमः॥
ॐ तपः॥सक्ताय नमः॥
ॐ रतये नमः॥
ॐ नराय नमः॥
ॐ महागीताय नमः॥
ॐ महानृत्याय नमः॥
ॐ अप्सरोगणसेविताय नमः॥
ॐ महाकेतवे नमः॥
ॐ महाधातवे नमः॥
ॐ नैकसानुचराय नमः॥
ॐ चलाय नमः॥
ॐ आवेदनीयाय नमः॥
ॐ आदेशाय नमः॥
ॐ सर्वगंधसुखावहाय नमः॥
ॐ तोरणाय नमः॥
ॐ तारणाय नमः॥
ॐ वाताय नमः॥
ॐ परिधये नमः॥
ॐ पतिखेचराय नमः॥
ॐ संयोगवर्धनाय नमः॥
ॐ वृद्धाय नमः॥
ॐ गुणाधिकाय नमः॥
ॐ अतिवृद्धाय नमः॥
ॐ नित्यात्मसहायाय नमः॥
ॐ देवासुरपतये नमः॥
ॐ पत्ये नमः॥
ॐ युक्ताय नमः॥
ॐ युक्तबाहवे नमः॥
ॐ दिविसुपर्वदेवाय नमः॥
ॐ आषाढाय नमः॥
ॐ सुषाढ़ाय नमः॥
ॐ ध्रुवाय नमः॥ (750)
ॐ हरिणाय नमः॥
ॐ हराय नमः॥
ॐ आवर्तमानवपुषे नमः॥
ॐ वसुश्रेष्ठाय नमः॥
ॐ महापथाय नमः॥
ॐ विमर्षशिरोहारिणे नमः॥
ॐ सर्वलक्षणलक्षिताय नमः॥
ॐ अक्षरथयोगिने नमः॥
ॐ सर्वयोगिने नमः॥
ॐ महाबलाय नमः॥
ॐ समाम्नायाय नमः॥
ॐ असाम्नायाय नमः॥
ॐ तीर्थदेवाय नमः॥
ॐ महारथाय नमः॥
ॐ निर्जीवाय नमः॥
ॐ जीवनाय नमः॥
ॐ मंत्राय नमः॥
ॐ शुभाक्षाय नमः॥
ॐ बहुकर्कशाय नमः॥
ॐ रत्नप्रभूताय नमः॥
ॐ रत्नांगाय नमः॥
ॐ महार्णवनिपानविदे नमः॥
ॐ मूलाय नमः॥
ॐ विशालाय नमः॥
ॐ अमृताय नमः॥
ॐ व्यक्ताव्यवक्ताय नमः॥
ॐ तपोनिधये नमः॥
ॐ आरोहणाय नमः॥
ॐ अधिरोहाय नमः॥
ॐ शीलधारिणे नमः॥
ॐ महायशसे नमः॥
ॐ सेनाकल्पाय नमः॥
ॐ महाकल्पाय नमः॥
ॐ योगाय नमः॥
ॐ युगकराय नमः॥
ॐ हरये नमः॥
ॐ युगरूपाय नमः॥
ॐ महारूपाय नमः॥
ॐ महानागहतकाय नमः॥
ॐ अवधाय नमः॥
ॐ न्यायनिर्वपणाय नमः॥
ॐ पादाय नमः॥
ॐ पण्डिताय नमः॥
ॐ अचलोपमाय नमः॥
ॐ बहुमालाय नमः॥
ॐ महामालाय नमः॥
ॐ शशिहरसुलोचनाय नमः॥
ॐ विस्तारलवणकूपाय नमः॥
ॐ त्रिगुणाय नमः॥
ॐ सफलोदयाय नमः॥ (800)
ॐ त्रिलोचनाय नमः॥
ॐ विषण्डागाय नमः॥
ॐ मणिविद्धाय नमः॥
ॐ जटाधराय नमः॥
ॐ बिन्दवे नमः॥
ॐ विसर्गाय नमः॥
ॐ सुमुखाय नमः॥
ॐ शराय नमः॥
ॐ सर्वायुधाय नमः॥
ॐ सहाय नमः॥
ॐ सहाय नमः॥
ॐ निवेदनाय नमः॥
ॐ सुखाजाताय नमः॥
ॐ सुगन्धराय नमः॥
ॐ महाधनुषे नमः॥
ॐ गंधपालिभगवते नमः॥
ॐ सर्वकर्मोत्थानाय नमः॥
ॐ मन्थानबहुलवायवे नमः॥
ॐ सकलाय नमः॥
ॐ सर्वलोचनाय नमः॥
ॐ तलस्तालाय नमः॥
ॐ करस्थालिने नमः॥
ॐ ऊर्ध्वसंहननाय नमः॥
ॐ महते नमः॥
ॐ छात्राय नमः॥
ॐ सुच्छत्राय नमः॥
ॐ विख्यातलोकाय नमः॥
ॐ सर्वाश्रयक्रमाय नमः॥
ॐ मुण्डाय नमः॥
ॐ विरूपाय नमः॥
ॐ विकृताय नमः॥
ॐ दण्डिने नमः॥
ॐ कुदण्डिने नमः॥
ॐ विकुर्वणाय नमः॥
ॐ हर्यक्षाय नमः॥
ॐ ककुभाय नमः॥
ॐ वज्रिणे नमः॥
ॐ शतजिह्वाय नमः॥
ॐ सहस्रपदे नमः॥
ॐ देवेन्द्राय नमः॥
ॐ सर्वदेवमयाय नमः॥
ॐ गुरवे नमः॥
ॐ सहस्रबाहवे नमः॥
ॐ सर्वांगाय नमः॥
ॐ शरण्याय नमः॥
ॐ सर्वलोककृते नमः॥
ॐ पवित्राय नमः॥
ॐ त्रिककुन्मंत्राय नमः॥
ॐ कनिष्ठाय नमः॥
ॐ कृष्णपिंगलाय नमः॥ (850)
ॐ ब्रह्मदण्डविनिर्मात्रे नमः॥
ॐ शतघ्नीपाशशक्तिमते नमः॥
ॐ पद्मगर्भाय नमः॥
ॐ महागर्भाय नमः॥
ॐ ब्रह्मगर्भाय नमः॥
ॐ जलोद्भावाय नमः॥
ॐ गभस्तये नमः॥
ॐ ब्रह्मकृते नमः॥
ॐ ब्रह्मिणे नमः॥
ॐ ब्रह्मविदे नमः॥
ॐ ब्राह्मणाय नमः॥
ॐ गतये नमः॥
ॐ अनंतरूपाय नमः॥
ॐ नैकात्मने नमः॥
ॐ स्वयंभुवतिग्मतेजसे नमः॥
ॐ उर्ध्वगात्मने नमः॥
ॐ पशुपतये नमः॥
ॐ वातरंहसे नमः॥
ॐ मनोजवाय नमः॥
ॐ चंदनिने नमः॥
ॐ पद्मनालाग्राय नमः॥
ॐ सुरभ्युत्तारणाय नमः॥
ॐ नराय नमः॥
ॐ कर्णिकारमहास्रग्विणमे नमः॥
ॐ नीलमौलये नमः॥
ॐ पिनाकधृषे नमः॥
ॐ उमापतये नमः॥
ॐ उमाकान्ताय नमः॥
ॐ जाह्नवीधृषे नमः॥
ॐ उमादवाय नमः॥
ॐ वरवराहाय नमः॥
ॐ वरदाय नमः॥
ॐ वरेण्याय नमः॥
ॐ सुमहास्वनाय नमः॥
ॐ महाप्रसादाय नमः॥
ॐ दमनाय नमः॥
ॐ शत्रुघ्ने नमः॥
ॐ श्वेतपिंगलाय नमः॥
ॐ पीतात्मने नमः॥
ॐ परमात्मने नमः॥
ॐ प्रयतात्मने नमः॥
ॐ प्रधानधृषे नमः॥
ॐ सर्वपार्श्वमुखाय नमः॥
ॐ त्रक्षाय नमः॥
ॐ धर्मसाधारणवराय नमः॥
ॐ चराचरात्मने नमः॥
ॐ सूक्ष्मात्मने नमः॥
ॐ अमृतगोवृषेश्वराय नमः॥
ॐ साध्यर्षये नमः॥
ॐ आदित्यवसवे नमः॥ (900)
ॐ विवस्वत्सवित्रमृताय नमः॥
ॐ व्यासाय नमः॥
ॐ सर्गसुसंक्षेपविस्तराय नमः॥
ॐ पर्ययोनराय नमः॥
ॐ ऋतवे नमः॥
ॐ संवत्सराय नमः॥
ॐ मासाय नमः॥
ॐ पक्षाय नमः॥
ॐ संख्यासमापनाय नमः॥
ॐ कलायै नमः॥
ॐ काष्ठायै नमः॥
ॐ लवेभ्यो नमः॥
ॐ मात्रेभ्यो नमः॥
ॐ मुहूर्ताहः॥क्षपाभ्यो नमः॥
ॐ क्षणेभ्यो नमः॥
ॐ विश्वक्षेत्राय नमः॥
ॐ प्रजाबीजाय नमः॥
ॐ लिंगाय नमः॥
ॐ आद्यनिर्गमाय नमः॥
ॐ सत् स्वरूपाय नमः॥
ॐ असत् रूपाय नमः॥
ॐ व्यक्ताय नमः॥
ॐ अव्यक्ताय नमः॥
ॐ पित्रे नमः॥
ॐ मात्रे नमः॥
ॐ पितामहाय नमः॥
ॐ स्वर्गद्वाराय नमः॥
ॐ प्रजाद्वाराय नमः॥
ॐ मोक्षद्वाराय नमः॥
ॐ त्रिविष्टपाय नमः॥
ॐ निर्वाणाय नमः॥
ॐ ह्लादनाय नमः॥
ॐ ब्रह्मलोकाय नमः॥
ॐ परागतये नमः॥
ॐ देवासुरविनिर्मात्रे नमः॥
ॐ देवासुरपरायणाय नमः॥
ॐ देवासुरगुरूवे नमः॥
ॐ देवाय नमः॥
ॐ देवासुरनमस्कृताय नमः॥
ॐ देवासुरमहामात्राय नमः॥
ॐ देवासुरमहामात्राय नमः॥
ॐ देवासुरगणाश्रयाय नमः॥
ॐ देवासुरगणाध्यक्षाय नमः॥
ॐ देवासुरगणाग्रण्ये नमः॥
ॐ देवातिदेवाय नमः॥
ॐ देवर्षये नमः॥
ॐ देवासुरवरप्रदाय नमः॥
ॐ विश्वाय नमः॥
ॐ देवासुरमहेश्वराय नमः॥
ॐ सर्वदेवमयाय नमः॥(950)
ॐ अचिंत्याय नमः॥
ॐ देवात्मने नमः॥
ॐ आत्मसंबवाय नमः॥
ॐ उद्भिदे नमः॥
ॐ त्रिविक्रमाय नमः॥
ॐ वैद्याय नमः॥
ॐ विरजाय नमः॥
ॐ नीरजाय नमः॥
ॐ अमराय नमः॥
ॐ इड्याय नमः॥
ॐ हस्तीश्वराय नमः॥
ॐ व्याघ्राय नमः॥
ॐ देवसिंहाय नमः॥
ॐ नरर्षभाय नमः॥
ॐ विभुदाय नमः॥
ॐ अग्रवराय नमः॥
ॐ सूक्ष्माय नमः॥
ॐ सर्वदेवाय नमः॥
ॐ तपोमयाय नमः॥
ॐ सुयुक्ताय नमः॥
ॐ शोभनाय नमः॥
ॐ वज्रिणे नमः॥
ॐ प्रासानाम्प्रभवाय नमः॥
ॐ अव्ययाय नमः॥
ॐ गुहाय नमः॥
ॐ कान्ताय नमः॥
ॐ निजसर्गाय नमः॥
ॐ पवित्राय नमः॥
ॐ सर्वपावनाय नमः॥
ॐ श्रृंगिणे नमः॥
ॐ श्रृंगप्रियाय नमः॥
ॐ बभ्रवे नमः॥
ॐ राजराजाय नमः॥
ॐ निरामयाय नमः॥
ॐ अभिरामाय नमः॥
ॐ सुरगणाय नमः॥
ॐ विरामाय नमः॥
ॐ सर्वसाधनाय नमः॥
ॐ ललाटाक्षाय नमः॥
ॐ विश्वदेवाय नमः॥
ॐ हरिणाय नमः॥
ॐ ब्रह्मवर्चसे नमः॥
ॐ स्थावरपतये नमः॥
ॐ नियमेन्द्रियवर्धनाय नमः॥
ॐ सिद्धार्थाय नमः॥
ॐ सिद्धभूतार्थाय नमः॥
ॐ अचिन्ताय नमः॥
ॐ सत्यव्रताय नमः॥
ॐ शुचये नमः॥
ॐ व्रताधिपाय नमः॥
ॐ पराय नमः॥
ॐ ब्रह्मणे नमः॥
ॐ भक्तानांपरमागतये नमः॥
ॐ विमुक्ताय नमः॥
ॐ मुक्ततेजसे नमः॥
ॐ श्रीमते नमः॥
ॐ श्रीवर्धनाय नमः॥
ॐ श्री जगते नमः॥ (1000
ॐ पूर्णमदः॥ पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।
ॐ शांतिः॥ शांतिः॥ शांतिः॥










हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

अमोघ शिव कवच



अमोघ शिव कवच और उसके प्रयोग—
मै आज सर्व साधारण व समस्त आस्तिक भक्तो के लाभार्थ अति प्राचीन सिद्धीप्रद अमोघ शिव कवच प्रयोग दे रहा हूँ | इसके शुद्ध सत्य अनुष्ठान से भयंकर से भयंकर विपत्ति से छुटकारा मिल जाता है और भगवान आशुतोष की कृपा हो जाती है |
।।श्रीगणेशाय नम:।।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशिवकवचस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: अनुष्टप् छन्द:। श्रीसदाशिवरुद्रो देवता। ह्रीं शक्‍ति:। रं कीलकम्। श्रीं ह्री क्लीं बीजम्। श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थे शिवकवचस्तोत्रजपे विनियोग:।
करन्यास
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम:|
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्याम नम: |
अंगन्यास
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने हृदयाय नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने शिरसे स्वाहा |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने शिखायै वषट |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने नेत्रत्रयाय वौषट |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कवचाय हुम |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने अस्त्राय फट |
अथ दिग्बन्धन: —
ॐ भूर्भुव: स्व: |
ध्यानम—
कर्पुरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम |
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ||
।।ऋषभ उवाच।।
अथापरं सर्वपुराणगुह्यं निशे:षपापौघहरं पवित्रम् ।
जयप्रदं सर्वविपत्प्रमोचनं वक्ष्यामि शैवं कवचं हिताय ते ॥ २ ॥
नमस्कृत्य महादेवं विश्‍वव्यापिनमीश्‍वरम्।
वक्ष्ये शिवमयं वर्म सर्वरक्षाकरं नृणाम् ॥ ३ ॥
शुचौ देशे समासीनो यथावत्कल्पितासन: ।
जितेन्द्रियो जितप्राणश्‍चिंतयेच्छिवमव्ययम् ॥ ४ ॥
ह्रत्पुंडरीक तरसन्निविष्टं स्वतेजसा व्याप्तनभोवकाशम् ।
अतींद्रियं सूक्ष्ममनंतताद्यंध्यायेत्परानंदमयं महेशम् ॥ ५ ॥
ध्यानावधूताखिलकर्मबन्धश्‍चरं चितानन्दनिमग्नचेता: ।
षडक्षरन्याससमाहितात्मा शैवेन कुर्यात्कवचेन रक्षाम् ॥ ६ ॥
मां पातु देवोऽखिलदेवत्मा संसारकूपे पतितं गंभीरे
तन्नाम दिव्यं वरमंत्रमूलं धुनोतु मे सर्वमघं ह्रदिस्थम् ॥ ७ ॥
सर्वत्रमां रक्षतु विश्‍वमूर्तिर्ज्योतिर्मयानंदघनश्‍चिदात्मा ।
अणोरणीयानुरुशक्‍तिरेक: स ईश्‍वर: पातु भयादशेषात् ॥ ८ ॥
यो भूस्वरूपेण बिर्भीत विश्‍वं पायात्स भूमेर्गिरिशोऽष्टमूर्ति: ॥
योऽपांस्वरूपेण नृणां करोति संजीवनं सोऽवतु मां जलेभ्य: ॥ ९ ॥
कल्पावसाने भुवनानि दग्ध्वा सर्वाणि यो नृत्यति भूरिलील: ।
स कालरुद्रोऽवतु मां दवाग्नेर्वात्यादिभीतेरखिलाच्च तापात् ॥ १० ॥
प्रदीप्तविद्युत्कनकावभासो विद्यावराभीति कुठारपाणि: ।
चतुर्मुखस्तत्पुरुषस्त्रिनेत्र: प्राच्यां स्थितं रक्षतु मामजस्त्रम् ॥ ११ ॥
कुठारवेदांकुशपाशशूलकपालढक्काक्षगुणान् दधान: ।
चतुर्मुखोनीलरुचिस्त्रिनेत्र: पायादघोरो दिशि दक्षिणस्याम् ॥ १२ ॥
कुंदेंदुशंखस्फटिकावभासो वेदाक्षमाला वरदाभयांक: ।
त्र्यक्षश्‍चतुर्वक्र उरुप्रभाव: सद्योधिजातोऽवस्तु मां प्रतीच्याम् ॥ १३ ॥
वराक्षमालाभयटंकहस्त: सरोज किंजल्कसमानवर्ण: ।
त्रिलोचनश्‍चारुचतुर्मुखो मां पायादुदीच्या दिशि वामदेव: ॥ १४ ॥
वेदाभ्येष्टांकुशपाश टंककपालढक्काक्षकशूलपाणि: ॥
सितद्युति: पंचमुखोऽवतान्मामीशान ऊर्ध्वं परमप्रकाश: ॥ १५ ॥
मूर्धानमव्यान्मम चंद्रमौलिर्भालं ममाव्यादथ भालनेत्र: ।
नेत्रे ममा व्याद्भगनेत्रहारी नासां सदा रक्षतु विश्‍वनाथ: ॥ १६ ॥
पायाच्छ्र ती मे श्रुतिगीतकीर्ति: कपोलमव्यात्सततं कपाली ।
वक्रं सदा रक्षतु पंचवक्रो जिह्वां सदा रक्षतु वेदजिह्व: ॥ १७ ॥
कंठं गिरीशोऽवतु नीलकण्ठ: पाणि: द्वयं पातु: पिनाकपाणि: ।
दोर्मूलमव्यान्मम धर्मवाहुर्वक्ष:स्थलं दक्षमखातकोऽव्यात् ॥ १८ ॥
मनोदरं पातु गिरींद्रधन्वा मध्यं ममाव्यान्मदनांतकारी ।
हेरंबतातो मम पातु नाभिं पायात्कटिं धूर्जटिरीश्‍वरो मे ॥ १९ ॥
ऊरुद्वयं पातु कुबेरमित्रो जानुद्वयं मे जगदीश्‍वरोऽव्यात् ।
जंघायुगंपुंगवकेतुख्यातपादौ ममाव्यत्सुरवंद्यपाद: ॥ २० ॥
महेश्‍वर: पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेव: ॥
त्रिलोचन: पातु तृतीययामे वृषध्वज: पातु दिनांत्ययामे ॥ २१ ॥
पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गंगाधरो रक्षतु मां निशीथे ।
गौरी पति: पातु निशावसाने मृत्युंजयो रक्षतु सर्वकालम् ॥ २२ ॥
अन्त:स्थितं रक्षतु शंकरो मां स्थाणु: सदापातु बहि: स्थित माम् ।
तदंतरे पातु पति: पशूनां सदाशिवोरक्षतु मां समंतात् ॥ २३ ॥
तिष्ठतमव्याद्‍भुवनैकनाथ: पायाद्‍व्रजंतं प्रथमाधिनाथ: ।
वेदांतवेद्योऽवतु मां निषण्णं मामव्यय: पातु शिव: शयानम् ॥ २४ ॥
मार्गेषु मां रक्षतु नीलकंठ: शैलादिदुर्गेषु पुरत्रयारि: ।
अरण्यवासादिमहाप्रवासे पायान्मृगव्याध उदारशक्ति: ॥ २५ ॥
कल्पांतकोटोपपटुप्रकोप-स्फुटाट्टहासोच्चलितांडकोश: ।
घोरारिसेनर्णवदुर्निवारमहाभयाद्रक्षतु वीरभद्र: ॥ २६ ॥
पत्त्यश्‍वमातंगघटावरूथसहस्रलक्षायुतकोटिभीषणम् ।
अक्षौहिणीनां शतमाततायिनां छिंद्यान्मृडोघोर कुठार धारया २७ ॥
निहंतु दस्यून्प्रलयानलार्चिर्ज्वलत्रिशूलं त्रिपुरांतकस्य ।
शार्दूल सिंहर्क्षवृकादिहिंस्रान्संत्रासयत्वीशधनु: पिनाक: ॥ २८ ॥ दु:स्वप्नदु:शकुनदुर्गतिदौर्मनस्यर्दुर्भिक्षदुर्व्यसनदु:सहदुर्यशांसि ।
उत्पाततापविषभीतिमसद्‍ग्रहार्ति व्याधींश्‍च नाशयतु मे जगतामधीश: ॥ २९ ॥
ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्त्वात्मकाय सर्वमंत्रस्वरूपाय सर्वयंत्राधिष्ठिताय सर्वतंत्रस्वरूपाय सर्वत्त्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे नीलकंठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्‍धूलितविग्रहाय महामणिमुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकालरौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलाधारैकनिलयाय तत्त्वातीताय गंगाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदांतसाराय त्रिवर्गसाधनायानंतकोटिब्रह्माण्डनायकायानंतवासुकितक्षककर्कोटकङ्‍खकुलिक पद्ममहापद्मेत्यष्टमहानागकुलभूषणायप्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय आकाशदिक्स्वरूपायग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलंकरहिताय सकललोकैकर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकल वेदान्तपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकलकोलोकैकशंकराय शशांकशेखराय शाश्‍वतनिजावासाय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्लोभाय निर्मदाय निश्‍चिंताय निरहंकाराय निरंकुशाय निष्कलंकाय निर्गुणाय निष्कामाय निरुपप्लवाय निरवद्याय निरंतराय निष्कारणाय निरंतकाय निष्प्रपंचाय नि:संगाय निर्द्वंद्वाय निराधाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्मलाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियय निस्तुलाय नि:संशयाय निरंजनाय निरुपमविभवायनित्यशुद्धबुद्ध परिपूर्णसच्चिदानंदाद्वयाय परमशांतस्वरूपाय तेजोरूपाय तेजोमयाय जय जय रुद्रमहारौद्रभद्रावतार महाभैरव कालभैरव कल्पांतभैरव कपालमालाधर खट्‍वांगखड्गचर्मपाशांकुशडमरुशूलचापबाणगदाशक्‍तिभिंदिपालतोमरमुसलमुद्‌गरपाशपरिघ भुशुण्डीशतघ्नीचक्राद्यायुधभीषणकरसहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदनविकटाट्टहासविस्फारितब्रह्मांडमंडल नागेंद्रकुंडल नागेंद्रहार नागेन्द्रवलय नागेंद्रचर्मधरमृयुंजय त्र्यंबकपुरांतक विश्‍वरूप विरूपाक्ष विश्‍वेश्वर वृषभवाहन विषविभूषण विश्‍वतोमुख सर्वतो रक्ष रक्ष मां ज्वल ज्वल महामृत्युमपमृत्युभयं नाशयनाशयचोरभयमुत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय चोरान्मारय मारय ममशमनुच्चाट्योच्चाटयत्रिशूलेनविदारय कुठारेणभिंधिभिंभधि खड्‌गेन छिंधि छिंधि खट्‍वांगेन विपोथय विपोथय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय वाणै: संताडय संताडय रक्षांसि भीषय भीषयशेषभूतानि निद्रावय कूष्मांडवेतालमारीच ब्रह्मराक्षसगणान्‌संत्रासय संत्रासय ममाभय कुरु कुरु वित्रस्तं मामाश्‍वासयाश्‍वासय नरकमहाभयान्मामुद्धरसंजीवय संजीवयक्षुत्तृड्‌भ्यां मामाप्याय-आप्याय दु:खातुरं मामानन्दयानन्दयशिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादयमृत्युंजय त्र्यंबक सदाशिव नमस्ते नमस्ते नमस्ते।
।। ऋषभ उवाच ।।
इत्येतत्कवचं शैवं वरदं व्याह्रतं मया ॥
सर्वबाधाप्रशमनं रहस्यं सर्वदेहिनाम् ॥ ३० ॥
य: सदा धारयेन्मर्त्य: शैवं कवचमुत्तमम् ।
न तस्य जायते क्वापि भयं शंभोरनुग्रहात् ॥ ३१ ॥
क्षीणायुअ:प्राप्तमृत्युर्वा महारोगहतोऽपि वा ॥
सद्य: सुखमवाप्नोति दीर्घमायुश्‍चविंदति ॥ ३२ ॥
सर्वदारिद्र्य शमनं सौमंगल्यविवर्धनम् ।
यो धत्ते कवचं शैवं सदेवैरपि पूज्यते ॥ ३३ ॥
महापातकसंघातैर्मुच्यते चोपपातकै: ।
देहांते मुक्‍तिमाप्नोति शिववर्मानुभावत: ॥ ३४ ॥
त्वमपि श्रद्धया वत्स शैवं कवचमुत्तमम्
धारयस्व मया दत्तं सद्य: श्रेयो ह्यवाप्स्यसि ॥ ३५ ॥
॥ सूत उवाच ॥
इत्युक्त्वाऋषभो योगी तस्मै पार्थिवसूनवे ।
ददौ शंखं महारावं खड्गं चारिनिषूदनम् ॥ ३६ ॥
पुनश्‍च भस्म संमत्र्य तदंगं परितोऽस्पृशत् ।
गजानां षट्‍सहस्रस्य द्विगुणस्य बलं ददौ । ३७ ॥
भस्मप्रभावात्संप्राप्तबलैश्वर्यधृतिस्मृति: ।
स राजपुत्र: शुशुभे शरदर्क इव श्रिया ॥ ३८ ॥
तमाह प्रांजलिं भूय: स योगी नृपनंदनम् ।
एष खड्‍गो मया दत्तस्तपोमंत्रानुभावित: ॥ ३९ ॥
शितधारमिमंखड्गं यस्मै दर्शयसे स्फुटम् ।
स सद्यो म्रियतेशत्रु: साक्षान्मृत्युरपि स्वयम् ॥ ४० ॥
अस्य शंखस्य निर्ह्लादं ये श्रृण्वंति तवाहिता: ।
ते मूर्च्छिता: पतिष्यंति न्यस्तशस्त्रा विचेतना: ॥ ४१ ॥
खड्‌गशंखाविमौ दिव्यौ परसैन्य निवाशिनौ ।
आत्मसैन्यस्यपक्षाणां शौर्यतेजोविवर्धनो ॥ ४२ ॥
एतयोश्‍च प्रभावेण शैवेन कवचेन च ।
द्विषट्‍सहस्त्रनागानां बलेन महतापि च ॥ ४३ ॥
भस्मधारणसामर्थ्याच्छत्रुसैन्यं विजेष्यसि ।
प्राप्य सिंहासनं पित्र्यं गोप्तासि पृथिवीमिमाम् ॥ ४४ ॥
इति भद्रायुषं सम्यगनुशास्य समातृकम् ।
ताभ्यां पूजित: सोऽथ योगी स्वैरगतिर्ययौ ॥ ४५ ॥
।।इति श्रीस्कंदपुराणे एकाशीतिसाहस्त्रयां तृतीये ब्रह्मोत्तरखण्डे अमोघ-शिव-कवचं समाप्तम् ।।
विशेष सूचना:- हमने अपने बहुत से भक्तो की अनेक भयानक से भयानक विपत्तियों का निराकरण इस शिव कवच के अनुष्ठान से कर दिया है | सी बी आई के केसों में फसे हुओ को भी हमने इस शिव कवच और माँ बगलामुखी के अनुष्ठान से सकुशल बचाया और उन केसों में विजय प्राप्ति करवाई है ||










हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

इस उपाय से मिलेगी संतान


इस मंत्र से करें लक्ष्मी पूजा, हो जाएंगे मालामाल

 देवी लक्ष्मी की जिस पर कृपा हो जाए उस व्यक्ति को जीवन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती। पैसा, इज्जत, शोहरत सभी कुछ उसके पास होता है। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्र, स्तुति व श्लोकों की रचना कई गई है। इन्हीं में एक मंत्र यह भी है। इस मंत्र का प्रतिदिन जप करने से मां लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती है और साधक को मालामाल कर देती हैं। यह मंत्र इस प्रकार है-



मंत्र

ईश्वरीकमला लक्ष्मीश्चलाभूतिर्हरिप्रिया।

पद्मा पद्मालया संपत् रमा श्री: पद्मधारिणी।।

द्वादशैतानि नामानि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत्।

स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत्तस्य पुत्रदारादिभिस्सह।।



जप विधि

- सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ वस्त्र पहनकर देवी लक्ष्मी का पूजन करें। उन्हें लाल गुलाब के फूल अर्पित करें।

- देवी लक्ष्मी की मूर्ति के सामने आसन लगाकर स्फटिक की माला लेकर इस स्त्रोत का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।

- आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।

- एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।




इस उपाय से मिलेगी संतान

 भगवान शंकर के समान अन्य कोई देव नहीं है। भक्त से प्रसन्न होने पर वे उसकी हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। महाशिवरात्रि (20 फरवरी, सोमवार) पर किए गए विशेष उपाय से शिव और भी प्रसन्न होते हैं। जिन दंपत्तियों के यहां संतान नहीं है वे यदि महाशिवरात्रि के दिन नीचे लिखे तरीके से भगवान शिव की पूजा करें तो उन्हें शीघ्र ही संतान की प्राप्ति होगी।

उपाय

महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवान शिव का पूजन करें। इसके पश्चात गेहूं के आटे से ग्यारह शिवलिंग बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिवमहिम्नस्त्रोत से जलाभिषेक करना चाहिए। इस प्रकार ग्यारह बार जलाभिषेक किया जाएगा। उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। यह प्रयोग शिवरात्रि से आरंभ करते हुए 21 अथवा 41 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भगौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे महाशिवरात्रि या अन्य किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।

यह उपाय करने पर आप देखेंगे कि शीघ्र ही आपके यहां बच्चे की किलकारियां गूजेंगी।



श्री शिवजी की आरती
 कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं |
सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि ॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा |
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे |
हंसासंन ,गरुड़ासन ,वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें |
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
अक्षमाला ,बनमाला ,रुण्ड़मालाधारी |
चंदन , मृदमग सोहें, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें |
सनकादिक, ब्रम्हादिक ,भूतादिक संगें
ॐ जय शिव ओंकारा......
कर के मध्य कमड़ंल चक्र ,त्रिशूल धरता |
जगकर्ता, जगभर्ता, जगसंहारकर्ता ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका |
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी |
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें |
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें ॥
ॐ जय शिव ओंकारा.....
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा......


हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

महा शिवरात्रि


महा शिवरात्रि: हर मनोकामना पूरी करे यह शिव स्तोत्र

भगवान शंकर की महिमा का वर्णन अनेक धर्मग्रंथों में किया गया है। सभी में एक ही बात कही गई है कि भगवान शिव अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए तत्पर रहते हैं। यदि एक लौटा जल प्रतिदिन शिव पर जढ़ाया जाए तो भी भगवान शिव अपने भक्त से प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शंकर की पूजा से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति संभव है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यदि शिवषडक्षरस्तोत्र का नित्य जप किया जाए तो विशेष फल मिलता है-



शिवषडक्षरस्तोत्रम्



ऊँकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन:।

कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नम:।।

नमंति ऋषयो देवा नमंत्यप्सरसां गणा:।

नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नम:।।

महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम्।

महापापहरं देवं मकाराय नमो नम:।।

शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकनुग्रहकारकम्।

शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नम:।।

वाहनं वृषभो यस्य वासुकि: कंठभूषणम्।

वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नम:।।

यत्र यत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।

यो गुरु: सर्वदेवानां यकाराय नमो नम:।।

षडक्षरमिदं स्तोत्रं य: पठेच्छिवसंनिधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।












हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

Thursday, September 29, 2011

देवी अर्गलास्तोत्रम् (Durga Argala Stotram)

देवी अर्गलास्तोत्रम् (Durga Argala Stotram)

अथ अर्गलास्तोत्रम्
ॐ नमश्वण्डिकायै  -  मार्कण्डेय उवाच ।


ॐ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि । जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ १॥
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥ २॥
मधुकैटभविध्वंसि विधातृवरदे नमः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ३॥
महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ४॥
धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ५॥
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ६॥
निशुम्भशुम्भनिर्नाशि त्रिलोक्यशुभदे नमः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ७॥
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ८॥
अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ९॥
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १०॥
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ११॥
चण्डिके सततं युद्धे जयन्ति पापनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १२॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १३॥
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १४॥
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १५॥
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १६॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १७॥
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १८॥
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १९॥
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंसुते परमेश्वरि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २०॥
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २१॥
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २२॥
इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २३॥
देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २४॥
भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २५॥
तारिणि दुर्गसंसारसागरस्याचलोद्भवे । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २६॥
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः । सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभम् ॥ २७॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे अर्गलास्तोत्रं समाप्तम् ॥

श्री दुर्गा अष्टोत्तर शत नामावलि – 108 Names of Maa Durga

ॐ श्रियै नमः
ॐ उमायै नमः
ॐ भारत्यै नमः
ॐ भद्रायै नमः
ॐ शर्वाण्यै नमः
ॐ विजयायै नमः
ॐ जयायै नमः
ॐ वाण्यै नमः
ॐ सर्वगतायै नमः
ॐ गौर्यै नमः 

ॐ वाराह्यै नमः
ॐ कमलप्रियायै नमः
ॐ सरस्वत्यै नमः
ॐ कमलायै नमः
ॐ मायायै नमः
ॐ मातंग्यै नमः
ॐ अपरायै नमः
ॐ अजायै नमः
ॐ शांकभर्यै नमः
ॐ शिवायै नमः 

ॐ चण्डयै नमः
ॐ कुण्डल्यै नमः
ॐ वैष्णव्यै नमः
ॐ क्रियायै नमः
ॐ श्रियै नमः
ॐ ऐन्द्रयै नमः
ॐ मधुमत्यै नमः
ॐ गिरिजायै नमः
ॐ सुभगायै नमः
ॐ अंबिकायै नमः 

ॐ तारायै नमः
ॐ पद्मावत्यै नमः
ॐ हंसायै नमः
ॐ पद्मनाभसहोदर्यै नमः
ॐ अपर्णायै नमः
ॐ ललितायै नमः
ॐ धात्र्यै नमः
ॐ कुमार्यै नमः
ॐ शिखवाहिन्यै नमः
ॐ शांभव्यै नमः 

ॐ सुमुख्यै नमः
ॐ मैत्र्यै नमः
ॐ त्रिनेत्रायै नमः
ॐ विश्वरूपिण्यै नमः
ॐ आर्यायै नमः
ॐ मृडान्यै नमः
ॐ हींकार्यै नमः
ॐ क्रोधिन्यै नमः
ॐ सुदिनायै नमः
ॐ अचलायै नमः 

ॐ सूक्ष्मायै नमः
ॐ परात्परायै नमः
ॐ शोभायै नमः
ॐ सर्ववर्णायै नमः
ॐ हरप्रियायै नमः
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
ॐ महासिद्धयै नमः
ॐ स्वधायै नमः
ॐ स्वाहायै नमः
ॐ मनोन्मन्यै नमः 

ॐ त्रिलोकपालिन्यै नमः
ॐ उद्भूतायै नमः
ॐ त्रिसन्ध्यायै नमः
ॐ त्रिपुरान्तक्यै नमः
ॐ त्रिशक्त्यै नमः
ॐ त्रिपदायै नमः
ॐ दुर्गायै नमः
ॐ ब्राह्मयै नमः
ॐ त्रैलोक्यवासिन्यै नमः
ॐ पुष्करायै नमः 

ॐ अत्रिसुतायै नमः
ॐ गूढ़ायै नमः
ॐ त्रिवर्णायै नमः
ॐ त्रिस्वरायै नमः
ॐ त्रिगुणायै नमः
ॐ निर्गुणायै नमः
ॐ सत्यायै नमः
ॐ निर्विकल्पायै नमः
ॐ निरंजिन्यै नमः
ॐ ज्वालिन्यै नमः 

ॐ मालिन्यै नमः
ॐ चर्चायै नमः
ॐ क्रव्यादोप निबर्हिण्यै नमः
ॐ कामाक्ष्यै नमः
ॐ कामिन्यै नमः
ॐ कान्तायै नमः
ॐ कामदायै नमः
ॐ कलहंसिन्यै नमः
ॐ सलज्जायै नमः
ॐ कुलजायै नमः 

ॐ प्राज्ञ्यै नमः
ॐ प्रभायै नमः
ॐ मदनसुन्दर्यै नमः
ॐ वागीश्वर्यै नमः
ॐ विशालाक्ष्यै नमः
ॐ सुमंगल्यै नमः
ॐ काल्यै नमः
ॐ महेश्वर्यै नमः
ॐ चण्ड्यै नमः
ॐ भैरव्यै नमः 

ॐ भुवनेश्वर्यै नमः
ॐ नित्यायै नमः
ॐ सानन्दविभवायै नमः
ॐ सत्यज्ञानायै नमः
ॐ तमोपहायै नमः
ॐ महेश्वरप्रियंकर्यै नमः
ॐ महात्रिपुरसुन्दर्यै नमः
ॐ दुर्गापरमेश्वर्यै नमः 

  इति श्री दुर्गाष्टोत्तरशत नामावलिः



श्री दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa)

श्री दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa)

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥

निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ॥

शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥

रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥

तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अन्नपूर्णा हु‌ई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥

रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ॥

धरा रुप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भ‌ई फाड़कर खम्बा ॥

रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥

लक्ष्मी रुप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥

मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥

श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥

केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥

कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥

सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥

नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥

रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भ‌ई सहाय मातु तुम तब तब ॥

अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन ला‌ई । जन्म-मरण ताको छुटि जा‌ई ॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥

शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ॥

शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति ग‌ई तब मन पछतायो ॥

शरणागत हु‌ई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥

भ‌ई प्रसन्न आदि जगदम्बा । द‌ई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥

आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥

शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥

करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ॥

जब लगि जियौं दया फल पा‌ऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुना‌ऊँ ॥

दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥

देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

॥ जय माता दी ॥

श्री दुर्गा पूजन विधि- नवरात्रि: दुर्गा के नौ रूपों का पूजन

नवरात्रि: दुर्गा के नौ रूपों का पूजन
नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है। इन नौ दिनों में तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों (कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते हैं।
वासन्तिक नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं – पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता, छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।

प्रथम दुर्गा : श्री शैलपुत्री

 

नवरात्री  दुर्गा पूजा पहले तिथि – माता शैलपुत्री की पूजा

मां दुर्गा शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक सनातन काल से मनाया जाता रहा है. आदि-शक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में पूजा की जाती है. अत: इसे नवरात्र के नाम भी जाना जाता है. सभी देवता, राक्षस, मनुष्य इनकी कृपा-दृष्टि के लिए लालायित रहते हैं. यह हिन्दू समाज का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक व सांसारिक इन चारों ही दृष्टिकोण से काफी महत्व है.
 दुर्गा पूजा का त्यौहार वर्ष में दो बार आता है, एक चैत्र मास में और दूसरा आश्विन मास में (Chaitra Durga Puja  Ashwin Masa durga Pooja). चैत्र माह में देवी दुर्गा की पूजा बड़े ही धूम धाम से की जाती है लेकिन आश्विन मास का विशेष महत्व है. दुर्गा सप्तशती में भी आश्विन माह के शारदीय नवरात्रों की महिमा का विशेष बखान किया गया है. दोनों मासों में दुर्गा पूजा का विधान एक जैसा ही है, दोनों ही प्रतिपदा से दशमी तिथि तक मनायी जाती है.
वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।

 शैलपुत्री – नवरात्री प्रथम दिन

नवरात्र पूजन के प्रथम दिन मां शैलपुत्री जी का पूजन होता है. शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है, माँ शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं. नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं, शैलपुत्री का पूजन करने से ‘मूलाधार चक्र’ जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं.

मंत्र :वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।

 कलश स्थापना:

नवरात्रा का प्रारम्भ आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ होता है. कलश को हिन्दु विधानों में मंगलमूर्ति गणेश का स्वरूप माना जाता है अत: सबसे पहले कलश की स्थान की जाती है. कलश स्थापना के लिए भूमि को सिक्त यानी शुद्ध किया जाता है. भूमि की शुद्धि के लिए गाय के गोबर और गंगा-जल से भूमि को लिपा जाता है. 

शैलपुत्री  पूजा विधि:

शारदीय नवरात्र पर कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है. पहले दिन माँ दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है. दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर हम पूजते हैं .अत: इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता और और कलश में उन्हें विराजने हेतु प्रार्थना सहित उनका आहवान किया जाता है. कलश में सप्तमृतिका यानी सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर भेट किया जाता है और पंच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है.
इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है और इससे सभी देवी-देवता की पूजा होती है. इसे जयन्ती (Jayanti) कहते हैं जिसे इस मंत्र के साथ अर्पित किया जाता है “जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते”. इसी मंत्र से पुरोहित यजमान के परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर जयंती डालकर सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद देते हैं।
कलश स्थापना के पश्चात देवी का आह्वान किया जाता है कि ‘हे मां दुर्गा हमने आपका स्वरूप जैसा सुना है उसी रूप में आपकी प्रतिमा बनवायी है आप उसमें प्रवेश कर हमारी पूजा अर्चना को स्वीकार करें’.
देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है और बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है तथा भगवान भोले नाथ की भी पूजा की जाती है. प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती हैं.

शैलपुत्री की ध्यान :

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।
वृशारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्

शैलपुत्री की स्तोत्र पाठ:

प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहिमहामोह: विनाशिन।
मुक्तिभुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

शैलपुत्री की कवच :

ओमकार: मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥


नवरात्री  दुर्गा पूजा दूसरे तिथि – माता ब्रह्मचारिणी की पूजा :


नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है.  देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है. देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है.

ब्रह्मचारिणी – नवरात्री दूसरा दिन

देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है. मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी. यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं. मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है.
देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं. इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा (Goddess Brahmcharini is Tapashcharini, Aparna and Uma.). इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित साधक मां ब्रह्मचारिणी जी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है.

ब्रह्मचारिणी पूजा विधि :

देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें. प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें. इनकी पूजा के पश्चात मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करें.
देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें “दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू. देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा”.. इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) व कमल काफी पसंद है उनकी माला पहनायें. प्रसाद और आचमन के पश्चात् पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें और घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. अंत में क्षमा प्रार्थना करें “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी..

ब्रह्मचारिणी की मंत्र :

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

ब्रह्मचारिणी की ध्यान :

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ :

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

ब्रह्मचारिणी की कवच :

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
भोले शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने महान व्रत किया उस महादेव की पूजा भी आदर पूर्वक करें क्योंकि इनकी पूजा न होने से देवी की कृपा नहीं मिलती है. दक्ष प्रजापति द्वारा शिव की उपेक्षा के कारण माता ने पूर्व जन्म में स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया और किसी भी देवता ने प्रजापति का प्रसाद ग्रहण नहीं किया जिससे उन्हें महान दोष लगा अत: देवी की प्रसन्नता हेतु शिव जी पूजा आवश्यक कहा गया है.
सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत, सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर “ॐ ब्रह्मणे नम:” कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें और दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करें.

देवी ब्रह्मचारिणी कथा :

माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं. इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया. जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी. जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है. देवी का दूसरा स्वरूप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है जिसके पश्चात व्यक्ति की ऐन्द्रियां अपने नियंत्रण में रहती और साधक मोक्ष का भागी बनता है.
इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthan Chakra) में मन को स्थापित करता है उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है.  जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धादुर्गा पूजा के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है.

तृतीय दुर्गा : श्री चंद्रघंटा

 

नवरात्री तीसरा दिन माता चंद्रघंटा की पूजा  विधि

देवी दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है. दुर्गा पूजा के तीसरे दिन आदि-शक्ति दुर्गा के तृतीय स्वरूप माँ  चंद्रघंटा की पूजा होती है.  देवी चन्द्रघण्टा भक्त को सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं. इस दिन का दुर्गा पूजा में विशेष महत्व बताया गया है तथा इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है. माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक एवं दिव्य सुगंधित वस्तुओं के दर्शन तथा अनुभव होते हैं, इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है यह क्षण साधक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं.

चंद्रघंटा – नवरात्री  की तीसरी दिन :

चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप तपे हुए स्वर्ण के समान कांतिमय है. चेहरा शांत एवं सौम्य है और मुख पर सूर्यमंडल की आभा छिटक रही होती है. माता के सिर पर अर्ध चंद्रमा मंदिर के घंटे के आकार में सुशोभित हो रहा जिसके कारण देवी का नाम चन्द्रघंटा हो गया है. अपने इस रूप से माता देवगण, संतों एवं भक्त जन के मन को संतोष एवं प्रसन्न प्रदान करती हैं. मां चन्द्रघंटा अपने प्रिय वाहन सिंह पर आरूढ़ होकर अपने दस हाथों में खड्ग, तलवार, ढाल, गदा, पाश, त्रिशूल, चक्र,धनुष, भरे हुए तरकश लिए मंद मंद मुस्कुरा रही होती हैं. माता का ऐसा अदभुत रूप देखकर ऋषिगण मुग्ध होते हैं और वेद मंत्रों द्वारा देवी चन्द्रघंटा की स्तुति करते हैं.
माँ चन्द्रघंटा की कृपा से समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं. देवी चंद्रघंटा की मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने की होती हैं, इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है इनकी अराधना सद्य: फलदायी है, समस्त भक्त जनों को देवी चंद्रघंटा की वंदना करते हुए कहना चाहिए ” या देवी सर्वभूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:”.. अर्थात देवी ने चन्द्रमा को अपने सिर पर घण्टे के सामान सजा रखा है उस महादेवी, महाशक्ति चन्द्रघंटा को मेरा प्रणाम है, बारम्बार प्रणाम है. इस प्रकार की स्तुति एवं प्रार्थना करने से देवी चन्द्रघंटा की प्रसन्नता प्राप्त होती है.

देवी चंद्रघंटा पूजा विधि :

देवी चन्द्रघंटा की भक्ति से आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है. जो व्यक्ति  माँ चंद्रघंटा की श्रद्धा एवं भक्ति भाव सहित पूजा करता है उसे मां की कृपा प्राप्त होती है जिससे वह संसार में यश, कीर्ति एवं सम्मान प्राप्त करता है. मां के भक्त के शरीर से अदृश्य उर्जा का विकिरण होता रहता है जिससे वह जहां भी होते हैं वहां का वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है, इनके घंटे की ध्वनि सदैव भक्तों की प्रेत-बाधा आदि से रक्षा करती है तथा उस स्थान से भूत, प्रेत एवं अन्य प्रकार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है.
जो साधक योग साधना कर रहे हैं उनके लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस दिन कुण्डलनी जागृत करने हेतु स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthan Chakra) से एक चक्र आगे बढ़कर मणिपूरक चक्र (Manipurak Chakra) का अभ्यास करते हैं. इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है . इस देवी की पंचोपचार सहित पूजा करने के बाद उनका आशीर्वाद प्राप्त कर योग का अभ्यास करने से साधक को अपने प्रयास में आसानी से सफलता मिलती है.
तीसरे दिन की पूजा का विधान भी लगभग उसी प्रकार है जो दूसरे दिन की पूजा का है. इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता, तीर्थों, योगिनियों, नवग्रहों, दशदिक्पालों, ग्रम एवं नगर देवता की पूजा अराधना करें फिर माता के परिवार के देवता, गणेश (Ganesh), लक्ष्मी (Lakshmi), विजया (Vijya), कार्तिकेय (Kartikey), देवी सरस्वती(Saraswati), एवं जया (Jaya) नामक योगिनी की पूजा करें फिर देवी चन्द्रघंटा की पूजा अर्चना करें.

चन्द्रघंटा की मंत्र :

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

चन्द्रघंटा की  ध्यान :

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

चन्द्रघंटा की   स्तोत्र पाठ : 

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

चन्द्रघंटा की   कवच : 

रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
इस प्रकार दुर्गा  की  आरती होती है. 

आरती में “जय अम्बे गौरी”- दुर्गा आरती  गीत भक्त जन गाते हैं ||

चतुर्थ दुर्गा : श्री कूष्मांडा


नवरात्री  दुर्गा पूजा चौथे तिथि – माता कूष्माण्डा की पूजा :

मां दुर्गा के नव रूपों में चौथा रूप है कूष्माण्डा देवी का (Durga Devi Chaturth Roop Devi Kushmanda). दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा जी की पूजा का विधान है.  देवी कूष्माण्डा अपनी मन्द मुस्कान से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है.
इस दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है, अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए. संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है.

देवी कुष्मांडा पूजा विधि :

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को अनहत चक्र (Anhat chakra) में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए. इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है.
दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है. इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं. इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करे: पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे..”

कुष्मांडा की मंत्र :

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माँ कूष्मांडा का उपासना मंत्र :

“कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा”

कुष्मांडा की ध्यान :

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

 कुष्मांडा की स्तोत्र पाठ :

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

कुष्मांडा की कवच :

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥
भोले शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने महान व्रत किया उस महादेव की पूजा भी आदर पूर्वक करें क्योंकि इनकी पूजा न होने से देवी की कृपा नहीं मिलती है || श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए ||
सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत, सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर “ॐ ब्रह्मणे नम:” कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें और दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करें.
इस प्रकार दुर्गा  की  आरती होती है. 

आरती में “जय अम्बे गौरी”- दुर्गा आरती  गीत भक्त जन गाते हैं ||

देवी कुष्मांडा कथा :

दुर्गा सप्तशती के कवच में लिखा है कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा. इसका अर्थ है वह देवी जिनके  उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं. देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं. जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था
देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंड सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ. इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं.
देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अत: इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है. देवी अपने इन हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा है. देवी के आठवें हाथ में बिजरंके (कमल फूल का बीज) का माला है है, यह माला भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि देने वाला है. देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं. जो भक्त श्रद्धा पूर्वक इस देवी की उपासना दुर्गा पूजा के चौथे दिन करता है उसके सभी प्रकार के कष्ट रोग, शोक का अंत होता है और आयु एवं यश की प्राप्ति होती है.

पंचम दुर्गा : श्री स्कंदमाता


नवरात्री  दुर्गा पूजा पंचमी तिथि – स्कंदमाता की पूजा

माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है. भगवान स्कन्द कुमार (कार्तिकेय)की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवे स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है. भगवान स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में अवस्थित होता है. स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकडे हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। माँ का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है|
माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं| इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है | यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है| एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है|

स्कन्दमाता  की पूजा विधि :

कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र (Visuddha Chakra) की साधना का होता है. इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए. पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक के चार दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए “सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया. शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी.
अब पंचोपचार विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा कीजिए. नवरात्रे की पंचमी तिथि को कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग ललिता का व्रत (Udyang Lalita Vrat) भी रखते हैं. इस व्रत को फलदायक कहा गया है. जो भक्त देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है. देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है.

स्कन्दमाता की मंत्र : 

सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

स्कन्दमाता की ध्यान : 

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्कन्दमाता की  स्तोत्र पाठ : 

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

स्कन्दमाता की कवच :

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥
वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए ||


भोले शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने महान व्रत किया उस महादेव की पूजा भी आदर पूर्वक करें क्योंकि इनकी पूजा न होने से देवी की कृपा नहीं मिलती है || श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए ||
सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत, सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर “ॐ ब्रह्मणे नम:” कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें और दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करें.
इस प्रकार दुर्गा  की  आरती होती है. 

आरती में “जय अम्बे गौरी”- दुर्गा आरती  गीत भक्त जन गाते हैं ||

स्कन्द माता कथा :

दुर्गा पूजा के पांचवे दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है. कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार के नाम से पुकारा गया है. माता इस रूप में पूर्णत: ममता लुटाती हुई नज़र आती हैं. माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है.
जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं. देवी स्कन्दमाता की चार भुजाएं हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी हैं. मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है.
देवी स्कन्द माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है. यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं. माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है. जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं.

षष्ठम दुर्गा : श्री कात्यायनी


नवरात्री  दुर्गा पूजा छठा तिथि – माता कात्यायनी की पूजा :

माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है. महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं. महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया तथा महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा को कात्यायनी कहा गया.
देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, माँ कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं. देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है. इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं. साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है.
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है. यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं.  इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में  तलवार तथा कमल का फूल है.

माँ कात्यायनी की पूजा विधि :

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए. माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं. इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है ||

देवी कात्यायनी के मंत्र : 

चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माता कात्यायनी की ध्यान : 

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥

स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥

पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ : 

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥

पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

देवी कात्यायनी की कवच :

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥

देवी की पूजा के पश्चात भगवान शंकर और ब्रह्मा की पूजा करें.सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत, सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर “ॐ ब्रह्मणे नम:” कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें और दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करें.
इस प्रकार दुर्गा  की  आरती होती है. 

आरती में “जय अम्बे गौरी”- दुर्गा आरती  गीत भक्त जन गाते हैं ||

देवी कात्यायनी की कात्यायनी कथा : 

देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ॠषि हुए तथा उनके पुत्र ॠषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे.  देवी कात्यायनी जी देवताओं ,ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं. महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था. जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और  ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं. 
महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें. देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया.

सप्तम दुर्गा : श्री कालरात्रि


“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥“

श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए।
संसार में कालो का नाश करने वाली देवी ‘कालरात्री’ ही है। भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं।
एकवेणीजपाकर्णपुरानाना खरास्थिता।
लम्बोष्ठीकíणकाकर्णीतैलाभ्यशरीरिणी॥
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनर्मूध्वजाकृष्णांकालरात्रिभर्यगरी॥
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हे। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र है, ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्यगोल है, इनसे विद्युत के समान चमकीलीकिरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांसप्रश्वांससे अग्नि की भंयकरज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रासे सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रामें है बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे हाथ में खड्ग है। मां का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभकरीभी है अत:इनसे किसी प्रकार भक्तों को भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
ध्यान:-करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
स्तोत्र:-हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
कवच:-ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥
भगवती कालरात्रि का ध्यान,कवच,स्तोत्र का जाप करने से भानु चक्र जाग्रत होता है, इनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच, स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं, यह माता भक्तों को अभय प्रदान करने वाली है।

अष्टम दुर्गा : श्री महागौरी


“श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥“

श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।
माँ महागौरी की आराधना से किसी प्रकार के रूप और मनोवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। उजले वस्त्र धारण किये हुए महादेव को आनंद देवे वाली शुद्धता मूर्ती देवी महागौरी मंगलदायिनी हों।
ॐनमोभगवती महागौरीवृषारूढेश्रींहीं क्लींहूं फट् स्वाहा।
भगवती महागौरीवृषभ के पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है। मणिकान्तिमणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, जिनके कानों में रत्नजडितकुण्डल झिलमिलाते हैं, ऐसी भगवती महागौरीहैं।
ध्यान:-वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थिातांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥
स्तोत्र:-सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥
कवच:-ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।
क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥
भगवती महागौरीका ध्यान स्तोत्र और कवच का पाठ करने से सोमचक्र जाग्रत होता है, जिससे चले आ रहे संकट से मुक्ति होती है, पारिवारिक दायित्व की पूíत होती है वह आíथक समृद्धि होती है।

नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्री




आदि शक्ति भगवती का नवम् रूप सिद्धिदात्रीहै, जिनकी चार भुजाएं हैं। उनका आसन कमल है। दाहिने और नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है, यह भगवती का स्वरूप है, इस स्वरूप की ही हम आराधना करते हैं।
ध्यान:-वन्दे वंाछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥
स्तोत्र:-कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।
विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
कवच:-ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।
हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥
भगवती सिद्धिदात्रीका ध्यान, स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है। कार्यो में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं। कामनाओं की पूíत होती है।
“सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥“

श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।
सिद्धिदात्री की कृपा से मनुष्य सभी प्रकार की सिद्धिया प्राप्त कर मोक्ष पाने मे सफल होता है। मार्कण्डेयपुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्वये आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी है। भगवती सिद्धिदात्री उपरोक्त संपूर्ण सिद्धियाँ अपने उपासको को प्रदान करती है। माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्र के अनुष्ठान का समापन हो जाता है।
इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है। दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाकई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं।

दुर्गा माँ आरती

 

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

 

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी । तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ जय अम्बे गौरी ॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को । उज्जवल से दो‌उ नैना, चन्द्रबदन नीको ॥ जय अम्बे गौरी ॥

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै । रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥ जय अम्बे गौरी ॥

केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी । सुर नर मुनिजन सेवक, तिनके दुखहारी ॥ जय अम्बे गौरी ॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती । कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ॥ जय अम्बे गौरी ॥

शुम्भ निशुम्भ विडारे, महिषासुर घाती । धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ जय अम्बे गौरी ॥

चण्ड मुण्ड संघारे, शोणित बीज हरे । मधुकैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे ॥ जय अम्बे गौरी ॥

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी । आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ जय अम्बे गौरी ॥

चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरुं । बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु ॥ जय अम्बे गौरी ॥

तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता । भक्‍तन् की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता ॥ जय अम्बे गौरी ॥

भुजा चार अति शोभित, खड़ग खप्परधारी । मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ जय अम्बे गौरी ॥

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती । श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ॥ जय अम्बे गौरी ॥

श्री अम्बे जी की आरती, जो को‌ई नर गावै ।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥ जय अम्बे गौरी ॥

1