Tuesday, April 8, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन की दास्तान-7

पिछली बार आपने पढ़ा:
(टैक्स अदा करने के बाद मुल्ला नसरुद्दीन रवाना होने ही वाला था कि टैक्स अफसर ने देखा, उसके पटके में अब भी कुछ सिक्के बाकी हैं। ‘ठहरो,’ वह चिल्लाया, ‘तुम्हारे इस गधे का टैक्स कौन अदा करेगा? अगर तुम अपने रिश्तेदारों से मिलने आए हो तो तुम्हारा गधा भी अपने रिश्तेदारों से मिलेगा।’


अपना पटका एक बार फिर खोलते हुए मुल्ला नसरुद्दीन ने बड़ी नर्मी से उत्तर दिया ‘मेरे अक्लमंद आका, आप सच फरमाते हैं, सचमुच मेरे गधे के रिश्तेदारों की तादाद बुखारा में बहुत बड़ी है। नहीं तो जिस ढंग से यहाँ काम चल रहा है, आप के अमीर बहुत पहले ही तख़्त से धकेल दिए गए होते, और मेरे बहुत ही काबिल हुजूर आप अपने लालच के लिए न जाने कब सूली पर चढ़ा दिए गए होते।’

इससे पहले कि अफसर अपने होशोहवास ठीक कर पाता, मुल्ला नसरुद्दीन कूदकर अपने गधे पर सवार हो गया और उसे सरपट भगा दिया। पलक झपकते ही वह सबसे पास की गली में पहुँचकर आँखों से ओझल हो गया।)

उसके आगे:

मुल्ला अपने गधे पर


वह बराबर कहता जा रहा था- ‘और तेज़ और जल्दी मेरे वफ़ादार गधे, जल्दी भाग। नहीं तो तेरे मालिक को एक और टैक्स अपना सिर देकर चुकाना पड़ेगा।’


मुल्ला नसरुद्दीन का गधा बहुत ही होशियार था। हर बात को अच्छी तरह समझता था। उसके कानों में शहर के फाटक से आती हुई पहरेदारों के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें पड़ चुकी थीं। वह सड़क की परवाह किए बिना सरपट भागा चला जा रहा था, इतनी तेज़ रफ्तार से कि उसके मालिक को अपने पैर ऊँचे उठाने पड़ रहे थे।

उसके हाथ गधे की गर्दन से लिपटे हुए थे। वह जी़न से चिपका हुआ था। भारी आवाज से भौंकते हुए कुत्ते उसके पीछे दौड़ रहे थे। मुर्ग़ियों के चूजे भयभीत होकर तितर-बितर होकर इधर-उधर भागने लगे थे और सड़क पर चलने वाली दीवारों से चिपटे अपने सिर हिलाते हुए उसे देख रहे थे।
शहर के फाटकों पर पहरेदार इस साहसी स्वतंत्र विचार वाले व्यक्ति की तलाश में भीड़ छान रहे थे। व्यापारी मुस्कुराते हुए एक-दूसरे से कानाफूसी कर रहे थे। ‘यह उत्तर तो केवल मुल्ला नसरुद्दीन ही दे सकता था।’

दोपहर होते-होते यह समाचार पूरे शहर में फैल चुका था। व्यापारी बाज़ार में यह घटना अपने ग्राहकों को सुना रहे थे और वे दूसरों को। सुनकर हर व्यक्ति हँसकर कहने लगता, ‘ये शब्द तो मुल्ला नसरुद्दीन ही कह सकता था।’

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