Sunday, April 6, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन-12

पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला की मुलाकात रईस के सिपाही से)
…जब उसे विश्वास हो गया कि अब वह पीछा करने वालों से बच गया है, उसने गधे की लगाम खींची, ‘ठहर जा, अब कोई जल्दी नहीं है।’ लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। एक घुड़सवार तेज़ी से सड़क पर आ गया था। यह वही चेचक के दाग़ों से भरे चेहरे वाला नौकर था।....उसके आगे )


मूर्ख सिपाही से मुल्ला ने जान बचाई

घोड़े को एड़ लगाकर मुल्ला नसरुद्दीन को दीवार की ओर दबाते हुए नौकर ने सख़्ती से कहा, ‘अपना गधा वापस लौटा। चल, जल्दी कर। मेरा ज्यादा वक़्त बर्बाद मत कर।’

मुल्ला नसरुद्दीन ने उसे बीच में ही टोककर कहा, ‘ठहरो, मुझे बात तो ख़त्म कर लेने दो मेरे भाई। मैं तीन सौ तंकों के हिसाब से उतने ही लफ़्जों की दुआ काफ़ी रहेगी। मेरी ओर की बाड़ कुछ छोटी और पतली हो जाएगी। जहाँ तुम्हारा संबंध है तुम पचास लफ़्जों की दुआ माँगना। सब कुछ जानने वाला अल्लाह इतनी ही लकड़ी से तुम्हारी ओर भी बाड़ लगा देगा।’

‘क्यों? मेरी ओर की बाड़ तुम्हारी बाड़ का पाँचवाँ हिस्सा ही क्यों हो?’

‘वह सबसे ज्यादा खतरनाक जगह पर जो बनेगी।’

‘नहीं, मैं ऐसी छोटी बाड़ों के लायक नहीं हूँ। इसका मतलब तो यह हुआ कि पुल का कुछ हिस्सा बिना बाड़ का रह जाएगा। मेरे मालिक के लिए इससे जो खतरा पैदा होगा, मैं तो उसे सोचकर ही काँप जाता हूँ। मेरी राय में तो हम दोनों ही डेढ़-डेढ़ सौ लफ्जों की दुआ माँगे ताकि पुल के दोनों और एक ही लंबाई की बाड़ं हो। अगर तुम राजी नहीं होते तो इसका मतलब यह होगा कि तुम मेरे मालिक का बुरा चाहते हो। यह चाहते हो कि वह पुल पर से गिर जाएँ। तब मैं मदद माँगूँगा और तुम जेलखाने का सबसे पास का रास्ता पकड़ोगे।’

‘तुम जो कुछ कह रहे हो उससे लगता है कि पतली टहनियों की बाड़ लगा देना ही तुम्हारे लिए काफी रहेगा। क्या तुम समझ नहीं रहे कि बाड़ एक ओर मोटी और मजबूत होनी चाहिए, ताकि अगर तुम्हारे मालिक के पैर डगमगाएँ तो पकड़ने के लिए कुछ तो रहे।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने गुस्से से कहा। उसे लग रहा था कि रुपयों की थैली पटके से खिसक रही है।

नौकर ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा, ‘सचमुच तुमने ईमान और इंसाफ की बात कही है। बाड़ को मेरी ओर से मजबूत होने दो। मैं दो सौ लफ्जों की दुआ माँगने में आनाकानी नहीं करुँगा।’

‘तुम शायद तीन सौ लफ्जों की दुआ माँगना चाहोगे? मुल्ला नसरुद्दीन ने जहरीली आवाज़ में कहा?’

वे दोनों अलग हुए तो मुल्ला नसरुद्दीन की थ़ैली का आधा वजन कम हो चुका था। उन लोगों ने तय किया था कि मालिक के लिए बहिश्त के रास्ते वाले पुल के दोनों और बराबर-बराबर मजबूत और मोटी बाड़ लगायी जाए।

‘अलविदा, मुसाफिर। हम दोनों ने आज बड़े पुण्य का काम किया है।’ नौकर ने कहा। ‘अलविदा, वफ़दार और भले नौकर। अपने मालिक की बाड़ के लिए तुम्हें कितनी चिंता है! साथ ही मैं यह और कहे देता हूँ कि तुम बहुत जल्द मुल्ला नसरुद्दीन की टक्कर के हो जाओगे।’

नौकर के कान खड़े हो गए, ‘तुमने उसका जिक्र क्यों किया?’‘कुछ नहीं, यों ही। बस मुझे ऐसा लगा, मुल्ला नसरुद्दीन बोला और सोचने लगा, ‘यह आदमी बिल्कुल सीधा-सादा नहीं है।’

‘शायद उससे तुम्हारा कोई दूर का रिश्ता है। शायद तुम उसके खानदान के किसी आदमी को जानते हो?’‘नहीं, मैं उससे कभी नहीं मिला। और न मैं उसके किसी रिश्तेदार को ही जानता हूँ।’

नौकर ने जीऩ पर बैठे-बैठे थोड़ा सा झुककर कहा, ‘सुनो, मैं तुम्हें एक राज़ की बात बताऊँ। मैं उसका रिश्तेदार हूँ। असल में मैं उसका चचेरा भाई हूँ। हम दोनों बचपन में साथ-साथ रहे थे।’

लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन खामोश ही रहा। चालबाज़ नौकर ने कहा, ‘अमीर भी कितना बेरहम है। बुखारा के सब वज़ीर बेवकूफ हैं। और हमारे शहरवाले अमीर भी उल्लू हैं। यह तो पूरे यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि अल्लाह है भी या नहीं।’

मुल्ला नसरुद्दीन की जुबान पर एक करारा उत्तर आया, लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। नौकर ने अत्याधिक निराश होकर एक गाली दी और घोड़े के एड़ लगाकर दो छलांग में ही गली का मोड़ पार करके गायब हो गया।

‘अच्छा तो मुझे एक रिश्तेदार मिल गया।’ मुल्ला नसरुद्दीन मुस्कुराया। उस बूढ़े ने झूठ नहीं कहा था। बुखारा में जासूस मक्खी-मच्छरों की तरह भरे पड़े हैं। यहाँ चालाकी से काम लेना ही ठीक रहेगा। पुरानी कहावत है- कुसूरवार जबान सिर के साथ काटी जाती है।

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