Saturday, April 19, 2008

गरज-बरस प्यासी धरती पर

गरज-बरस प्यासी धरती पर
फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाने, बच्चो को
गुड़धानी दे मौला

दो और दो का जोड़ हमेशा
चार कहाँ होता है
सोच-समझवालों को थोड़ी
नादानी दे मौला

फिर रौशन कर ज़हर का प्याला
चमका नयी सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को
ताबानी1 दे मौला

फिर मूरत से बाहर आकर
चारों ओर बिखर जा
फिर मन्दिर को कोई ‘मीरा’
दीवानी दे मौला

तेरे होते कोई किसी की
जान का दुश्मन क्यों हो
जीनेवालों को मरने की
आसानी दे मौला

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