Tuesday, April 8, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन की दास्तान:3

फिर शुरू हुआ सफर

मुल्ला नसरुद्दीन बिना कोई आवाज किए अमीर के महल से बाहर निकल आया। हमेशा की तरह सकुशल। फिर वह सिपाहियों की नज़रों में छूमंतर हो गया। एक बार फिर उसके गधे की तेज टापों से सड़क गूँजने लगी थी। धूल उड़ने लगी थी और नीले आकाश पर सूरज चमकने लगा था। मुल्ला नसरुद्दीन बिना पलकें झपकाए उनकी ओर देखता रहा।

.एक बार भी पीछे मुड़कर देखे बिना, अतीत की यादों की किसी भी कसक के बिना और भविष्य में आनेवाले संकटों में निडर वह अपने गधे पर सवार हो आगे बढ़ता चला जाता। लेकिन अभी-अभी वह जिस कस्बे को छोड़कर आया है, वह उसे कभी भूल नहीं पाएगा।

उसका नाम सुनते ही अमीर और मुल्ला क्रोध से लाल-पीले होने लगते थे। भिश्ती, ठठेरे, जुलाहे, गाड़ीवान, जीनसाज़ रात को कहवाखा़नों में इकट्ठे होकर उसकी वीरता की कहानियाँ सुना-सुनाकर अपना मनोरंजन करते; और वे कहानियाँ कभी भी समाप्त न होतीं। उसकी प्रसिद्धि और ज्यादा दूर तक फैल जाती।

अमीर के हरम में अलसायी हुई बेगम बार-बार सफे़द पत्थर के उस टुकड़े को देखती और जैसे ही उसके कानों में पति के क़दमों की आवाज़ टकराती, वह उस सीप को पिटारी में छिपा देती।


जिरहबख्त़र की खिलअत को उतारता, हाँफता-काँपता मोटा अमीर कहता, "ओह, इस कमबख्त आवारा मुल्ला नसरुद्दीन ने हम सबकी नाकों में दम कर रखा है। पूरे देश को उजाड़कर गड़बड़ फैला दी है। आज मुझे अपने पुराने मित्र खुरासान के सबसे बड़े अधिकारी का पत्र मिला था। तुम समझती हो ना? उसने लिखा है कि जैसे ही यह आवारा उसके शहर में पहुँचा अचानक लुहारों ने टैक्स देना बंद कर दिया और सरायवालों ने बिना कीमत लिए सिपाहियों को खाना खिलाने से इंकार कर दिया। और सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि वह चोर, वह बदमाश हाकिम के हरम में घुसने की गुस्ताखी कर बैठा। उसने हाकिम की सबसे अधिक चहेती बेगम को फुसला लिया। विश्वास करो, दुनिया ने ऐसा बदमाश आज तक नहीं देखा। मुझे इस बात का अफसोस है कि उस दो कौड़ी के आदमी ने मेरे हरम में घुसने की आज तक कोशिश नहीं की। अगर मेरे हरम में घुस आता तो उसका सिर बाज़ार के चौराहे पर सूली पर लटका दिखाई देता। "

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