Sunday, April 6, 2008

काका हाथरसी की चुटकियां

काका हाथरसी की चुटकियां

मूंछ महात्म्य

मूंछ महात्म्य सुना रहे, सुनो लगाकर कान
ऋषि-मुनि करते रहे, मूंछों का सम्मान

मूंछों का सम्मान कि जिसके मूंछ नहीं थी
भारत में उस प्राणी की कुछ पूछ नहीं थी

कहं ‘काका’ कविराय, फिरंगी जबसे आया
भारत की मूंछों का सत्यानाश कराया।

कंट्रोल बनाम ब्लैक

करते हैं वे घोषणा, बजा-बजाकर ढोल
मूल्य अगर बढ़ते रहे, कर देंगे कंट्रोल
कर देंगे कंट्रोल यही तो चाहे ‘लाला’
धन्यवाद दें तुम्हें, गले में डालें माला
कहं ‘काका’, कर जोड़ प्रार्थना करता बंदा
करो नियंत्रण तो चालू हो जाए धंधा

धक्का देकर धर्म को, धन की माला फेर
चीनी बेची ब्लैक में, छह रुपए की सेर
छ्ह रुपे की सेर, पकड़ थाने पहुंचाए
केस लड़ाए पांच सौ जुर्माना दे आए
कहं ‘काका’ जब हानि-लाभ का खाता छांटा
दस हजार बच रहे, रहा क्या हमको घाटा।


वित्तमंत्री से इंटरव्यू

वित्तमंत्री से मिले, काका कवि अनजान
प्रश्न किया ‘क्या चांद पर रहते हैं इंसान’?
रहते हैं इंसान, मारकर एक ठहाका
कहने लगे कि तुम बिल्कुल बुद्धू हो ‘काका’
अगर वहां मानव होते हम चुप रह जाते
अब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आते।

No comments:

Post a Comment

1