Thursday, April 24, 2008

उल्फत का अधूरा अफसाना कुछ भूल गए कुछ याद भी है

उल्फत का अधूरा अफसाना कुछ भूल गए कुछ याद भी है,
साहिल से लहर का टकराना कुछ भूल गए कुछ याद भी है.
तेरे अहदे वफ़ा ने काम किया मेरा शौके जूनून बढ़ता ही गया,
अफ़सोस बुलंदी पर ला कर खुद तुने मुझको गिरा दिया,
लिपटा के गले यूं ठुकराना कुछ भूल गए कुछ याद भी है.
उल्फत का अधूरा अफसाना कुछ भूल गए कुछ याद भी है.
हम आग से खेले जल भी गए,वो आँख चुरा कर चल भी दिए,
हम उनको भुलायेंगे कैसे,जो पल भर में यूं बदल गए,
इक दर्द मिला है नजराना कुछ भूल गए कुछ याद भी है.
उल्फत का अधूरा अफसाना कुछ भूल गए कुछ याद भी है.
साहिल से लहर का टकराना कुछ भूल गए कुछ याद भी है.

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