Sunday, April 6, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन-13

(पिछले बार आपने पढ़ाः मूर्ख सिपाही से मुल्ला ने जान बचाई)

… मुल्ला नसरुद्दीन की जुबान पर एक करारा उत्तर आया, लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। नौकर ने अत्याधिक निराश होकर एक गाली दी और घोड़े के एड़ लगाकर दो छलांग में ही गली का मोड़ पार करके गायब हो गया।.....उसके आगे )

मुल्ला ने लगाई पैसों की जुगाड़

शहर के दूसरें छोर पर पहुँचकर मुल्ला नसरुद्दीन रुक गया। अपने गधे को एक कहवाख़ाने के मालिक को सौंपकर खुद नानबाई की दुकान में चला गया। वहाँ बहुत भीड़ थी। धुआँ और खाना पकाने की महक आ रही थी। चूल्हे गर्म थे और कमर तक नंगे बावर्चियों की पसीने से तर पीठों पर चूल्हों की लपटों की चमक पड़ रही थी। पुलाव पक रहा था। सीख़ कबाब भुन रहे थे। बैलों का गोश्त उबल रहा था। प्याज, काली मिर्च, और भेड़ की दुम की चर्बी और गोश्त भरे समोसे तले जा रहे थे।

बड़ी मुश्किल से मुल्ला नसरुद्दीन ने बैठने के लिए जगह तलाश की। दब-पिसकर वह जहाँ बैठा, वह जगह इतनी तंग थी कि जिन लोगों की पीठ को धक्का देकर वह बैठा, वे जोऱ से गुर्रा उठे। लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं। मुल्ला नसरुद्दीन ने तीन प्याले कीमा, तीन प्लेट चावल और दो दर्जन समोसे डकार लिए।

खाना खाकर वह दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा। पैर घसीटते हुए वह उस कहवाख़ाने तक पहुँचा, जहाँ अपना गधा छोड़ आया था। उसने कहवा मंगवाया और गद्दों पर आराम से पसर गया। उसकी पलकें झुकने लगीं। उसके दिमाग में धीरे-धीरे खू़बसूरत ख़याल तैरने लगे।

मेरे पास इस वक्त़ अच्छी-खासी रक़म है, घुमक्कड़ी छोड़ने का वक्त आ गया है। क्या मैं एक सुंदर और मेहरबान बीवी हासिल नहीं कर सकता? क्या मेरे भी एक बेटा नहीं हो सकता? पैगंबर की कसम, वह नन्हा और शोर मचानेवाला बच्चा बड़ा होकर मशहूर शैतान निकलेगा। मैं अपनी सारी अकलमंदी और तजुर्बे उसमें उड़ेल दूँगा। मुझे जीनसाज़ या कुम्हार की दुकान खरीद लेनी चाहिए।

वह हिसाब लगाने लगा, अच्छी दुकान की क़ीमत कम-से-कम तीन सौ तंके होगी। लेकिन मेरे पास हैं कुल डेढ़ सौ तंके। अल्लाह उस डाकू को अंधा कर दे। मुझसे वही रकम छीन ले गया, जिसकी किसी काम को शुरू करने के लिए मुझे जरूरत थी।

‘बीस तंके’ अचानक एक आवाज आई। और फिर ताँबे की थाली में पासे गिरने की आवाज सुनाई दी।


बरसाती के किनारे, जानवर बाँधने के खूँटों के बिल्कुल पास कुछ लोग घे़रा बनाए बैठे थे। कहवाख़ाने का मालिक उनके पीछे खड़ा था। जुआ, कुहनियों के सहारे उठते हुए मुल्ला नसरुद्दीन ने भाँप लिया। मैं भी देखूँ। जुआ तो नहीं खेलूँगा। ऐसा बेवकूफ़ नहीं हूँ। लेकिन कोई अकलमंद आदमी बेवकूफों को देखे क्यों नहीं?’ उठकर वह जुआरियों के पास चला गया।

‘बेवकूफ़ लोग,’ कहवाखा़ने के मालिक के कान में उसने फुसफुसाकर कहा-मुनाफे के लालच में अपना आखि़री सिक्का भी गँवा देते हैं। लेकिन उस लाल बालों वाले जुआरी की तकदीर देखो, लगातार चौथी बार जीता है। अरे, यह तो पाँचवीं बार भी जीत गया। इसने दौलत का झूठा सपना जुए की ओर खींच रखा है। फिर छठी बार जीत गया? ऐसी क़िस्मत मैंने कभी नहीं देखी। अगर यह सातवीं बार जीता तो मैं दाँव लगाऊँगा।

काश! मैं अमीर होता तो न जाने कब का जुआ बंद करा चुका होता।’ लाल बालों वाले ने पासा फेंका। वह सातवीं बार फिर जीत गया।

मुल्ला नसरुद्दीन खिलाड़ियों को हटाते हुए घेरे में जा बैठा। उसने भाग्य शाली विजेता के पासे ले लिए। उन्हें उलट पुलटकर अनुभवी आँखों से देखते हुए बोला, ‘मैं तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ।’

‘कितनी रक़म?’ लाल बालों वाले ने भर्राए गले से पूछा। वह ज़्यादा-से-ज्यादा जीत लेने के लिए उतावला हो रहा था।

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