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Tuesday, June 22, 2010

आहे भर-भर कर जीते है,

आहे भर-भर कर जीते है,

जानते है पहचानते है ,

फिर भी बेइंतिहा मोहब्बत करते हैं,

उनकी एक झलक की ख्वाहिश सदा दिल में रखते हैं.

जब भी झलक दिखती हैं ,

दिल में अजीब सी सिरहन उठती हैं.

आँखे झुक जाती है और

दिल में अरमानो की बंशी बजती हैं.

जब भी वो मुस्काती हैं,

जेहन में शीतल बयार सी आती हैं.

अलहदा हो जब वो चलती हैं,

दिल में पायल की छम-छम सी बजती हैं.

उसकी आँखों की गहराई में,

सपनो की दुनिया पलती हैं और

लफ्जो की सहनाई में

हर तन्हाई सुहानी लगती हैं.

प्रीत की पीर बुरी मगर ,

ये दर्द सुहाना लगता हैं.

उसके संग के हर ख्वाब में,

एक पल में जीवन पूरा लगता हैं.

वो अनजान सही,तन से दूर सही,

पर उम्मीद सदा रहती हैं.

दिल को एसा लगता हैं कि

उसके ख्वाबो में भी मेरी दुनिया बसती हैं.

मरता भी हु और मर -मर कर जीता भी हूँ.

मन के इस समंदर में हर तिनके के संग बहता हूँ.

जिस गुल को सूंघता हूँ बू उसकी पता हूँ.

यादों के साज़ पर सिर्फ उसके तराने गता हूँ.

हर बुलबुल कि जुबान पर गुफ्तगुं उसकी हैं.

उसके दस्त-- दरिया में बहती ये जवानी हैं.

उसके जुल्फो कि छाँव में वो रवानी है कि , विरह में भी मधुर कोई कहानी हैं.

हर पल व्याकुल,उसकी राह में चकोर कोई गाने को हैं.

बाँट जोहते थके,नयन-नीर बरसने को हैं.

पहरा घना ,हद हुई अब,

बेकरार हर पल के संग, "आतिश" अब भुजने को हैं.

--द्वारा

अरुण सुमंत "आतिश"

जीवन के इस मोड़ पर ,

जीवन के इस मोड़ पर ,

सपनो की एक डोर हैं.

पर हर सपने की राह

प्रिया मिलन को और हैं.

पता नहीं ये प्यार हैं,

पर जीवन में अब सार हैं.

उसकी उम्मीदों के बिना ,

लगता सब कुछ निस्सार हैं.

योवन की इस चंचलता में ,

दी को बहती हर मादकता हैं.

विरह की इस अकुलाहट में,

बढ़ती प्रिय -मिलनकी चाहत हैं.

उसकी चुलबुली बातो के संग ,

आता हैं तन्हा रातो में रंग.

रंगों के इस मोहक संगम पर ,

जीवन में हर पल उमंग हैं.

उसकी मंद-मंद मुस्काहट में,

नई उम्मीदों की आहत हैं.

और होंठो के कम्पन में,

मेरे हृदय के स्पंदन हैं.

दिवस -रजनी में हर पल,

ख्वाब सजत रहत हूँ.

उसकी पलकों के तल में ही ,

जीवन का सुख पाता हूँ.

ये भूख नहीं, कोई प्यास नहीं.

हृदय की कोई मांग नहीं,

नयनो के इस मेल में,

इंतज़ार अब मंजूर नहीं.

ये प्रीत महज़ विचार नहीं,

मन का कोई वीकार नहीं,

भावों के इस संगम में

हृदय पर मेरा कोई अधिकार नहीं.

प्रीत की ये राह आसान नहीं.

उम्मीदों का कोई पार नहीं.

प्रिय -मिलन की इस चाहत में.

कुछ भी अब अस्वीकार नहीं.

प्रीत का येही दस्तूर हैं.

लगता इंतज़ार अब नासूर हैं.

प्रिय-मिलन की खातिर ,

" आतीश " को अब भुजना भी मंजूर हैं.

--द्वारा

अरुण सुमंत " आतीश "


Saturday, April 17, 2010

ऐ मेरे प्यारे वतन,

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझ पे दिल क़ुरबान
तू ही मेरी आरज़ू, तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान

(तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस ज़ुबाँ को जिसपे आए तेरा नाम ) - २
सबसे प्यारी सुबह तेरी
सबसे रंगीं तेरी शाम
तुझ पे दिल क़ुरबान ...

(माँ का दिल बनके कभी सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं सी बेटी बन के याद आता है तू ) - २
जितना याद आता है मुझको
उतना तड़पाता है तू
तुझ पे दिल क़ुरबान ...

(छोड़ कर तेरी ज़मीं को दूर आ पहुंचे हैं हम
फिर भी है ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की क़सम ) - २
हम जहाँ पैदा हुए
उस जगह पे ही निकले दम
तुझ पे दिल क़ुरबान ...

Sunday, March 21, 2010

अजब तेरी अदा देखी.

करम देखे ,वफ़ा देखी, सितम देखे , जफ़ा देखी
अजब अंदाज़ थे तेरे अजब तेरी अदा देखी.

न जाने कब तुझे पाया न जाने कब तुझे खोया
न हमने इब्तिदा देखी न हमने इंतिहा देखी.

तुम्हारी बज़्म मे जब हम न थे तो क्या कहें तुम से
अजब सूना समां देखा अजब सू्नी फ़ज़ा देखी.

इधर हम सर-ब-सिजदा थे तुम्हारी राह मे जानां
उधर गै़रों की आँखों मे हवस देखी हवा देखी.

अजब बुत है कि हर जानिब हज़ारों चाँद रौशन हैं
ख़ुदा शाहिद है हम ने आज तनवीरे-ख़दा देखी

फ़ना का वक्त था फिर भी बका़ के गीत गाता था
तुम्हारे कै़स कि कल शब अनोखी ही अदा देखी.

देख तेरे दीवाने की अब

देख तेरे दीवाने की अब जान पे क्या बन आई है
चुप साधें तो दम घुटता है बोलें तो रुसवाई है.

बस्ती-बस्ती, जंगल-जंगल, सहरा-सहरा घूमे हैं
हमने तेरी खोज मे अब तक कितनी खाक उड़ाई है.

दिल अपना सुनसान नगर है, फिर भी कितनी रौनक है
सपनो की बारात सजी है, यादों की शहनाई है.

यूँ तो सब कुछ हार चुके हैं, फिर भी माला-माल है हम
बातें करने को सन्नाटा, सोहबत को तनहाई है.

मेरे दिल का चौंक सा जाना, इक मामूली जज़्बा है
वो तो तेरी शोख नज़र थी, जिसने बात बढ़ाई है.

यूँ तो तेरे मयखाने मे, रंगा-रंग शराबे हैं
आज वही ऊंड़ेल जो तेरी, आँखों ने छलकाई है.

आज तो मय का इक-इक कतरा, झूम रहा है मस्ती मे
शायद मेरे ज़ाम से कोई, खास नज़र टकराई है.

आज समंदर की लहरें, ऊँची भी हैं जोशीली भी
या पानी की बेचैनी है , या तेरी अंगड़ाई है.

पहलू-पहलू दर्द उठा है, करवट-करवट रोये हैं
तुझ को क्या मालूम कि हमने ,कैसे रात बिताई है.

मोड़ -मोड़ पर बिजली लपकी, मंज़िल-मंज़िल तीर गिरे
मर-मर कर इस राह मे हमने, अपनी जान बचाई है.

देखने वाले ध्यान से देखें ,हुस्न नही है जादू है
या तो इसका मंत्र ढूँढें ,या फिर शामत आई है.

कहने को तो वस्ल की दावत ,लेके कोई आया है
हो न हो मेरी तनहाई ,भेस बदल कर आई है.

सारी सखियाँ पूछ रहीं हैं ,आज हमारी राधा से
तेरे मन के बरिंदावन मे ,किसने रास रचाई है.
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