Sunday, April 6, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन-14

(पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला पुहंचा जुआखाना)

… शहर के दूसरें छोर पर पहुँचकर मुल्ला नसरुद्दीन रुक गया। अपने गधे को एक कहवाख़ाने के मालिक को सौंपकर खुद नानबाई की दुकान में चला गया। वहाँ बहुत भीड़ थी। धुआँ और खाना पकाने की महक आ रही थी। .....उसके आगे )


मुल्ला नसरुद्दीन ने खेला जुआं, पलटी किस्मत

मुल्ला नसरुद्दीन ने अपना बटुआ निकाला। जरूरत के लिए पच्चीस तंके छोड़कर बाक़ी निकाल लिए। ताँबे के थाल में चाँदी के सिक्के खनखनाकर गिरे और चमकने लगे। ऊँचे दाँवों का खेल शुरू हो गया।

लाल बालों वाले ने पासे उठा लिए। बहुत देर तक उन्हें खनखनाता रहा, जैसे उन्हें फेंकते हुए झिझक रहा हो। सब लोग साँस रोके देख रहे थे। आखि़र लाल बालों वाले ने पासे फेंके। खिलाड़ी गर्दन बढ़ाकर देखने लगे और फिर एक साथ ही पीछे की ओर लुढ़ककर बैठ गए। लाल बालों वाला पीला पड़ गया। उसके भिंचे हुए दाँतों से कराह निकल गई। जुआरी हार गया था।

अपने पर भरोसा करने के लिए तकरीद ने मुल्ला नसरुद्दीन को सबक सिखाने का इरादा कर लिया। इसके लिए उसने चुना उसके गधे, या कहो गधे की दुम को। गधा जुआरियों की ओर पल्टा और उसने दुम घुमाई। दुम सीधी उसके मालिक के हाथ से जा टकराई। पासे हाथ से फिसल गए। लाल बालों वाला जुआरी खुशी से भर्रायी चीख़ के साथ जल्दी से थालपर लेट गया और दाँव पर लगी रक़म अपने बदन से ढक ली।

मुल्ला नसरुद्दीन की फटी-फटी आँखों के सामने दुनिया ढहती-सी नजर आ रही थी। अचानक वह उछला। उसने एक डंडा उठा लिया और खूँटे के पास खदेड़ते हुए गधे को पीटने लगा।

‘कमबख्त़, बदबूदार जानवर, सभी जिंदा जानवरों के लिए लानत।’ मुल्ला नसरुद्दीन चिल्ला रहा था, क्या यही काफी़ नहीं था कि अपने मालिक के पैसे से जुआ खेले? क्या यह पैसा हारना भी जरूरी था। बदमाश, तेरी खाल खींच ली जाए तेरे रास्ते में अल्लाह गड्डा कर दे, ताकि तू गिरे और तेरे पैर टूट जाएँ। न जाने तू कब मरेगा? मुझे तेरा बदनुमा चेहरा देखने से कब छुट्टी मिलेगी?’

गधा रेंकने लगा। जुआरी खिलखिलाकर हँसने और चिल्लाने लगे। सबसे ज़्यादा जो़र से लाल बालों वाला जुआरी चिल्लाया। उसे अपनी खुशकिस्मती पर पक्का यक़ीन हो गया था। थके हाँफते हुए मुल्ला नसरुद्दीन ने डंडा फेंक दिया तो लाल बालों वाले ने कहा, ‘आओ, फिर खेल लो। दो-चार दाँव और लग जाएँ। तुम्हारे पास अभी पच्चीस तंके तो हैं ही।’

यह कहकर उसने बायाँ पैर फैला दिया और मुल्ला नसरुद्दीन के प्रति उपेक्षा प्रकट करते हुए उसे हिलाने लगा।

‘हाँ-हाँ, क्यों नहीं।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा। वह सोच रहा था-जब सवा सौ तंके चले गए तो अब बाक़ी पच्चीस का ही क्या होगा? उसने लापरवाही से पासे फेंके और जीत गया। हारी हुई रकम थालपर फेंकते हुए लाल बालों वाले ने कहा, ‘पूरी रकम।’ मुल्ला नसरुद्दीन फिर जीत गया। लाल बालों को विश्वास नहीं हो रहा था कि किस्मत पलट गई। ‘पूरी रक़म,’ उसने फिर कहा। उसने लगातार सात बार यही कहा और हर बार हारता गया।

थाल रुपयों से भर चुका था। जुआरी खामोश बैठे थे। लाल बालों वाला चिल्लाया, ‘अगर शैतान ही तुम्हारी मदद कर रहा हो तो बात दूसरी है। वरना तुम हर बार जीत नहीं सकते।
कभी तो तुम हारोगे ही। थाल में तुम्हारे सोलह सौ तंके हैं। लगाओगे फिऱ एक बार पूरी रकम? कल मैं इस रकम से अपनी दुकान के लिए माल ख़रीदने वाला था। तो इसे भी दाँव पर लगाता हूँ।’

उसने सोने के सिक्कों, तिल्ले और तुमानों से भरी एक छोटी सी थैली निकाली। मुल्ला नसरुद्दीन उतावली भरी आवाज़ में चिल्लाया, ‘अपना सोना इस थाल में उड़ेल दे।’

इस कहवाखा़ने में ऐसे भारी दाँव देखे नहीं गए थे। मालिक उबलती हुई केतिलयों को भूल गया। जुआरियों की साँसें लंबी-लंबी चलने लगीं। लाल बालों वाले ने पासे फेंके और आँखें मूँद लीं। पास देखने में उसे डर लग रहा था।

‘ग्यारह’ सब एक साथ चिल्ला उठे। मुल्ला नसरुद्दीन अपने-आपको क़रीब-क़रीब हारा हुआ समझने लगा। अब केवल दो छक्के यानी बारह काने ही उसे बचा सकते थे। अपनी खुशी को छिपाए बिना लाल बालों वाला भी दोहराने लगा-ग्यारह-ग्यारह काने। देखो भई, मेरे ग्यारह हैं। तुम हार गए, हार गए-हार गए।’

मुल्ला नसरुद्दीन का जैसे सारा बदन ठंडा पड़ गया। उसने पास उठाए और फेंकने की तैयारी करने लगा। फिर अचानक उसने हाथ रोक लिया।

‘इधर पलट।’ उसने अपने गधे से कहा, ‘तू तीन काने पर हार गया था।’ ले, अब ग्यारह काने पर जीने की कोशिश कर। नहीं तो मैं तुझे इसी वक्त कसाई के यहाँ ले चलूँगा।’

बाएँ हाथ से गधे की दुम पकड़े-पकड़े उसने दाएँ हाथ से गधे को ठोका। लोगों की ऊँची-ऊँची आवाज़ों से कहवाख़ाना हिल उठा। मालिक कलेजा थामकर बैठ गया। यह तनाव उसकी बरदाश्त से बाहर था।

‘यह लो-एक-दो।’

पासों पर दो छक्के थे। लाल बालों वाले जुआरी की जैसे आँखें बाहर निकल पड़ीं और उसके सूखे सफेद चेहरे पर काँच की तरह जड़ी रह गईं। वह हौले से उठा और रोता, डगमगाता चला गया। मुल्ला नसरुद्दीन ने जीती हुई दौलत को थैलों में भर लिया। गधे को गले लगाया, उसका मुँह चूमा और बढ़िया मालपुए खिलाए। वह होशियार जानवर हैरान था कि अभी कुछ मिनट पहले ही उसके साथ बिल्कुल विपरीत व्यवहार हुआ था।

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