Tuesday, April 8, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन की दास्तान:4

इसके पहले आपने पढ़ा
मुल्ला को सबसे प्यारा था अपना वतन बुखारा। और आज वह बुखारा की सरहद पर अपनी रात बिताने की तैयारी कर रहा था।


अपना शहर बुखारा छोड़ने के बाद के वर्षों में मुल्ला अनेक नगरों में घूम आया था। वह जहाँ भी जाता था, अपनी एक-न-एक ऐसी याद छोड़ जाता था, जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता था। और अब वह अपने वतन, अपने शहर बुखारा लौट रहा था। पवित्र बुखारा-जहाँ वह अपना नाम बदलकर कुछ दिन इधर-उधर भटकने से छुट्टी पाकर आराम करना चाहता था।


वह व्यापारियों के एक काफि़ले के पीछे-पीछे चल पड़ा था। उसने बुखारा की सरहद पार कर ली। आठवें दिन गर्द की धुंध में उसे इस बड़े और मशहूर नगर की ऊँची-ऊँची मीनारें दिखाई दीं।


प्यास और गर्मी से निढाल ऊँट वालों ने फटे गलों से आवाजें लगाईं। ऊँट और भी तेजी से आगे बढ़ने लगे। सूरज डूब रहा था। फाटक बंद होने से पहले बुखारा में दाखिल होने के लिए तेज़ी जरूरी थी। मुल्ला नसरुद्दीन कारवाँ में सबसे पीछे था- धूल के मोटे और भारी बादलों में लिपटा हुआ। यह धूल उसके अपने वतन की धूल थी- पवित्र धूल, जिसकी खुशबू उसे दूर देशों की मिट्टी की खुशबू से कहीं अधिक अच्छी लग रही थी।
छींकता, खाँसता वह अपने गधे से कहता चला जा रहा था- ‘अच्छा ले, हम लोग पहुँच ही गए। आखि़र अपने वतन में पहुँच ही गए। खुदा ने चाहा तो खुशियाँ और सफलताएँ यहाँ इंतजार कर रही होंगी’।

जब कारवाँ शहर के परकोटे तक पहुँचा तो पहरेदार फाटक बंद कर चुके थे।


‘खुदा के लिए हमारा इंतजार करो।’ कारवाँ का सरदार सोने का सिक्का दिखाते हुए दूर से चिल्लाया।

लेकिन तब तक फाटक बंद हो गए। साँकलें लग गईं। परकोटे के ऊपर बनी बुर्जियों में लगी तोपों के पास पहरेदार आकर खड़े हो गए। तेज हवा चलने लगी। धुंध भरे आकाश पर फैली गुलाबी रोशनी रात के धुँधलकों में दबकर गायब हो गई। दूज का नाजुक चाँद आकाश से झाँकने लगा। रात के फैलते झुटपुटे की खामोशी में अनगिनत मस्जिदों की मीनारों से अजान देने वालों की ऊँची आवाजें तैरती हुई आने लगीं. वे मुसलमानों को शाम की नमाज के लिए बुला रहे थे।

जैसी ही व्यापारी और ऊँटवाले नमाज के लिए सजदे में झुके, मुल्ला नसरुद्दीन अपने गधे के साथ एक ओर खिसक गया।





इन व्यापारियों के पास कुछ है, जिसके लिए खुदा को धन्यवाद दें। शाम का खाना ये लोग खा चुके हैं। थोड़ी देर बाद रात का खाना खाएँगे। ऐ मेरे वफ़ादार गधे, हम दोनों भूखे हैं। अगर अल्लाह यह चाहता है कि हम उसे धन्यवाद दें तो मेरे लिए पुलाव की एक प्लेट और तेरे एक गट्ठर तिपतिया घास भेज दे। हमें न तो शाम का खाना मिला है और न रात का खाना मिलने की कोई उम्मीद दिखाई दे रही है।

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