Sunday, February 7, 2010

क्या खुदा भी उसका था … .?

वफ़ा में अब ये हुनर इख्तिआर करना है ,
वोह सच कहे ना कहे एतबार करना है .
यह तुझको जागते रहने का शौक कबसे हुआ ,
मुझे तौ खैर तेरा इंतज़ार करना है .
ख्वाबो मैं आएंगे मैसेज की तरह .
दिल मैं बस जायेंगे रिंग टोने की तरह ,
ये यारी कभी कम न होगी बैलेंस की तरह ,
सिर्फ तुम बीजी न होना नेटवर्क की तरह .
बाद मरने के मेरे तुम जो कहानी लिखना
कैसे बर्बाद हुई मेरी जवानी लिखना .
यह भी लिखना की मेरे होंट हंसी को तरसे ,
उमर भर आंख से बहता रहा पानी लिखना .
दर्द से दोस्ती हो गयी यारों ,
ज़िन्दगी बेदर्द हो गयी यारों .
क्या हुआ जो जल गया आशियाना हमारा ,
दूर तक रोशनी तो हो गयी यारों ….
दिलो को खरीदने वाले हज़ार मिल जायेगे ,
आप को दगा देने वाले बार -बार मिल जायेगे ,
मिलेगा न आपको हम जैसा कोई ,
मिलने को तो दोस्त बेशुमार मिल जायेगे .
सुस्ती भरे जिस्म को जागते क्यों नहीं ,
उठ कर सबके सामने आते क्यों नहीं ,
बोड़ी भी तुम्हारा स्मेल मारता है ,
थोडी हिम्मत करके नहाते क्यों नहीं …
मंजिले भी उसकी थी ,
रास्ता भी उसका था .
एक मैं अकेला था , काफिला भी उसका था ..
साथ -साथ चलने की सोच भी उसकी थी ,
फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था …
आज क्यों अकेला हूँ , दिल सवाल करता है ,
लोग तो उसके थे ,
क्या खुदा भी उसका था … .?

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