Friday, February 26, 2010

अब कोई ख्वाब ही मुझे बहलाएगा

अब कोई ख्वाब ही मुझे बहलाएगा
इस मुहब्बत से चाह ना मिल पाएगा
 
हमने देखी है इश्क की शहादतें कई
हौसले पतंगे का चिराग ना तोड़ पाएगा
 
तारीफों के पुल बनाने में जो माहिर
इश्क की आग में ज़ज्बात ना टिक पाएगा
 
जो बुलंदी की देते रहते हैं हवा
बावरे बादलों में वह ना रूक पाएगा
 
तैरते रहते हैं जो ले ज़ज्बात-ए-समंदर
चाह की सीपी को छुवा तो डूब जाएगा.
 

 
Ab koi khwab hi mujhe bahlayega
Ess mohabbat se chaah na mil payega
 
Hamne dekhi hai ishq ki shahadatein kayi
Hausle patange ka chorag na tod payega
 
Taarifon ke pul banane me jo maahir
Ishq ki aag me woh jajbaat na tik payega
 
Jo bulandi ko dete rahte hain hawa
Baware badalon me woh na ruk payega
 
Tarate rahte hain jo le jajbat-E-samandar
Chaah ki sipi ko chhuwa to doob jayega.

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