Saturday, March 6, 2010

अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो...


अगले जनम मोहे बेटवा कीजो...


अब जो किये हो दाता, ऐसा ना कीजो
अगले जनम मोहे बेटवा ना कीजो ऽऽऽऽ

अगले जनम मोहे बेटवा कीजो!!

अब के कर दिये हो, चलो कोई बात नहीं. अगली बार ऐसा मत करना माई बाप. भारी नौटंकी है बेटा होना भी. यह बात तो वो ही जान सकता है जो बेटा होता है. देखो तो क्या मजे हैं बेटियों के. १८ साल की हो गई मगर अम्मा बैठा कर खोपड़ी में तेल घिस रहीं हैं, बाल काढ़ रही हैं, चुटिया बनाई जा रही है और हमारे बाल रंगरुट की तरह इत्ते छोटे कटवा दिये गये कि कँघी फसे और अगले चार महिने कटवाना पड़े. घर में कुछ टूटे फूटे, कोई बदमाशी हो बस हमारे मथ्थे कि इसी ने की होगी. फिर क्या, पटक पटक कर पीटे जायें. पूछ भी नहीं सकते कि हम ही काहे पिटें हर बार? सिर्फ यही दोष है कि बेटवा हैं, बिटिया नहीं.

बेटा होने का खमिजियाना बहुत भुगता-कोई इज्जत से बात ही नहीं करता. जा, जरा बाजार से धनिया ले . फलाने को बता . स्टेशन चला जा, चाचा रहे हैं, ले . ये सामान भारी है, तू उठा ले. हद है यार!!

जब देखो तब, सारा फेवर लड़की को. अरे बेटा, कुछ दिन तो आराम कर ले बेचारी, फिर तो पराये घर चले जाना है. उनके लिए खुद से क्रीम पावडर सब ला ला कर रखें और वो दिन भर सजें. सिर्फ इसलिये कि कब लड़के वालों को पसंद जाये और उसके हाथ पीले किये जायें. हम जरा इत्र भी लगा लें तो दे ठसाई. पढ़ने लिखने में तो दिल लगता नहीं. बस, इत्र फुलेल लगा कर शहर भर लड़कियों के पीछे आवरागर्दी करते घूमते हो. आगे से ऐसे नजर आये तो हाथ पैर तोड़ डालूंगा-जाओ पढ़ाई करो.

बिटिया को बीए करा के पढ़ाई से फुरसत और बड़े खुश कि गुड सेकेंड डिविजन पास हो गई. हम बी एस सी मे ७०% लाकर पिट रहे हैं कि नाक कटवा दी. अब बाबू के सिवा तो क्या नौकरी मिलेगी. अभी भी मौका है थोड़ा पढ़ कर काम्पटिशन में जाओ, जिन्दगी भर हमारी सीख याद रखोगे. पक गया मैं तो बेटा होकर.

जब कहीं पार्टी वगैरह में जाओ कोई देखने वाला नहीं. कौन देखेगा, कोई लड़की तो हैं नहीं.

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लड़का लड़की को देखे तो आवारा कहलाये और कोई लड़की देखे तो उनकी नजरे इनायत.

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लड़की चलते चलते टकरा जाये तो मुस्कराते हुए सॉरी और हम टकरा जाये तो 'सूरदास है क्या बे!! देख कर नहीं चल सकता.'

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उनके बिखरे बाल, सावन की घटा और हमारे बिखरे बाल, भिखारी लगता है कोई.

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उनके लिए हर कोई बस में जगह खाली करने को तैयार और हमें अच्छे खासे बैठे को उठा कर दस उलाहने कि जवान होकर बैठे हो और बुजुर्गों के लिए मन में कोई इज्जत है कि नहीं-कैसे संस्कार हैं तुम्हारे.

हद है भई इस दोहरी मानसिकता की. हमें तो बिटिया ही कीजो, नहीं तो ठीक नहीं होगा, बता दे रहे हैं एक जन्म पहले ही. कोई बहाना नहीं चलेगा कि देर से बताया.

ऑफिस में अगर लड़की हो तो बॉस तमीज से बात करे, कॉफी पर ले जाये और फटाफट प्रमोशन. सब बस मुस्कराते रहने का पुरुस्कार और हम डांट खा रहे हैं कि क्या ढ़ीट की तरह मुस्कराते रहते हो, शरम नहीं आती. एक तो काम समय पर नहीं करते और जब देखो तब चाय के लिए गायब. क्या करें महाराज, रोने लगें? बताओ?

अगर पति सही आईटम मिल जाये तो ऑफिस की भी जरुरत नहीं और आराम ही आराम. जब जो जी चाहे करो बाकी तो नौकर चाकर संभाल ही रहे हैं. आखिर पतिदेव आईटम जो हैं. जब मन हो सो कर उठो, चाय पिओ, नाश्ता करो और फिर ठर्रा कर बाजार घूमों, टीवी देखो, ब्लॉगिंग करो..फिर सोओ. रात के लिए क्या बनना है नौकर को बता दो, फुरसत!! क्या कमाल है, वाह. काश, हम लड़के भी यह कर पायें.

क्या क्या गिनवाऊँ, पूरी उपन्यास भर जायेगी मगर दर्द जरा भी कम होगा. रो भी नहीं सकता, वो भी लड़कियों को ही सुहाता है. उससे भी उनके ही काम बनते हैं. हम रो दें तो सब हँसे कि कैसा लड़का है? लड़का हो कर रोता है. बंद कर नौटंकी. भर पाये महाराज!!

बस प्रभु, मेरी प्रार्थना सुन लो-अगले जनम मोहे बेटवा कीजो. हाँ मगर ध्यान रखना महाराज, रंग रुप देने में कोताहि बरतना-इस बार तो लड़के थे, चला ले गये. लड़की होंगे तो तुम्हारी यह नौटंकीबाजी चल पायेगी. जरा ध्यान रखना, वर्कमैनशिप का. उपर वाली फोटू को सुपरवाईजरी ड्राईंग मानना, विश्वकर्मा जी. १९/२० चलेगा-खर्चा पानी अलग से देख लेंगे.

ब्लॉगिंग स्पेशल: अगर लड़की होऊँ तो कुछ भी लिखूँ, डर नहीं रहेगा. अभी तो नारी शब्द लिखने में हाथ काँप जाते हैं. की-बोर्ड थरथरा जाता है. हार्ड डिस्क हैंग हो जाती है कि कहीं ऐसा वैसा लिख जाये कि सब महिला ब्लॉगर तलवार खींच कर चली आयें. हालात ऐसे हो गये हैं कि नारियल तक लिखने में घबराहट होती है कि कहीं नारियल का 'यल' पढ़ने से रह गया, तो लेने के देने पड़ जायेंगे. इस चक्कर में कई खराब नारियल खा गये मगर शिकायत नहीं लिखी अपने ब्लॉग पर.

बस प्रभु, अब सुन लो इत्ती अरज हमारी...
अगले जनम में बना देईयो हमका नारी..



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