Sunday, March 21, 2010

देख तेरे दीवाने की अब

देख तेरे दीवाने की अब जान पे क्या बन आई है
चुप साधें तो दम घुटता है बोलें तो रुसवाई है.

बस्ती-बस्ती, जंगल-जंगल, सहरा-सहरा घूमे हैं
हमने तेरी खोज मे अब तक कितनी खाक उड़ाई है.

दिल अपना सुनसान नगर है, फिर भी कितनी रौनक है
सपनो की बारात सजी है, यादों की शहनाई है.

यूँ तो सब कुछ हार चुके हैं, फिर भी माला-माल है हम
बातें करने को सन्नाटा, सोहबत को तनहाई है.

मेरे दिल का चौंक सा जाना, इक मामूली जज़्बा है
वो तो तेरी शोख नज़र थी, जिसने बात बढ़ाई है.

यूँ तो तेरे मयखाने मे, रंगा-रंग शराबे हैं
आज वही ऊंड़ेल जो तेरी, आँखों ने छलकाई है.

आज तो मय का इक-इक कतरा, झूम रहा है मस्ती मे
शायद मेरे ज़ाम से कोई, खास नज़र टकराई है.

आज समंदर की लहरें, ऊँची भी हैं जोशीली भी
या पानी की बेचैनी है , या तेरी अंगड़ाई है.

पहलू-पहलू दर्द उठा है, करवट-करवट रोये हैं
तुझ को क्या मालूम कि हमने ,कैसे रात बिताई है.

मोड़ -मोड़ पर बिजली लपकी, मंज़िल-मंज़िल तीर गिरे
मर-मर कर इस राह मे हमने, अपनी जान बचाई है.

देखने वाले ध्यान से देखें ,हुस्न नही है जादू है
या तो इसका मंत्र ढूँढें ,या फिर शामत आई है.

कहने को तो वस्ल की दावत ,लेके कोई आया है
हो न हो मेरी तनहाई ,भेस बदल कर आई है.

सारी सखियाँ पूछ रहीं हैं ,आज हमारी राधा से
तेरे मन के बरिंदावन मे ,किसने रास रचाई है.

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