Saturday, March 6, 2010

मत चीख दर्द से ओ दिल ये ज़ख़्म की तोहीन होगी

मत चीख दर्द से ओ दिल ये ज़ख़्म की तोहीन होगी
आंह पहुंची जो उन तक तो ये अपनी बे वफाई होगी

छुपा ले अंसुयों को अपने कहीं लोग पूछ न ले हम से
नाम आ गया जुबां पे तो दुनिया में उसकी रुसवाई होगी

वक़्त ऐसे ही नही कुछ सोच के ही देता है हर दर्द
अपने भी इन रिसते हुए ज़ख्मों की दावा कहीं बनायीं होगी

तू जो खोया रहता है हर पल ख्यालों में उसके
देख कर सुनी गलिय याद उसको भी आई होगी

तू तो बहा देता है चांदनी रात में जो अकेला मोती
सिमटना करके याद बांहों में आंसू वो भी न रौक पाई होगी

बाकि है बहुत जीना उसकी यादों और दिए दर्द के साथ
अभी कहाँ मसितों पर बंधे धागे वो खोल पाई होगी

आखरी मुलाक़ात को मिटने का अभी सफ़र है बहुत बाकि है
मिलना पहली बार तेरा कॉलेज में न भूल पाई होगी

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