Monday, March 15, 2010

उनको ये शिकायत है..

Unko ye shikayat hai, mai bewafai pe nahi likhti
Aur Mai sochti hun ki mai unki ruswai pe nahi likhti

Khud apne se jyaada bura jamane me kaun hai
Mai isiliye auro ki burai pe nahi likhti

Kuch to aadat se majboor hai aur kuch fitrato ki pasand hai,
Jakham kitne bhi gahre ho, mai unki duhai pe nahi likhti

Duniya ka kya hai, Har haal me ilzaam lagati hai,
Warna kya baat ki mai kuch apni saphai pe nahi Likhti

Shaan-E-Amiri pe karu kuch Arz.. Magar ek rukawat hai,
Mere usul, Mai gunaho ki kamai pe nahi likhti

Uski taqat ka nasha, "Mantra" aur "Kalme" me barabar hai,
Mere Dosto mai majhab ki larai pe nahi likhti

Samandar ko parakhne ka mera najariya hi alag hai yaro,
Mijajo pe likhti hu mai, uski gaharai pe nahi likhti

Paraye Dard ko mai ghajlo me mahsus karti hu,
Ye sach hai mai sajar se phal ki judai pe nahi likhti

Tajurba teri mohabbat ka na likhne ki wajah bas ye
Ki shaya ishq me khud apne tabahi pe nahi likhti.



उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखती,
और मैं सोचती हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखती.'

'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखती.'

'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखती.'

'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखती.'

'शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखती.'

'उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखती.'

'समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखती हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखती.'

'पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करती हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखती.'

'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!
क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखती...!!!"

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