Monday, March 8, 2010

ज़ख्म सदियों फलक पर इतने पुराने किसके थे

ज़ख्म सदियों फलक पर इतने पुराने किसके थे
तहरीर अश्कों ने लिखी थी वो अफसाने किसके थे

नमी एक शनाश सी महसूस होती थी अक्सर (शनाश – परिचित)
गुनगुनाता रहा है वक़्त दर्द के तराने किसके थे

हर आहात के पीछे चले मील दो मील आबला पा
आवारा उम्मीद के पुर्जे वो न जाने किसके थे
(आबला पा – घायल पैर)

रात जाने कैसी हिचकियों से टूटी थी नींद मेरी
सुबह खवाब कुछ सोये मेरे सिरहाने किसके थे

लिखा था कभी अश्कों से धोकर काग़ज़ पर
सोचता हूँ मेरे नाम वो ख़त पुराने किसके थे

महफ़िल में यूं हुमसे मिले वो अजनबी की तरह
सोचते हैं भला हम आखिर दीवाने किसके थे

खुद अपनी ही आग से जलते रहे हैं तमाम उम्र
रो पड़ी देख शमा आखिर ये परवाने किसके थे

वीरान कितना उजाड़ कर दिया है शकील तुमने बताओ
खुशबु आतीं हैं दिल से आज भी जाने ठिकाने किसके थे

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