ज़मीन से रह गया दूर आसमान कितना
सितारा अपने सफ़र में है खुश-गुमान कितना
परिन्दा पैकाँ-ब-दोश1 परवाज कर रहा है
रहा है उसको ख़याल-ए-सय्यादगान2 कितना
हवा का रुख़ देखकर समन्दर से पूछना है
उठाएँ अब कश्तियों पे हम बादबान3 कितना
बहार में ख़ुशबूओं का नाम-ओ-नसब4 था जिससे
वही शजर आज हो गया बेनिशान कितना
गिरे अगर आईना तो इक ख़ास जाविये5 से
वर्ना हर अक्स को रहे खुद पे मान कितना
बिना किसी आस के उसी तरह जी रहा है
बिछड़ने वालों में था कोई सख़्तजान कितना
वो लोग क्या चल सकेंगे जो उँगलियों पे सोचें
सफ़र में है धूप किस कदर, सायबान कितना
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1.कन्धे पर बाण की नोक के लिए। 2.बहेलियों का ध्यान। 3.पोतपट। 4.नाम और गोत्र। 5.कोण।
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