Sunday, April 6, 2008

मेरे महबूब के दामन की वो एक जुम्बिश है

मेरे महबूब के दामन की वो एक जुम्बिश है
बागवां जिसको गुलिस्तां की हवा कहते हैं

खुदा जाने करेगा चाक किस-किस के गरीबां को
अदा से उनका चलने में वो दामन का उठा लेना

हिज्र हो या विसाल ऐ अकबर
जागना रातभर कयामत है

तुम नहीं पास कोई पास नहीं
अब मुझे जिन्दगी की आस नहीं

आ के तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूं मैं
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूं मैं

कह्र हो या बला हो जो कुछ हो
काश कि तुम मेरे लिये होते

ऐ इश्क की बेबाकी क्या तूने कहा उनसे
जिस पर उन्हें गुस्सा है इंकार भी हैरत भी

अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझको छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ

गरज कि काट दिए जिन्दगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हो या तुझे भुलाने में

फिर दिल पे है निगाह किसी की रुकी रुकी
कुछ जैसे कोई याद दिलाता है आज फिर

थोड़ी बहुत मुहब्बत से काम नहीं चलता ऐ दोस्त
ये वो मामला है जिसमें या सब कुछ या कुछ भी नहीं

हम भी कुछ खुश नहीं वफा करके
तुमने अच्छा किया निबाह न की
समझते क्या थे मगर सुनते थे फसानाए-दर्द
समझ में आने लगा जब तो फिर सुना न गया

पूछा जो उनसे गैर को चाहूं तो क्या करो
बोले कि जाओ चाहो कोई दूसरा भी है

मेरी आंखें और दीदार आप का
या कयामत आ गई या ख्वाब है

बुत को बुत और खुदा को जो खुदा कहते हैं
हम भी देखें कि तुझे देख के क्या कहते हैं

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे

सितारों के आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क के इम्तेहां और भी हैं

मासूम है मुहब्बत लेकिन उसी के हाथों
ये भी हुआ कि मैंने तेरा बुरा भी चाहा

रोग पैदा कर ले कोई जिंदगी के वास्ते
सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं

इश्क कहता है दो आलम से जुदा हो जाओ
हुस्न कहता है जिधर जाओ नया आलम है

देखा न आंख उठा के कभी अहले-दर्द ने
दुनिया गुजर गई गमे-दुनिया लिये हुये

इश्क कहते हैं जिसे सब वो यही है शायद
खुद-ब-खुद दिल में है इक शख्स समाया जाता

ऐ इश्क तूने अक्सर कौमों को खा के छोड़ा
जिस घर से सर उठाया उसको बिठा के छोड़ा
इश्क में कहते हो हैरान हुये जाते हैं
ये नहीं कहते कि इन्सान हुए जाते हैं

इश्क ने ''ग़ालिब'' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के ।

इश्क में कहते हो हैरान हुये जाते हैं
ये नहीं कहते कि इन्सान हुए जाते हैं

इश्क ने ''ग़ालिब'' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के ।

No comments:

Post a Comment

1