तेनालीराम की गायें
राजा कृष्णदेव राय सवेरे-सवेरे बगीचे में घूमने जाया करते थे, साथ में तेनालीराम भी होते थे। इस बात से दरबार के अन्य लोग जलते थे। वे इसी ताक में रहते थे कि कैसे तेनालीराम को नीचा दिखाया जाए।
एक दिन तेनालीराम बीमार पड़ गए। राजा अकेले ही घूमने गए। जब वे बगीचे में गए तो यह देखकर हैरान रह गए कि वहां के फूल-पौधे कुचले पड़े हैं और कुछ गायें चर रही हैं। दुखी राजा ने माली को बुलवाया।
राजा ने पूछा, “यह गायें कहां से आईं?”
माली को सभी दरबारियों ने तेनालीराम का नाम बताने को कहा था। उसने कहा, “महाराज यह गायें तेनालीराम ने बगीचे में चराने के लिए मंगवाई हैं।”
तब तक दूसरे दरबारी भी आ गए। उन्होंने भी राजा से चुगली की। राजा कृष्ण देव राय तेनालीराम पर बहुत गुस्सा हुए। उन्होंने तेनालीराम पर पांच हजार स्वर्णमुद्राओं का जुर्माना लगा दिया।
इस बीच तेनालीराम को भी इस बात का पता चल गया। उन्होंने मामले की छानबीन की। घटना के तीसरे दिन वह दरबार में आए। उनके साथ में कुछ गांव वाले भी थे। महाराज को प्रणाम कर तेनालीराम ने कहा, “महाराज मुझे सजा देने पहले इन गांव वालों की शिकायत सुन लें।”
गांव वालों ने कहा, “महाराज आपके कुछ दरबारियों ने हमसे कुछ गायें खरीद कर लाईं थीं। उनके पैसे हमें अब तक नहीं मिले हैं। आप ही न्याय करें महाराज।”
राजा ने जब पूछताछ की तो सच्चाई का पता लग गया। गायें तेनालीराम को नींचा दिखाने के लिए लाई गई थीं। राजा ने उन षड्यंत्रकारियों को वही जुर्माना लगाकर तेनालीराम को बरी कर दिया। साथ-साथ दरबारियों को उन गायों की कीमत भी अदा करने को कहा गया। इस बार भी दुष्ट दरबारी तेनालीराम की बुद्धि के आगे मात खा गए।
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