विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय को अनोखी चीजों को जमा करने का बहुत शौक था। हर दरबारी उन्हें खुश करने के लिए ऐसी ही चीजों की खोज में लगे रहते थे, ताकि राजा को खुश कर उनसे मोटी रकम वसूल सके।
एक बार कृष्णदेव राय के दरबार में एक दरबारी ने एक मोर को लाल रंग में रंग कर पेश किया और कहा, “महाराज इस लाल मोर को मैंने बहुत मुश्किल से मध्य प्रदेश के घने जंगलों से आपके लिए पकड़ा है।” राजा ने बहुत गौर से मोर को देखा। उन्होंने लाल मोर कहीं नहीं देखा था।
राजा बहुत खुश हुए...उन्होंने कहा, “वास्तव में आपने अद्भुत चीज लाई है। आप बताएं इस मोर को लाने में कितना खर्च पड़ा।” दरबारी अपनी प्रशंसा सुनकर आगे की चाल के बारे में सोचने लगा।
उसने कहा, “मुझे इस मोर को खोजने में करीब पच्चीस हजार रुपए खर्च करने पड़े।”
राजा ने तीस हजार रुपए के साथ पांच हजार पुरस्कार राशि की भी घोषणा की। राजा की घोषणा सुनकर एक दरबारी तेनालीराम की तरफ देखकर मुस्कराने लगा।
तेनालीराम उसकी कुटिल मुस्कराहट देखकर समझ गए कि यह जरूर उस दरबारी की चाल है। वह जानते थे कि लाल रंग का मोर कहीं नहीं होता। बस फिर क्या था, तेनालीराम उस रंग विशेषज्ञ की तलाश में जुट गए।
दूसरे ही दिन उन्होंने उस चित्रकार को खोज निकाला। वे उसके पास चार मोर लेकर गए और उन्हें रंगवाकर राजा के सामने पेश किया।
“महाराज हमारे दरबारी मित्र, पच्चीस हजार में केवल एक मोर लेकर आए थे, पर मैं उतने में चार लेकर आया हूं।”
वाकई मोर बहुत खूबसूरत थे। राजा ने तेनालीराम को पच्चीस हजार रुपए देने की घोषणा की। तेनाली राम ने यह सुनकर एक व्यक्ति की तरफ इशारा किया, “महाराज अगर कुछ देना ही है तो इस चित्रकार को दें। इसी ने इन नीले मोरों को इतनी खूबसूरती से रंगा है।”
राजा को सारा गोरखधंधा समझते देर नहीं लगी। वह समझ गए कि पहले दिन दरबारी ने उन्हें मूर्ख बनाया था।
राजा ने उस दरबारी को पच्चीस हजार रुपए लौटाने के साथ पांच हजार रुपए जुर्माने का आदेश दिया। चित्रकार को उचित पुरस्कार दिया गया। दरबारी बेचारा क्या करता, वह बेचारा सा मुंह लेकर रह गया।
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