Thursday, April 24, 2008

मुझे जो कुछ भी कहना था अभी मैं कह नही पाया,

मुझे जो कुछ भी कहना था अभी मैं कह नही पाया,
मेरे तहरीर की ज़द में अभी तो कुछ नही आया,

अभी भी करब लिखना है जिसे महसूस करता हूँ
अभी वो ख्वाब लिखने हैं जो आँखों में पलते हैं ,
मुझे उनको भी लिखना है जिन्हें मैं ढूंढ न पाया
अभी वो लोग लिखने हैं जो खो कर हाथ मलते हैं
अभी वो अश्क लिखना है कभी जो बह नही पाया
मेरे तहरीर की ज़द में अभी भी कुछ नही आया ..

अभी तो मौसमों की शोखियाँ तहरीर करनी हैं
अभी वो फूल कलियाँ और सेहे-ए-शबनम भी लिखनी हैं ,
उठाने हैं अभी दरिया से मुझको प्यास के पहरे
अभी तो खुश्क पैरों पे मुझे रिम झिम भी लिखनी हैं
कहीं पे धुप लिखनी है कहीं पे तीरगी छाया
मेरे तहरीर की ज़द में अभी भी कुछ नही आया ..

अभी तो मुझ को लिखनी है किसी की रेशमी जुल्फें
किसी की सुरमईं पलकें किसी की आंख का काजल
किसी का टूटता बादल किसी के प्यार की क़सम
किसी की अनकही बातें मचा दें दिल में जो हलचल
अभी वो सब लिखना है जो मेरा इश्क कहलाया
मेरे तहरीर की ज़द में अभी भी कुछ नही आया ..

अभी तो वो सफर लिखना है जो दरपेश हैं मुझपे
अभी तो तुमको अपनी प्यास का सेहरा दिखाना है,
अभी तो हिज्र की लिखनी हैं सारी मातमी रातें
अभी तो ऐसे लम्हों का भी तुमको लुत्फ़ सुनना है,
के जिन से अश्क आँखों में मगर इस दिल को बहलाया
मेरे तहरीर की ज़द में अभी भी कुछ नही आया ..

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