Tuesday, April 8, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन की दास्तान – 20

पिछले बार आपने पढ़ाः दरियादिली का सफर

एक तालाब के किनारे उसने लोगों की भारी भीड़ देखी और लंबी साँस भरकर कहा, ‘लगता है, आज मुझे आराम मिलेगा। यहाँ ज़रूर कुछ गड़बड़ है।’ तालाब सड़क से थोड़ी दूर था। वह सीधा अपने रास्ते जा सकता था। लेकिन वह उन लोगों में से नहीं था, जो किसी भी लड़ाई-झगड़े में कूदने का मौक़ा हाथ से जाने देते हैं। .....उसके आगे )

मुल्ला ने बचाई सूदखोर की जान

‘अरे, वह फिर पानी में चला गया।’

‘पानी भी इतनी असानी से सूदखो़र या अफसर को कबूल नहीं करेगा। वह उससे बचने की पूरी-पूरी कोशिश करेगा।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा और इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद डूबता आदमी फिर पानी की सतह पर दिखाई दिया। उस आदमी ने अकड़ के साथ मुल्ला के हाथ को थाम लिया। उसकी पकड़ के दर्द से मुल्ला कराह उठा।

वह कुछ देर बिना हिले-डुले किनारे पर पड़ा रहा। वहीं खड़े लुहार ने नसरुद्दीन से कहा-‘लेकिन तुमने इसे बचाकर ठीक नहीं किया।’ मुल्ला नसरुद्दीन आश्चर्य से उसे देखता रह गया, ‘मैं तुम्हारी बात समझ नहीं पाया लुहार भाई। क्या किसी इन्सान को यह बात शोभा देती है कि वह डूबते हुए इन्सान के पास से गुज़र जाए और उसकी मदद के लिए हाथ न बढ़ाए?’

‘तो तुम्हारे ख़याल से सभी साँपों, लक़ड़बग्घों और ज़हरीलें जानवरों को बचा लेना चाहिए?’ लुहार चिल्लाया। फिर अचानक उसके दिमाग़ में कोई बात कौंध उठी। उसने पूछा, ‘क्या तुम यहीं के रहने वाले हो?’

‘नहीं।’

इसलिए तुम नहीं जानते कि तुमने जिसे बचाया है वह इन्सानों के साथ बुरा करने वाला और उनका खू़न चूसने वाला आदमी है। बुखारा में रहनेवाला हर तीसरा आदमी उसकी वजह से कराहता और रोता है।’

एक भयानक विचार मुल्ला नसरुद्दीन के दिमाग़ में कौंध उठा, ‘लुहार भाई, मुझे उसका नाम तो बताओ।’

तुमने सूदख़ोर जाफ़र को बचाया है। खुदा करे उसकी यह जिंदगी बिगड़े, आकबत बिगड़े। उसकी चौदह पीढ़ियाँ घावों से सड़ें। उनके घावों में कीड़े पड़ें।’

‘क्या कहा लुहार भाई? लानत है मुझ पर। मेरे इन हाथों ने उस साँप को डूबने से बचाया है। सचमुच इस गुनाह की तौबा नहीं। लानत है मुझ पर।’

लुहार पर उसके दुख का असर पड़ा। वह कुछ नर्म होकर बोला, ‘धीरज से काम लो मुसाफ़िर, अब कुछ नहीं हो सकता। गधे पर सवार होकर तुम उस वक्त़ उधर से गुज़रे ही क्यों? तुम्हारा गधा सड़क पर अड़ क्यों न गया! तब सूदख़ोर को डूबने का पूरा-पूरा मौका मिल जाता।’

यह गधा अगर सड़क पर अड़ता तो इसलिए कि जिससे लगे थैलों से रुपया निकल जाए। जब ये भरे होते हैं तो इस बहुत भार लगता है। लेकिन यदि सूदख़ोर को बचाकर अपने ऊपर लानत बुलाने की बात है तो विश्वास करो यह मुझे वक्त़ से पहले वहाँ पहुँचा देगा।
‘यह ठीक है। लेकिन जो हो चुका है, उसे अब बदला नहीं जा सकता। उस सूदखो़र को कोई फिर से पानी में धकेल नहीं सकता।’

मुल्ला नसरुद्दीन को जोश आ गया, ‘लुहार भाई, मैं कसम खाता हूँ, उस सूदखो़र जाफ़र को डुबाकर ही दम लूँगा। इसी तालाब में डुबाऊँगा। जब तुम बाजार में यह खबर सुनो तो समझ लेना कि यहाँ के निवासियों का जो अपराध मैंने किया था, उसका बदला चुका दिया।’

1 comment:

  1. क्या बात है भाई मजा आ गया क्या मस्त लिखा है बहुत खूब भाई

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