Saturday, April 19, 2008

फूलों के तन चाक1 हो गये

बारिश हुई तो फूलों के तन चाक1 हो गये
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक2 हो गये

बादल को क्या ख़बर है कि बारिश की चाह में
कितने बलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये

जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये

लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक3 हो गये

साहिल पे जितने आब-गजीदा4 थे, सब के सब
दरिया का रुख़ बदलते ही तैराक हो गये

सूरज-दिमाग लोग भी इबलाग़-ए-फ़िक्र में
ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़5 के पेचाक हो गये

जब भी ग़रीब-ए-शहर से कुछ गुफ़्तगू हुई
लहज़े हवा-ए-शाम के नमनाक6 हो गये
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1.विदीर्ण। 2.अत्याचारी। 3.धृष्ट,निर्लज्ज। 4.पानी से डरे। 5.वियोग की रात्रि के केश। 6.आर्द्र।

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