Sunday, April 6, 2008

उस शख्स पर शराब का पीना हराम है

उस शख्स पर शराब का पीना हराम है
जो रहके मैकदे में भी इन्सां न हो सका

इतनी पी है कि बाद तौबा भी
बे पिए, बेखुदी सी रहती है

एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं
दुनियावाले, दिलवालों को और बहुत कुछ कहते हैं

सहरा में मेरे हाल पे कोई भी न रोया
बस फूट के रोया तो मेरे पांव का छाला

इस जिंदगी में और मुसीबत कोई नहीं
खुद जिंदगी हुई है मुसीबत कभी-कभी

कभी खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा

यूं इस कदर हवा नहीं चलती
उसे तो सिर्फ हमारा दिया बुझाना था

उठे कभी घबरा के तो मैखाने में हो आए
पी आए तो फिर बैठ रहे याद-ए-खुदा में

आए कुछ अब, कुछ शराब आए
इसके बाद आए जो अजाब आए
वीरां है मैकदा खुम-ओ-सागर उदास है
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के

आए थे हंसते खेलते मैखाने में ''फिराक''
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए

साकी गई बहार, रही दिल में ये हवस
तू मिन्नतों से जाम दे और मैं कहूं कि बस
जाहिद, शराब पीने से काफिर हुआ हूं मैं
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया ?

कर्ज की पीते थे मय, और कहते थे कि हां
रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन

अब तो जाते हैं मैकदे से ''मीर''
फिर मिलेंगे गर खुदा लाया

कहां मैखाने का दरवाजा ''गालिब'' और कहां वाइज
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले

मैखाना-ए-हस्ती में अक्सर, हम अपना ठिकाना भूल गए
या होश से जाना भूल गए, या होश में आना भूल गए

नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मजा तो जब कि गिरतों को थाम ले साकी

जाम जब पीता हूं मुंह से कहता हूं बिस्मिल्लाह
कौन कहता है कि रिन्दों को खुदा याद नहीं

साकिया तिश्नगी की ताब नहीं
जहर दे दे अगर शराब नहीं

देखना-देखना ये हजरते-वाइज ही न हों
रास्ता पूछ रहा है कोई मैखाने का

छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
निगाहे-नर्गिसे-राना तेरा जवाब नहीं

जकड़ी हुई हैं इनमें मिरी सारी कायनात
गो देखने में नर्म हैं तेरी कलाइयां

तुम्हारे नाज किसी और से तो क्या उठते
खता मुआफ ये पापड़ हमीं ने बेले हैं

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