पाप का प्रायश्चित
तेनाली राम ने जिस कुत्ते की दुम सीधी कर दी थी, वह बेचारा कमजोरी की वजह से एक-दो दिन में मर गया। उसके बाद अचानक तेनाली राम को जोरों का बुखार आ गया।
एक पंडित ने घोषणा कर दी कि तेनाली राम को अपने पाप का प्रायश्चित करना पड़ेगा नहीं तो उन्हें इस रोग से छुटकारा नहीं मिल पाएगा।
तेनाली राम ने पंडित से इस पूजा में आने वाले खर्च के बारे में पूछा। पंडित जी ने उन्हें सौ स्वर्ण मुद्राओं का खर्च बताया।
“लेकिन इतनी स्वर्ण मुद्राएं मैं कहां से लाऊंगा?”, तेनाली राम ने पंडित जी से पूछा।
पंडित जी ने कहा, “तुम्हारे पास जो घोड़ा है, उसे बेचने से जो रकम मिले वह तुम मुझे दे देना।”
तेनाली राम ने शर्त स्वीकार कर ली। पंडित जी ने पूजा पाठ करके तेनाली राम के ठीक होने की प्रार्थना की। कुछ दिनों में तेनाली राम बिल्कुल स्वस्थ हो गए।
लेकिन वह जानते था कि वह प्रार्थना के असर से ठीक नहीं हुए हैं, बल्कि दवा के असर से ठीक हुए हैं।
तेनाली राम पंडित जी को साथ लेकर बाजार गए। उनके एक हाथ में घोड़े की लगाम थी और दूसरे में एक टोकरी।
उन्होंने बाजार में घोड़े की कीमत एक आना बताई और कहा, “जो भी इस घोड़े को खरीदना चाहता है, उसे यह टोकरी भी लेनी पड़ेगी, जिसका मूल्य है एक सौ स्वर्ण मुद्राएं।”
इस कीमत पर वे दोनों चीजें एक आदमी ने झट से खरीद लीं। तेनाली राम ने पंडित जी की हथेली पर एक आना रख दिया, जो घोड़े की कीमत के रूप में उसे मिला था। एक सौ स्वर्ण मुद्राएं उन्होंने अपनी जेब में डाल ली और चलते बने।
पंडित जी कभी अपनी हथेली पर पड़े सिक्के को तो कभी जाते हुए तेनाली राम को देख रहे थे।
No comments:
Post a Comment