Sunday, April 6, 2008

मुल्ला नसरुद्दीन-11

मुल्ला की मुलाकात रईस के सिपाही से

(पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला ने बेचा टैक्स अफसर का घोड़ा)

…सुबह शहर के फाटक की घटनाओं की याद आते ही वह भयभीत होकर सोचने लगा कि कहीं ये सिपाही उसे पहचान न लें। ...तभी किसी ने उसे पुकारा...मुल्ला नसरुद्दीन ने पलटकर देखा।...बड़ा-सा साफ़ा बाँधे और क़ीमतों खिलअत पहने एक आदमी गाड़ी के पर्दों से बाहर झाँक रहा था।...अजनबी ने खूबसूरत अरबी घोड़े को देखते हुए उसकी प्रशंसा करते हुए अकड़कर कहा, ‘मुझे यह घोड़ा पसंद है। बोल, क्या यह घोड़ा बिकाऊ है?’मुल्ला नसरुद्दीन ने बात बनाते हुए कहा, ‘दुनिया में कोई भी ऐसा घोड़ा नहीं, जिसे बेचा न जा सके।’
......मुल्ला उसे टैक्स अफसर का घोड़ा बेचकर निकल जाता है)

उसके आगे

मुल्ला की मुलाकात रईस के सिपाही से

लेकिन थोड़ी दूर जाकर उसने फिर पीछे मुड़कर देखा। वह अजनबी रईस और टैक्स अफसर एक-दूसरे से गुथे हुए थे और एक-दूसरे की दाढ़ियाँ नोच रहे थे। सिपाही उन्हें अलग करने की बेकार कोशिश कर रहे थे।

‘अकलमंद लोग दूसरों के झगड़ों में दिलचस्पी नहीं लेते।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने मन-ही-मन कहा और गली-कूचों में चक्कर काटता हुआ काफ़ी दूर निकल गया।

जब उसे विश्वास हो गया कि अब वह पीछा करने वालों से बच गया है, उसने गधे की लगाम खींची, ‘ठहर जा, अब कोई जल्दी नहीं है।’

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। एक घुड़सवार तेज़ी से सड़क पर आ गया था। यह वही चेचक के दाग़ों से भरे चेहरे वाला नौकर था। वह उसी घोड़े पर सवार था। अपने पैर झुलाते हुए वह तेजी से मुल्ला नसरुद्दीन की बग़ल से गुज़र गया लेकिन अचानक घोड़े को सड़क पर आड़ा खड़ा करके रुक गया।

मुल्ला नसरुद्दीन ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘ओ भले मानस, मुझे आगे जान दे। ऐसी तंग सड़कों पर लोगों को सीधे-सीधे सवारी करनी चाहिए। आड़े-आड़े नहीं।’ नौकर ने हँसी के साथ कहा, ‘अब तुम जेल जाने से नहीं बच सकते। तुम्हें मालूम है, घोड़े के मालिक उस अफसर ने मेरे मालिक की आधी दाढ़ी नोच डाली है। मेरे मालिक ने उसकी नाक से खून निकाल दिया है। कुल तुम्हें अमीर की अदालत में पेश किया जाएगा।’

मुल्ला नसरुद्दीन ने आश्चर्य से पूछा, ‘क्या कह रहे हो तुम? ऐसे इज्ज़तदार लोगों की इस तरह झगड़ने की वजह क्या है? तुमने मुझे रोका क्यों है? मैं तो उनके झगड़े का फैसला कर नहीं सकता। अपने आप करने दो उन्हें फैसला।’

‘खामोश!’ नौकर चिल्लाया, ‘वापस चल। तुझे घोड़े के लिए जवाब देना होगा।’

‘कौन-सा घोड़ा? तुम ग़लत कह रहे हो’, मुल्ला नसरुद्दीन बोला, ‘खुदा गवा है, इस मामले का घोड़े से कोई सरोकार नहीं है। तुम्हारे दरियादिल मालिक ने एक गरीब आदमी की मदद करने के इरादे से मुझसे पूछा कि क्या में चाँदी के तीन सौ तंके लेने पसंद करूँगा। मैंने उत्तर दिया, ‘हाँ, मैं यह रकम लेना पसंद करुँगा। तब उसने मुझे तीन सौ तंके दे दिए। अल्लाह उसे लंबी जिदंगी दे। रुपया देने से पहले उसने यह देखने के लिए कि मैं इस इनाम का हकदार हूँ भी या नहीं, मुझ नाचीज़ में विनम्रता है या नहीं, उसने कहा था- ‘मैं नहीं जानना चाहता कि यह घोड़ा किसका है और कहाँ से आया है?’

चाबुक से अपनी पीठ खुजाते हुए नौकर सुनता रहा।‘देखा तुमने, वह यह जानना चाहता था कि कहीं मैं झूठे घमंड में अपने को घोड़े का मालिक तो नहीं बता बैठा। लेकिन मैं चुप रहा। कहने लगा, ‘मेरे जैसों के लिए यह थोड़ा जरूरत से ज्यादा बढ़िया है।’ मैंने उसकी बात मान ली। इससे वह और भी खुश होकर बोला, ‘मैं सड़क पर ऐसी चीज पा गया हूँ, जिसके बदले में मुझे चाँदी के सिक्के मिल सकते हैं।’ इसका इशारा मेरे इस्लाम में मेरे विश्वास की ओर था।...इसके बाद उसने मुझे इनाम दिया। इस नेक काम से वह कुरान शरीफ़ में बताए गए बहिश्त के रास्ते में पड़ने वाले उस पुल पर से अपनी यात्रा और अधिक आसान बनाना चाहता था, जो बाल से भी अधिक बारीक़ है. तलवार की धर से भी ज़्यादा तेज है. इबादत करते समय मैं अल्लाह से तुम्हारे मालिक के इस नेक काम का हवाला देते हुए दुआ करुँगा कि वह उस पुल पर बाड़ लगवा दे।’

मुल्ला नसरुद्दीन के भाषण के समाप्त हो जाने पर परेशान कर डालने वाली काइयाँ हँसी के साथ नौकर ने कहा, ‘तुम ठीक कहते हो। मेरे मालिक के साथ तुम्हारी जो बातचीत हुई थी उसका मतलब इतना नेक है, मैं पहले समझ नहीं पाया था। लेकिन, क्योंकि उस दूसरी दुनिया के रास्ते के पुल को पार करने में तुमने मेरे मालिक की मदद करने का निश्चय कर लिया है तो अधिक हिफाजत तभी होगी जब पुल के दोनों और बाड़ लग जाए। मैं भी बड़ी खुशी से अल्लाह से दुआ करुँगा कि मेरे मालिक के लिए दूसरी ओर की बाड़ लगा दें।’

‘तो माँगो दुआ। तुम्हें रोकता कौन?’ मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, ‘बल्कि ऐसा करना तो तुम्हारा फर्ज है। क्या कुरान में हिदायत नहीं है कि गुलामों और नौकरों को अपने मालिकों के लिए रोजाना दुआ माँगनी चाहिए और इसके लिए कोई खास इनाम अलग से नहीं माँगना चाहिए?’

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