Thursday, April 24, 2008

ख़ुद को मेरा दोस्त बनाने की जरूरत क्या है

ख़ुद को मेरा दोस्त बनाने की जरूरत क्या है ,
दोस्त बनके दगा देने की जरूरत क्या है ,
अगर कहा होता तो हम ख़ुद ही चले जाते ,
यू आपको चेहरा छुपाने की जरूरत क्या है ,
सोचा था रहेंगे एक घर बनाके बड़े सुकून से ,
न मिल सका सुकून तो महलों की जरूरत क्या है ,
है कौन मेरा जो बहाता मेरी मंजार पर अश्क ,
मुश्कुराते रहना तुम मुझे तेरे अश्को की जरूरत क्या है ,
मैं तो जान भी दे सकती थी तुझपे ऐ दोस्त ,
पर इस तरह मुझे आजमाने की जरुरत क्या है ,
दबी हूँ मिटटी में इस कदर की बड़ा दर्द है ,
मुझ पर फूल डाल कर और दबाने की जरुरत क्या है ,
मुझ से कर के दोस्ती अगर पूरा हो गया हो शौक ,
तो किसी और के जज्बातों से खेलने की जरुरत क्या है .

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