Monday, November 15, 2010

शराब

शराब
कभी तो मैंने खुश होकर जाम को चूमा।
तो कभी गम में हलक के नीचे उतारा।
लेकीन जब भी पी तो याद तुम्हारी ही आई .
बड़ी जालिम है ये जब भूलने के लिए पीता तो याद दिला देती,
और जब याद करने के लिए पिता तो भुला देती.

जब भी हमने शराब को पी तो जन्नत नज़र आई ,
और जब नशा उतरा तो बीबी हाथ में बेलन लिए नज़र आई.

शाम को जाम पिया सुबह को तौबा कर ली।
रिन्द के रिन्द रहें हाथ से जन्नत न गइ।। (अनाम)

रखते है कहीं पांव तो पडता है कहीं और ।
साकी तू जरा हाथ तो ले थाम हमारा।। (इँशा)

कजॆ की पीते थे मय-औ यह समझते थे कि हां ।
रंग लाएगी हमारी फाका-मस्ती एक दिन ।। (गालिब)

अंगूर में धरी थी पानी की चार बूंदे ।
जब से वो खिंच गइ है , तलवार हो गइ है।। (अनाम)

साकी तू मेरी जाम पे कुछ पढ के फूंक दे ।
पीता भी जाउँ और भरी की भरी रहे।। (अनाम)

साकिया अक्स पडा है जो तेरी आंखों का ।
और दो जाम नजर आते है पैमाने में ।। (अनाम)

दिल छोड के यार क्यूंकि जावे ?
जख्मी हो शिकार क्यूंकि जावे ?
जबतक ना मिले शराबे दीदार ,
आंखो का खुमार क्युंकि जावे ? (वली)

रंगे शराब से मेरी नियत बदल गइ ।
वाइज की बात रह गइ साकी की चल गइ।
तैयार थे नमाज पे हम सु

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