Tuesday, November 2, 2010

हसने का बहाना ढूंढ़ लिया

कुछ रोज गुजारने की खातिर,एक आशियाना ढूंढ़ लिया
ता-उम्र होश में न आ सकू,ऐसा एक मयखाना ढूंढ़ लिया

क्या मालूम था मुझे,के होगी झूठी वो महफिले अपनी
अब आयी अक्ल,के जीने की खातिर वीराना ढूंढ़ लिया

पूछेगा गर खुदा मुझको,लाये क्या हो उस जहा से तुम
कर दूंगा नजर ये दिल टुटा,ऐसा एक नजराना ढूंढ़ लिया

मिलती नही जो इस दुनिया में,एक पहचान अब मुझको
अक्स जो देखा शीशे में अपना,के कोई बेगाना ढूंढ़ लिया

अपनी सूरत-ऐ-हाल पे 'ठाकुर'हसता है ये सारा जमाना
हम भी समझेंगे के लोगो ने,हसने का बहाना ढूंढ़ लिया

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