Wednesday, June 4, 2008

मोहब्बत के सफर में कोई रास्ता नही देता

चराग अपने थकान की कोई सफ़ाई न दे
वो तीरगी है के अब ख्वाब तक दिखाई ना दे

बहुत सताते हैं रिश्ते जो टूट जाते हैं
खुदा किसी को भी तौफीके -आशनाई ना दे

मैं सारी उम्र अंधेरों में काट सकता हूँ
मेरे दीयों को मगर रौशनी पराई ना दे

अगर यही तेरी दुनिया का हाल है मालिक
तो मेरी क़ैद भली है मुझे रिहाई ना दे

दुआ ये मांगी है सहमे हुए खुदा ने
के अब कलम हो खुदा सुर्ख रौशनी ना दे

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उदास लोगों से प्यार करना कोई तो सीखे
सफ़ेद लम्हों में रंग भरना कोई तो सीखे

कोई तो आये खिजां में पत्ते उगाने वाला
गुलों की खुशबू को कैद करना कोई तो सीखे

कोई दिखाए मोहब्बतों के सराब मुझ को
मेरी निगाहों से बात करना कोई तो सीखे

कोई तो आये ने रूठों का पयाम ले कर
अँधेरी रातों में चाँद बनाना कोई तो सीखे

कोई पैगम्बर , कोई इमाम -ए -ज़मान ही आये
एशीर सोचों में सोच भरना कोई तो सीखे

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बेनाम सा ये दर्द , ठहर क्यों नही जाता
जो बीत गया है , वह गुज़र क्यों नही जाता

सब कुछ तो है , क्या ढूँढती रहती है निगाहें
क्या बात है , मैं वक्त पे घर क्यों नही जाता

वह इक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में
जो दूर है वह दिल से उतर क्यों नही जाता

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब में उधर क्यों नही जाता

वह नाम जो न जाने कब से , ना चेहरा ना बदन है
वह खवाब अगर है तो बिखर क्यो नही जाता ”

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