Thursday, June 12, 2008

और कितने दायरे हैं, इश्क के इज़हार में

और कितने दायरे हैं, इश्क के इज़हार में
और कितनी अदाऍ हैं, चुलबुले से यार में,
मैं फकीरी की फिकर में, मस्त अलमस्त हूँ
और कहीं कुछ ना दिखे, जो दिखे दिलदार में.

और यौवन का निखरना, सँवर कर बिखरना
दिल की धडकन की अगन, भड़के बौछार में,
अंग-अंग भंग लगे, नशा भी दबंग लगे
टूट-टूट बदन बिफरे, मधुडली बहार में.

मन बड़ा उड़ंत है, जवानी क्या उद्दंड है
भावनाऍ घूम-घूम, करती ठंडी सीत्कार है,
तड़पन के दहन में, वहन और न हो सके
आपकी जो भी हो मर्ज़ी, अब मुझे स्वीकार है.


आवेग सिंह.

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