Tuesday, November 17, 2009

बदली हुई रुत .. बदली हुई फिजा ...

बदली हुई रुत ..
बदली हुई फिजा ...
जाग रही है ...

दो रूहों की
एक ही हलचल
मद्धम मद्धम ..
रात की गहरी चुनरी ओढे
चाँद भी मुस्कराया ..

और ............ .

लबों पर तैरता
चाँदनी के मुख पर
वो हल्का सा तब्बसुम

या फ़िर रुकी हुई है
कोई शबनम की बूंद ..
परियों के अफ़साने हैं
या फ़िर से कोई सपना
उतर आया है ..

मेरी आँखों में ..
वह खामोशी ...
अब फ़िर से
जागने लगी है

जिसे बरसों पहले
थपकी दे के सुलाया था !!
.
.
.
.
.
.
.
Badli hui rut ...
Badli hui fiza ..
Jag rahi hai ...

Do ruhon ki
Ek hi halchal
Maddham maddham ..
Raat ki gehri chunri odhe
Chand bhi muskuraya ..

Aur ............ .

Labon par tairta
Chandni ke mukh par
Wo halka sa tabbasum

Ya fir ruki hui hai
Koi shabnam ki bund ..
Pariyon ke afsane hain
Ya fir se koi sapna
Utar aya hai ..

Meri ankhon mein ..
Weh khamoshi ...
Ab fir se
Jagne lagi hai

Jise barson pahle
Thapki de ke sulaya tha !!

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