आजकल खून में पहली सी रवानी न रही
बचपन बचपन न रहा , जवानी जवानी न रही
क्या लिबास क्या त्यौहार,क्या रिवाजों की कहें
अपने तमद्दुन की कोई निशानी न रही
बदलते दौर में हालत हो गए कुछ यूँ
हकीक़त हकीकत न रही , कहानी कहानी न रही
इस कदर छा गए हम पर अजनबी साए
अपनी जुबान तक हिन्दुस्तानी न रही
अपनों में भी गैरों का अहसास है इमरोज़
अब पहली सी खुशहाल जिंदगानी न रही
मुझको तो हर मंज़र एक सा दीखता है "दीपक "
रौनक रौनक न रही , वीरानी वीरानी न रही
Wednesday, November 4, 2009
आजकल खून में पहली सी रवानी न रही
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शेरो-शायरी
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