Wednesday, November 4, 2009

आजकल खून में पहली सी रवानी न रही

आजकल खून में पहली सी रवानी रही
बचपन बचपन रहा , जवानी जवानी रही
क्या लिबास क्या त्यौहार,क्या रिवाजों की कहें
अपने तमद्दुन की कोई निशानी रही
बदलते दौर में हालत हो गए कुछ यूँ
हकीक़त हकीकत रही , कहानी कहानी रही
इस कदर छा गए हम पर अजनबी साए
अपनी जुबान तक हिन्दुस्तानी रही
अपनों में भी गैरों का अहसास है इमरोज़
अब पहली सी खुशहाल जिंदगानी रही
मुझको तो हर मंज़र एक सा दीखता है "दीपक "
रौनक रौनक रही , वीरानी वीरानी रही

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