Wednesday, June 4, 2008

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ ,

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म -ओ -रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिए आ.

कुछ तो मेरे पिंदार -ए -मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ.

एक उम्र से हूँ लाज्ज़त -ए -गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत -ए -जान मुझ को रुलाने के लिए आ .

अब तक दिल -ए -खुश फहम को तुझ से हैं उम्मीद
ये आखिरी शम्मा भी बुझाने के लिए आ

जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ.

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