Friday, November 26, 2010

पेश-ऐ-खिदमत है चंद शे'र!

चंद शे'र
 
मेरे प्यारे दोस्त, 
 
 पेश-ऐ-खिदमत है चंद शे'र!
  
उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएंगे!

किसका चमकता चेहरा मांगें किस सूरज से लायें धूप,
  
घोर अँधेरा छा जाता है खल्वत-ऐ-दिल में शाम हुए!
  
एक से एक जुनूं का मारा इस बस्ती में रहता है,
  
एक हमीं हुशियार थे यारों एक हमीं बदनाम हुए!!

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ऐ-आम तक आएगा,
  
जीं का दाग उजागर होकर सूरज को शर्मायेगा!
  
दीदा-ओ-दिल ने दर्द की अपनी बात भी की तो किससे की,
  
वो तो दर्द का पानी ठहरा वो क्या दर्द बंताएगा!! 

दर्द का साथ है तो जीते हैं, वरना भीतर से हम भी रीते है,
  
अपनापन सिर्फ़ एक छलावा है अपने मतलब को लोग जीते हैं!
  
गम वो चादर फटी पुरानी सी, जिसको आंसू से रोज़ सीते हैं,
  
कैसे पहचान अपनी बतलाएं हम भी मिटटी के ही पलीते हैं!!

दर्द में डूबे हुए नगमे हज़ारों है लेकिन,
  
साज़-ऐ-दिल टूट गया हो तो बजायें कैसे!
  
बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते,
  
ज़िन्दगी बिझ बनी हो तो उठाएं कैसे!!
 
गम के घर तक न जाने की कोशिश करो,
  
जाने किस मोड़ पर मुस्कुराना पड़े!
  
आग ऐसी लगाने से क्या फायदा,
  
जिसके शोलों को ख़ुद ही बुझाना पड़े!!
 
भर चले थे ज़ख्म जो फ़िर से लगे मुँह खोलने,
  
कुछ पुरानी याद लेकर आई है ताज़ा हवा!
  
हम तो अपनी खाना-वीरानी का मातम कर चुके,
  
देख जाकर अब तू कोई और दरवाज़ा हवा!!
 
जब दहर के गम से अमां ना मिली,
    हम लोगों ने इश्क ईजाद किया,
   
कभी शहर-ऐ-बुतां में ख़राब फिरे,
    कभी दस्त-ऐ-जुनूं आबाद किया!
 
एक दीवाना के सच कहने की आदत थी जिसे,
  
शहर वालों ने उसे शहर में रहने न दिया!
  
हम न सुकरात न शरमद न थे ईशा तशीर,
  
फ़िर भी दुनिया ने हमें चैन से जीने न दिया!!
 
हम तेरी धुन में मुहब्बत का सहारा लेकर,
  
यास के उजड़े दयारों से गुज़र जायेंगे!
  
तुम न दोगे हमें आवाज़ अगर साहिल से,
  
हम भी खामोश किनारों से गुज़र जायेंगे!!
 
१० देख ये ज़ज्बा-ऐ-चाहत मेरे दिल का हमदम,
   
तेरे अंदाज़-ऐ-बयां का है अब मुझ पर साया!
   
दफ्फतन पांव मेरे चल पड़े कूंचे को तेरे,
   
वादी-ऐ-इश्क में देखा तो तुझे ही पाया!!

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