बे-इन्तहा बे-वजह बेकाबू हो गया
ये दिल,दिल ना रहा खाना-ए-आरजू हो गया
एक पल भी अब चैन आये कहा से
मकसद-ए-जिंदगी यार की जुस्तजू हो गया
जिंदगी मिलती नही और कमबख्त मौत भी आती नही
टूटता भी नही जाम खाली और शराब भी मिलती नही
अँधेरा ही अँधेरा है जिस जानिब देखू मैं
सुबह भी होती नही और रात भी ढलती नही
इन गेसुओ की काली घटा बन गयी है रोशनी मेरी
मदहोश अदा तेरी बन गयी है बेखुदी मेरी
तहय्युर-ए-हुस्न मे न आते थे लब्ज जबाँ पे,तेरे मिलने से पहले
शौक़-ए-शायरी बन गयी है अब जिंदगी मेरी
वही मंजिले मुझको मिली, जो न मिलती तो बहोत अच्छा था
काटो के सीवा कालिया खिली,जो न खिलती तो बहोत अच्छा था
झूठी खुशियों का वादा लेकर सुबह आयी,रात ढलने के बाद
वो गम की शाम ही न ढलती तो बहोत अच्छा था
हजारो ख्वाहिशे जगती है दिल मे एक तेरे ख़याल से
और आप है के पूछते हो के क्या आरजू है तुम्हारी
मैं जर्रा इस जमीं का
तू परी किसी दुसरे आसमाँ की
फिर भी दिल मे उम्मीद है बाकी
के देखा है कही आसमाँ को जमी से मिलते हुवे
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