एक लड़की का जन्म लेना क्या अपराध है ..
मुझे मत मारों ।
मै तुम्हारा ही एक अंग हूँ माँ॥
मत रोको मुझे इस सुंदर से को संसार को देखने से ।
मै तुम्हारे जीवन की एक रंग हूँ माँ ॥
अभी तो मै निःसहाय हूँ , अभी मैं तो निष्पाप हूँ माँ।
अभी तो जीने की आस लिए एक अधूरी उमंग हूँ माँ॥
आप औरत हो इस दर्द को पहचानो ।
मैं तुम्हारे ही मातृत्व का एक अंश हूँ माँ॥
हर परिस्थित में मैं तुम्हारे साथ हूँ माँ, जो सपने तेरे तोडे गये थे माँ।
तेरे उन सपनों को मैं अपने हुनर के रंगों से भरुंगी मैं ॥
मुझे से रोशन तेरी दिवाली ।
मुझे रंगीन रहेगी तेरी होली माँ॥
जीवन की रंग हूँ मै माँ ।
लड़कीं हूँ तो क्या मुझ में भी जीने की चाह है ॥
दुनिया देखने की चाह मुझ में भी है माँ ।
तेरे ख्वाब की दरिया हूँ मैं॥
उठती हुई लहरों की तरंग हूँ मैं।
माँ तू नारी है नारी के दर्द को पहचानती होंगी ।
इसी लिए तो मैं आपना दर्द आप से बयाँ कर रही हूँ॥
यह कविता आपको कैसी लगी आप इस पर अपना कमेन्ट जरुर लिखें। धन्यवाद
आपकी रचना में परिपक्वता का आभाव है।
ReplyDeleteइसे और अधिक परिपक्व बनाया जा सकता था।