दुल्हे मियां
सामने भविश्य तेरा
मुंह बाये खडा है
और तू घोडी पे
चड़ने को बेताब बडा है
आज हो रहा तू राजी
कल बाप ही कहेगा पाजी
अरे पागल सोच
ये प्रणय वेदी नही
तेरी बलि वेदी है
मंडप मे हवन नही
छुपा हुआ बडावानल है
मंत्रोच्चार नही
बोलता सिंहनाद है
पंडित नही मदारी है
अरे अक्ल के अंधे
ये भांवर नही
गहरा एक भंवर है
अर्धांगिनी नही
ये नागफनी है
गठबंधन नही
अरे बावले
चंद्रग्रहण और सुर्य ग्रहण खराब
वैसे ही पाणिग्रहण करेगा बर्बाद
समय पर जरा जाग
धागे कच्चे हैं तोड डाल
पक गये धागे तो सारी उम्र
रस्साकशीं मे रहेगा बेहाल..
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