Friday, September 11, 2009

याद आये फिर तुम्हारे केश

याद आये फिर तुम्हारे केश
मन भुवन में फिर अँधेरा हो गया !!

पर्वतों का तन घटाओं ने छुआ
घाटियों का ब्याह फिर जल से हुआ
याद आये फिर तुम्हारे नैन
देह मछली मन मछेरा हो गया

प्राण वन में चंदनी ज्वाला जली
प्यास हिरनों की पलाशों ने छली
याद आये फिर तुम्हारे होंठ
भाल सूरज का बसेरा हो गया !!

दूर मंदिर में जगी फिर रागिनी
गंध की बहने लगी मन्दाकिनी
याद आये फिर तुम्हारे पांव
प्रार्थना हर गीत मेरा हो गया !!

याद आये फिर तुम्हारे केश............

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ --  raj

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