चाँद को अपनी तकदीर समझा
दिल -ए-नादान था जो तुमसे प्यार कर बैठा,
खुली आँखों से तेरा ख्वाब देखा,
चाँद को अपनी तकदीर समझा ,
ऐ बेवफा , आसमान को छूने चला ….
कांटे ही न होते राहों में कभी ,
उन नाजुक को फूल कौन कहता,
मुश्किलें न होती ज़िन्दगी में कभी ,
उस इंसान को सिकंदर कौन कहता ….
प्यार करने वाले डरते नहीं ,
डरनेवाले प्यार करते नहीं ,
होते नहीं हौसले बुलंद जिनके ,
मैदान -ए -ज़ंग लड़ा करते नहीं ….
खुली आँखों से तेरा ख्वाब देखा,
चाँद को अपनी तकदीर समझा ,
ऐ बेवफा , आसमान को छूने चला ….
कांटे ही न होते राहों में कभी ,
उन नाजुक को फूल कौन कहता,
मुश्किलें न होती ज़िन्दगी में कभी ,
उस इंसान को सिकंदर कौन कहता ….
प्यार करने वाले डरते नहीं ,
डरनेवाले प्यार करते नहीं ,
होते नहीं हौसले बुलंद जिनके ,
मैदान -ए -ज़ंग लड़ा करते नहीं ….
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