Saturday, March 14, 2009

महालक्ष्मी स्तुति


महालक्ष्मी स्तुति

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥1॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥2॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥3॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥4॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥5॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥6॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्षि्म नमोस्तु ते॥7॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्सि्थते जगन्मातर्महालक्षि्म नमोस्तु ते॥8॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्ति मान्नर:।
सर्वसिद्धिमवापनेति राज्यं प्रापनेति सर्वदा॥9॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥10॥
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥11॥ अर्थ :- इन्द्र बोले- श्रीपीठपर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शङ्ख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्षि्म! तुम्हें प्रणाम है॥1॥ गरुडपर आरूढ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्षि्म! तुम्हें प्रणाम है॥2॥ सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥3॥ सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्षि्म! तुम्हें सदा प्राम है॥4॥ हे देवि! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥5॥ हे देवि! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बडे-बडे पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥6॥ हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि! हे परमेश्वरि! हे जगदम्ब! हे महालक्षि्म! तुम्हें मेरा प्रणाम है॥7॥ हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्षि्म! तुम्हें मेरा प्रणाम है॥8॥ जो मनुष्य भक्ति युक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है॥9॥ जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बडे-बडे पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है॥10॥ जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान् शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं॥11॥
रचनाकार : लक्ष्मी जी के इस स्तोत्र की रचना देवराज इन्द्र ने की थी













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