Saturday, March 14, 2009

सप्तम कालरात्रि



सप्तम कालरात्रि

एकवेणीजपाकर्णपुरानाना खरास्थिता।
लम्बोष्ठीकíणकाकर्णीतैलाभ्यशरीरिणी॥
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनर्मूध्वजाकृष्णांकालरात्रिभर्यगरी॥
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हे। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र है, ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्यगोल है, इनसे विद्युत के समान चमकीलीकिरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांसप्रश्वांससे अग्नि की भंयकरज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रासे सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रामें है बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे हाथ में खड्ग है। मां का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभकरीभी है अत:इनसे किसी प्रकार भक्तों को भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
ध्यान:-करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
स्तोत्र:-हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
कवच:-ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥
भगवती कालरात्रि का ध्यान,कवच,स्तोत्र का जाप करने से भानु चक्र जाग्रत होता है, इनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच, स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं, यह माता भक्तों को अभय प्रदान करने वाली है।












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