Monday, December 29, 2008

ख़ुशी ही खु़शी है यहाँ ज़िंदगी में

ख़ुशी ही खु़शी है यहाँ ज़िंदगी में
ग़मों की जगह है कहाँ ज़िंदगी में


कटेगा ये मुश्किल सफ़र मुस्कराते
मिले साथी सच्चा जहाँ ज़िंदगी में


हुए कब हैं पूरे हर अरमां किसी के
मिला किस को सब है यहाँ ज़िंदगी में


दरीचे से बाहर खुला आसमां है
ज़रा झाँक आओ वहाँ ज़िदगी मॆं


न जाने हैं शक़्लें भी कितनी तरह की
मुखौटों के पीछे यहाँ ज़िंदगी में


तजुर्बा नया है सिखाता जो लम्हा
कोई याद रखता कहाँ ज़िंदगी में


चलो 'दोस्त' हम भी समझ लें इन्हें, ये
जो दो चार पल हैं यहाँ ज़िंदगी में


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