Tuesday, August 9, 2011

ये शहर अब वों शहर नहीं

ये शहर अब वों शहर नहीं,
 न जाने किसकी नज़र लगी?(2)
      
यहॉ झिलमिलाते चिराग थे,
यहॉ टिमटिमाते सितारे थे।
यहॉ रोज़ दिन में ईद थी,
यहॉ रात एक दीवाली थी।
अब यहॉ अमास का आसमॉ।…. न जाने किसकी नज़र लगी?(2)

यहॉ ऊंचे मकान थे,
कभी इस में भी इन्सान थे।
यहॉ महेफिलॉ में थी रोशनी,
यहॉ बज़ती थी हर रागिनी।
अब यहॉ है खंडहर के नशॉ।…. न जाने किसकी नज़र लगी?(2)

यहॉ बागों में तो बहार थी।
यहॉ तितलीयॉ भी हज़ार थी।
ये सँवरता था दुल्हन तरहॉ,
ये महकता था गुलशन तरहॉ।
अब यहॉ लगा उज़डा समॉ।…. न ज़ाने किसकी नज़र लगी?(2)

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