तनहा सफ़र
समझ सके न ये दूरियां क्यों थीं
जबान पे लफ्ज़ फिर मजबूरियन क्यों थीं
जबान पे लफ्ज़ फिर मजबूरियन क्यों थीं
दिलों की बात अगरचे हकीकत होती है
हमारे दरमियाँ वो खामोशियाँ क्यों थीं
हमारे दरमियाँ वो खामोशियाँ क्यों थीं
बुने थे हमने भी कुछ रेशमी धागों के ख्वाब
हमारे हिस्से में वो काली डोरियाँ क्यों थीं
हमारे हिस्से में वो काली डोरियाँ क्यों थीं
इधर होटों पे अजाब सी जुम्बिश
उदार थे कुछ राज़ दिल के तालों मैं
उदार थे कुछ राज़ दिल के तालों मैं
समझ सके न सरगोशियाँ हवाओं की
हमारे हिस्से में सेहर के आंधियां क्यों थीं
हमारे हिस्से में सेहर के आंधियां क्यों थीं
तुम्हे गुरेज़ मेरी चंद बातों से
मै भी परवाज़ का था हामिल
मै भी परवाज़ का था हामिल
पहुँच के मील के पत्थर पे सोचता हूँ
सफ़र तनहा तो फिर वो दूरियां क्यों थीं
samajh sake na ye doorian kyon thiin
jaban pe lafz phir mazboorian kyon thiin
jaban pe lafz phir mazboorian kyon thiin
dilon kii baat agarche haqeeqat hoti hai
hamare darmiyan wo khamosheian kyon thiin
bune the hamne bhe kuch reshmii dhaagon ke khwab
hamare hisse me wo kaalii doriyaan kyon thiin
idhar hoton pe azab sii jumbish
udar the kuch raaz dil ke taalon main
samajh sake na sargosheian hawaon kii
hamare hisse me sehra ke aandheian kyon thiin
tumhe gurez merii chand baaton se
mai bhe parwaz ka tha haamil
pahoonch ke meel ke patthar pe sochta hoon
safar tanha to phir wo doorian kyon thiin
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