जहाँ हर कोई एक दूसरे को देखकर मुंह फेर ले
इस जमीं पर ऐसा घर बनाते क्योँ है?
प्यार इतना था कि एक दूसरे के लिए जान देते थे
आज इंसान ही इंसान को इतना सताते क्योँ है?
धड़कन बनकर जो हर पल, पल-पल साथ -साथ रहे
पहले हँसाकर, फिर वो ही रुलाते क्योँ है?
भाई-भाई का ना रहा, बेटा बाप का ना रहा
कर ऐसे-ऐसे गुनाह, हम ये पाप कमाते क्योँ है?
सभी कि राहों में तो बीज काँटों का बोते जा रहे है
दिखाने के लिए फूलों का हार गले मे सजाते क्योँ है?
एक दिन ना तू रहना, ना मैं रहना, ना रहना बैरी दुनियां ने
लेकर दिलों में नफरत, लोग गंगा में नहाते क्योँ है?
होटों पर मुस्कान है, दिलों में नफरत के बीज है
मरने पर भी जो ना खत्म हो,
ऐ “राज” हम दिलों में ऐसी नफरत बसाते क्यौ है?
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